बड़ी ही मधुर था गुरु चाणक्य और शिष्य चंद्रगुप्त का सम्बन्ध
- गुरुपूर्णिमा पर विशेष
आस्था : आचार्य चाणक्य की बुद्धि कौशल कौन नहीं जानता। चाणक्य की नजरें एक युवा की तलाश में थी जो भारत का नया इतिहास लिख सके। वह एक ऐसा शिष्य चाहते थे जो विकट से विकट परिस्थितियों का सामना कर सके। उनका शिष्य बल से ही नही मानसिक रूप से मजबूत हो। एक बार चाणक्य पाटलिपुत्र के राजा महापद्मनंद के यहां यज्ञ में गए और भोजन करन के लिए आसन ग्रहण करने लगे। राजा ने चाणक्य के काले रंग का मजाक बनाया और उन्हें उस आसन पर से उठने की आज्ञा दी। राजा ने चाणक्य का भरी सभा में अपमान किया। राजा का ऐसा व्यवहार देखकर चाणक्य बिना भोजन किए वहां से चले गए चाणक्य का क्रोध अपने चरम पर था। उन्होंने प्रतिज्ञा कि की वह जबतक नंदवंश का नाश नहीं कर देंगे तब तक अपनी चोटी नही बांधेंगे। चाणक्य अपनी प्रतिज्ञा लेते हुए राजमहल से गुस्से में निकले।
राजमहल से निकलकर उनकी नजर एक बालक पर पड़ी, जो अपने समान सभी दुसरे बालकों का प्रतिनिधित्व कर रहा था। चाणक्य को पहली ही नजर में उस बालक का इस तरह अन्य बालकों का प्रतिनिधित्व करते हुए देखकर आश्चर्यचकित रह गए। वह बालक इतनी सी उम्र में सबका बड़े ही सटीक अंदाज में नेतृत्व कर रहा था। चाणक्य को पहली ही नजर में भारत का भावी सम्राट मिल गया था। चाणक्य ने चंद्रगुप्त के पास जाकर उसका नाम पूछा और उससे शिक्षा ग्रहण करने के लिए पूछा था। चंद्रगुप्त ने तुरंत शिक्षा के लिए हां कर दी। इसक बाद चाणक्य चंद्रगुप्त को अपने साथ गुरुकुल ले आए और शिक्षा देनी शुरु कर दी। चंद्रगुप्त ने पूरी लगन से चाणक्य से शिक्षा प्राप्त की। वह चाणक्य की सभी परिक्षाओं में खरा उतरा। चद्रगुप्त ने सभी छोटे राजओं के साथ मिलकर पाटलिपुत्र पर हमला कर दिया और नदों को युद्ध मे परास्त कर दिया। नदों को पराजित करने के बाद चंद्रगुप्त ने मगध का राजा बना। चंद्रगुप्त को और भी ज्यादा पराक्रमी बनाने और मौर्य साम्राज्य का और भी ज्यादा विस्तार करने के लिए लिए राजनीतिक शिक्षा लेनी शुरु की और उसके मंत्री बने। चाणक्य ने चंद्रगुप्त को भारत को एक अंखड साम्राज्य बनाने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद चंद्रगुप्त ने सत्ता के केंद्र पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया और एक विशाल सेना का नेतृत्व करते हुए विश्व विजेता बनने निकले सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस को हराया।