बर्थ-डे स्पेशल : मंच पर गाने से घबराती थीं कविता कृष्णमूर्ति…
नई दिल्ली: सन् 1990 के दशक में पाश्र्वगायिका के रूप में उभरीं कविता कृष्णमूर्ति ने अपनी सुरीली आवाज का सभी को दीवाना बना दिया। उन्होंने ‘मेरा पिया घर आया’, ‘प्यार हुआ चुपके से’, ‘हवा हवाई’, ‘आज मैं ऊपर आसमां नीचे’, ‘डोला रे डोला’ जैसे मशहूर फिल्मी गीतों से सभी को थिरकने पर मजबूर कर दिया है।
कविता बचपन से ही गीतों की शौकीन रही हैं। वह रेडियो पर लता मंगेशकर और मन्ना डे के गाए गीत खूब गौर से सुनतीं और साथ-साथ गुनगुनाती थीं। वह गुरु बलराम पुरी से शास्त्रीय संगीत सीखती थीं।
उनका जन्म दिल्ली में रहने वाले एक अय्यर परिवार में 25 जनवरी, 1958 को हुआ था। उनके पिता शिक्षा विभाग में अधिकारी थे। दिल्ली में जन्मीं कविता ने अपनी संगीत की शुरुआती शिक्षा घर में ही ली। उन्होंने आठ साल की उम्र में ही एक संगीत प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता था और इसके बाद पाश्र्वगायिका बनने का सपना बुनने लगीं।
नौ साल की उम्र में उन्हें लता मंगेशकर के साथ बांग्ला गीत गाने का मौका मिला। यहीं से उन्होंने फिल्मों में गाने का निर्णय लिया और संगीत के प्रति अपनी रुचि दिखाई। मुंबई के सेंट जेवियर कॉलेज से उन्होंने स्नातक की डिग्री प्राप्त की और यहीं काम की तलाश में जुट गईं।
कॉलेज के दिनों में वह काफी चंचल थीं और हर प्रतियोगिता में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती थीं। इसके बाद उनकी ‘बिनाका गीतमाला’ वाले अमीन सयानी से मुलाकात हुई, फिर वह उनके साथ कार्यक्रमों में जाने लगीं। मौका मिला तो उन्होंने कई भाषाओं में गीत गाकर दर्शकों को रोमांचित किया।
कविता कृष्णमूर्ति को शुरुआत में सबके सामने गाने से बहुत डर लगता था। बाद में धीरे-धीरे उनका डर कम होता गया। उसी दौरान 1971 में हेमंत कुमार ने उन्हें बुलाया और बांग्ला में रवींद्र संगीत की तीन-चार लाइनें सिखाकर कहा कि ‘इंतजार करो लता जी आ रही हैं उनके साथ गाना है।’
इसके बाद वह लता जी को गाता देख सहज महसूस करने लगीं और उनके साथ गीत गाया। उन्होंने पिताजी की आज्ञा लेकर संगीत की दुनिया में कदम रखा। हालांकि, उनके लिए यह कदम आसान नहीं था, क्योंकि उनके घर में सरकारी नौकरी करने पर जोर था। उन्होंने बड़ी मुश्किल से पिताजी को मनाया और मनोरंजन जगत का रुख किया।
कविता कृष्णमूर्ति को साल 2005 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। महज आठ साल की उम्र में म्यूजिक कॉम्पीटीशन में गोल्ड मेडल जीतने वाली कविता ने कई भाषाओं में गाने गाए हैं। कविता कृष्णमूर्ति के गाए कई गाने खूब पसंद किए गए हैं। इसके बाद वह बेहतरीन पाश्र्वगायिका के तौर पर शुमार हुईं।
कविता कृष्णमूर्ति की आवाज में ऐसी कशिश है कि उसे सुनकर कोई भी उनकी आवाज का दीवाना बने हुए नहीं रह सका। ‘1942 : ए लव स्टोरी’ में उनके गाने आज भी पसंद किए जाते हैं। उन्होंने अपने करियर में आनंद मिलन, उदित नारायण, एआर रहमान, अनु मलिक जैसे गायकों और संगीत निर्देशकों के साथ काम किया है। उन्होंने कई भक्ति गीत भी गाए हैं।
अभिनेत्रियों में श्रीदेवी, रानी मुखर्जी, काजोल और प्रीति जिंटा पसंद हैं। शबाना आजमी को वह बेहतरीन अभिनेत्री मानती हैं। कविता ने शबाना आजमी, श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित, मनीषा कोइराला और ऐश्वर्या राय सरीखी शीर्ष की अभिनेत्रियों के लिए कई गाने गाए हैं।
साल 1980 में कविता ने अपना पहला गीत ‘काहे को ब्याही’ (मांग भरो सजना) गाया। हालांकि यह गाना बाद में फिल्म से हटा दिया गया था, लेकिन कविता की प्रतिभा छिपने वाली नहीं थी। साल 1985 में फिल्म ‘प्यार झुकता नहीं’ के गानों ने उन्हें पाश्र्वगायिका के रूप में पहचान दिलाई। इसके बाद उन्होंने एक-के बाद हिट गीत दिए।
कविता वायलिन वादक एल. सुब्रमण्यम की पत्नी हैं। एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया था कि एक बार उन्हें गायक हरिहरन के साथ मिलकर सुब्रमण्यम के लिए गाना गाना था, तब उनकी शादी नहीं हुई थी। सुब्रमण्यम का बहुत नाम था और इसलिए कविता उनसे बहुत घबराई हुई थीं, लेकिन उन्होंने बहुत धैर्य के साथ गाना पूरा किया।
सुब्रमण्यम पहले से शादीशुदा थे, हालांकि उनकी पत्नी का देहांत हो चुका था। वैसे तो मन ही मन कविता उन्हें अपना दिल दे चुकी थीं, लेकिन उन्होंने कभी पहल नहीं की। कुछ समय बाद सुब्रमण्यम ने शादी के लिए प्रस्ताव रखा तो कविता ने झट से ‘हां’ कह दिया और दोनों विवाह बंधन में बंध गए।
उन्हें चार बार सर्वश्रेष्ठ पाश्र्वगायिका का फिल्मफेयर अवार्ड मिला है। साल 1995 में ‘1942 ए लव स्टोरी’ के लिए, 1996 में ‘याराना’ के लिए, 1997 में ‘खामोशी’ और साल 2003 में ‘देवदास’ के लिए उन्हें यह पुरस्कार दिया गया। यही नहीं, 2005 में उन्हें देश का चौथा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान, पद्मश्री मिला। कविता कृष्णमूर्ति आज भी पूरी तरह सक्रिय हैं और नई अभिनेत्रियों के लिए गाने को इच्छुक हैं।