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बुर्कापाल के 20Km के दायरे में मास्टरमाइंड हिड़मा, वहां तक नहीं पहुंच पा रही फोर्स

जगदलपुर. बुर्कापाल में जिस नक्सली हमले में 25 जवान मारे गए, उसकी तैयारी करीब चार महीने से चल रही थी। 120 नक्सलियों की चार टीमें अलग-अलग जगहों पर ट्रेनिंग ले रही थीं। बुर्कापाल के पूर्व सरपंच की हत्या करने के बाद नक्सली करीब महीनेभर तक यहां हर दूसरे-तीसरे दिन इकट्‌ठे होते थे। हमले के ठीक एक रात पहले गांव में हथियार पहुंचा दिए गए थे। इधर, हमले काे 16 दिन गुजरने के बाद फोर्स लगभग शांत बैठी है। फोर्स के पास पुख्ता सूचना है कि हमले का मास्टरमाइंड हिड़मा बुर्कापाल के 20 किलोमीटर के दायरे में हर रोज ठिकाने बदल रहा है। फिलहाल वह दुलेर इलाके में है।
बुर्कापाल के 20Km के दायरे में मास्टरमाइंड हिड़मा, वहां तक नहीं पहुंच पा रही फोर्स
बुर्कापाल हमले के बाद से ही यहां सब कुछ सामान्य नहीं है। भास्कर बुर्कापाल हमले की सच्चाई जानने पहुंचा था। बुर्कापाल हमले की एक खास बात यह थी कि इस हमले में नक्सलियों ने इलाके के 15 से 25 साल के आदिवासी युवकों को शामिल किया था। इसकी पुष्टि कैंप में तैनात जवानों ने भी की और बताया कि ज्यादातर यंग लड़कों के हाथों में ही एक-47 व एसएलआर जैसे हथियार थे। जंगलों से जो खबरें निकली हैं, उसके अनुसार हमले के लिए सुकमा, बीजापुर सहित अन्य इलाकों में रहने वाले युवकों को ट्रेंड किया गया था। हमले के बाद ज्यादातर लोग अपना घर-बार छोड़ चुके हैं। गांवों व जंगलों में सिर्फ फोर्स और नक्सली बचे हैं।नए लोगों या फोर्स के लोगों को देखते ही बचे-खुचे ग्रामीण भाग जाते हैं। कोई भी किसी भी मामले में कुछ
भी बोलने को तैयार नहीं।

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सरपंच को मारने के बाद 6 बार हुई नक्सली नेताओं की बैठक गांव में
बुर्कापाल कैंप से पहले सड़क के दो छोर पर बसे गांव में हमें एक बुजुर्ग महिला ने अपना परिचय तो नहीं दिया पर गोंडी में उसने कई चौंकाने वाली बातें बताई। जब उसका फोटो खींचने की कोशिश की तो ऐसा करने पर उसने कुछ भी बताने से इंकार कर दिया। बुर्कापाल सरपंच को मौत के घाट उतारने के बाद नक्सलियों ने तेजी से गांव में अपना दबाव बनाया। स्थानीय लोगों की मानें तो सरपंच को मारने के बाद करीब-करीब हर दूसरे दिन गांव में नक्सली नेताओं ने बैठक ली और गांव के लोगों को फोर्स पर हमले के लिए तैयार किया। बुर्कापाल गांव के लोगों का सीआरपीएफ कैंप में आना जाना था और यहां के जवानों से अच्छे संबंध थे इसके बावजूद नक्सली दहशत की वजह कोई भी व्यक्ति कैंप में यह खबर नहीं पहुंचा पाया। इस इलाके में मौजूद 5 से ज्यादा कैंपों में ग्रामीणों के सबसे ज्यादा करीब बुर्कापाल कैंप के जवान और अफसर ही थे।

हमले से पहले वाली रात हथियार गांव लाए गए
करीब आधा दर्जन से ज्यादा बैठकों के बाद नक्सलियों ने गांव में अपनी पकड़ बनाई। बुर्कापाल हमले से पहले वाली रात को ही गांव में एके-47 जैसे हथियार ले आए गए थे। ग्रामीणों को पहले ही बता दिया गया था कि उन्हें हथियार नहीं चलाने हैं, बस साथ देना है। हथियार गांव में पहुंचने के पहले ही कई घरों में नक्सली समर्थक आ चुके थे और वे हर ग्रामीण की गतिविधि पर नजर बनाए रखे हुए थे। गांव वालों की दिनचर्या में आए परिवर्तन का आभास कैंप के जवानों को भी था लेकिन वो समझ नहीं पाए की इतने बड़े हमले की तैयारी हो चुकी है। सुकमा पुलिस ने भी दो दिनों पहले एक 17 साल के युवक को बुर्कापाल हमले में शामिल होने के शक में हिरासत में लिया है और उससे पूछताछ की जा रही है। यह युवक सुकमा में रहकर पढ़ाई कर रहा था। बाद में वह नक्सलियों के साथ हो लिया था। हालांकि पुलिस ने अभी इस युवक का नाम और इसकी भूमिका की पुष्टि नहीं की है।
कमाडेंट बोले बिना हेलीकाप्टर की मदद के ऑपरेशन संभव नहीं
दोरनापाल से जगरगुंडा तक के सफर के बीच एक कैंप में भास्कर की टीम रुकी तो यहां सीआरपीएफ के कंपनी कमाडेंट का दर्द फूट पड़ा। उन्होंने कहा नेता-मंत्री सब कह रहे है कि नक्सलियों को मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा लेकिन इसके लिए संसाधनों की बेहद कमी है। संख्याबल तो है लेकिन जंगल में बिना हेलीकाप्टर की मदद के कार्रवाई संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक तौर पर वे कुछ नहीं कह सकते। लेकिन सच यहीं है कि इस इलाके में पांच हजार जवानों को भी ऑपरेशन के लिए भेजा जाए तो वो कुछ नहीं कर पाएंगे।
हर 5 किमी पर कैंप और सीआरपीएफ के जवान, पथरीली सड़क, वापसी की कोई गारंटी नहीं
पथरीली सड़क पर मीलों तक न गाड़ियां और न ही कोई इंसान, रास्ते में इक्का दुक्का मवेशी दिख जाए तो इसे अपनी खुशकिश्मती समझो। चारों ओर ऊंचे पहाड़ और घने जंगल। जंगलों के अंदर बीच-बीच में हथियारबंद लोग जिन्हें पहली नजर में देखने पर यह भी समझना मुश्किल कि ये जवान हैं या नक्सली। हर पांच किमी के बाद हथियारबंद जवान और सीआरपीएफ के कैंप।
 
यह मंजर है दोरनापाल से जगरगुंडा के बीच करीब 60 किमी सड़क का। पूरे सफर में इस बात की कोई गांरटी नहीं कि जो इस सड़क पर जा रहा है वो वापस आएगा या नहीं। बुर्कापाल हमले के बाद पूरे देश की नजर की इस इलाके पर है। पोलमपल्ली कैंप के बाद तो सड़क और भी वीरान हो जाती है। नक्सली इस पूरे इलाके को अपना लिब्रेटेड जोन कहते हैं और इलाके के हालातों और पूर्व में हो चुकी घटनाओं के बाद यहां पहुंचने वाले लोग भी इसे स्वीकार करते हैं।
 
अभी दुलेर इलाके में है हिड़मा, हर 4 घंटे में बदल रहा है अपना ठिकाना
बुर्कापाल हमले का मास्टरमाइंड नक्सली लीडर हिड़मा अभी भी इसी इलाके में है। फोर्स के पास पुख्ता सूचना है कि वह हर चार घंटे में अपनी लोकेशन बदल रहा है और बुर्कापाल कैंप से करीब 20 किमी दूर दुलेर इलाके में रह रहा है। दुलेर नक्सलियों के लिए सबसे सुरक्षित इलाका माना जाता है। इलाके में काम कर रहे सुरक्षा बलों के अफसरों की माने तो हिड़मा तक पहुंचना काफी मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं। हिड़मा की मौजूदगी की पुख्ता सुचनाओं के बावजूद इलाके की भौगाेलिक परिस्थितियों के चलते ऑपरेशन लांच नहीं हो पा रहे हैं।

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