बेनकाब होने लगा पाकिस्तान
लीगी अपसंस्कृति से उपजे एक राष्ट्र के रूप में पाकिस्तान कभी भी उन प्रतिमानों से अपने आप को दूर नहीं कर पाया जिनके जरिए जिन्ना एक बड़ी आबादी के साथ षड्यंत्र रचकर भारत का विभाजन कराने में सफल हो गये थे। पाकिस्तान बनने के बाद उन तत्वों का प्रकटीकरण कभी रावलपिंडी के मार्शलों द्वारा हुआ, कभी लोकतंत्र के नुमाइंदों द्वारा तो कभी या फिर प्राय: जिहादियों द्वारा। परिणाम यह हुआ कि कभी भारत का एक बेशकीमती भाग रहा पाकिस्तान आज एक अनिश्चित और आतंकवादी राष्ट्र के रूप में नजर आ रहा है। खास बात यह रही कि शुरू से ही पाकिस्तानी सेना और चरमपंथी गठजोड़ भारत के खिलाफ गतिविधियों में सक्रिय रहा। इनमें से एक यानि आर्मी भारत को दुश्मन नम्बर एक मानती है जबकि दूसरी ताकत यानि चरमपंथी भारत को सनातन शत्रु के रूप में पेश करती है। लेकिन अब इसके साइड इफेक्ट पाकिस्तान के लिए ही घातक सिद्ध होने लगे हैं। ऐसे में पाकिस्तान कार्रवाई तो करता है लेकिन अभी भी यह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है कि उसके लिए वास्तविक खतरा उसके अंदर से है, बाहर से नहीं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि सूफ़ी संत लाल शाहबाज़ क़लंदर की दरगाह पर हुए आतंकी हमले के बाद पाकिस्तानी सेना द्वारा कथित रूप से की गयी सर्जिकल स्ट्राइक और हाफिज सईद को आतंकवाद रोधी कानून (एटीए) की चौथी अनुसूची में शामिल करने के उसके निर्णय को किस नजरिए से देखा जाए? क्या पाकिस्तान इस प्रकार की कार्रवाई किसी बाहरी दबाव में कर रहा है या फिर यह उसकी नैतिक एवं स्वैच्छिक कार्रवाई है?
पिछले कुछ समय में एकत्रित हुयी सूचनाओं पर नजर डालें तो पाकिस्तान के सिंध, लाहौर, पेशावर, फ़ाटा और क्वेटा से लेकर सिंध प्रांत के सेहवान में सूफ़ी संत लाल शाहबाज़ क़लंदर की दरगाह तक आतंकी हमलों का एक ऐसा सिलसिला दिखेगा जो किसी भी देश की अंतरात्मा को झकझोर सकता है। दरगाह पर हमले के बाद पाकिस्तानी सेना की तरफ से अफगानिस्तान आतंकी कैम्पों पर कार्रवाई की गयी जिसमें मुख्य रूप से अफगानिस्तान में सक्रिय चरमपंथी संगठन जमात-उल-अहरार के प्रशिक्षण शिविर और चार कैंपों को तबाह किया गया है। पाकिस्तानी अखबारों से पता चलता है कि रावलपिंडी के सेना मुख्यालय ने अफगान राजनयिक को तलब कर अफगानिस्तान में रह रहे 76 चरमपंथियों को पाकिस्तान के हवाले करने की मांग की है। लेकिन पाकिस्तानी सेना की तरफ से की गयी यह मांग एक औपचारिकता भर है ताकि पाकिस्तान अपने अंदर व्याप्त आतंकवाद को अफगानिस्तान की ओर धकेलकर अंतर्राष्ट्रीय आइने में अपने चेहरे को पाक-साफ दिखा सके। यही नहीं अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत और हड्सन इंस्टीट्यूट में निदेशक हुसैन हक्कानी ने पुलिस और सेना की कार्रवाई पर सवाल खड़े करते हुए कहा है कि इसका मतलब है कि पुलिस जानती थी कि आतंकी कहां हैं, लेकिन उसने उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए कराची ब्लास्ट का इंतजार किया। उल्लेखनीय है कि लगभग तीन वर्ष पूर्व जब जनरल राहील शरीफ़ ने देश के सेनाध्यक्ष का पदभार संभाला था तो उन्होंने बार-बार दोहराया था कि पाकिस्तान को देश के भीतर के चरमपंथ से निपटने पर ज़ोर देना चाहिए ना कि विदेशों को ज़िम्मेदार ठहराना चाहिए। पाकिस्तान के नए सेनाध्यक्ष जनरल कमर बाजवा ने भी यही दोहराया है कि चरमपंथ देशी खतरा है न कि विदेशी। जबकि पाकिस्तान की सरकार आतंक की बड़ी घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार देश के भीतर चरमपंथी संगठनों की बजाय भारत या फिर अफ़गानिस्तान को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश करती रही है। यही वजह है कि पेशावर घटना के बाद पाकिस्तानी सेना द्वारा शुरू किए गये सैन्य ऑपरेशन ज़र्ब-ए-अज़्ब ने आरम्भ में चरमपंथियों की कमर तोड़ने में कुछ हद तक कामयाबी प्राप्त की थी लेकिन कुछ दिन बाद ही पूरा पाकिस्तान पुन: आतंकवाद की नई लहर की चपेट में आ गया जिसके परिणाम अब देखने को मिल रहे हैं।
अब हाफिज सईद को चौथी सूची में शामिल करने के बाद कुछ हद तक ऐसा लगने लगा है कि पाकिस्तान अब अपनी आंखे खोल रहा है, फिर वह चाहे ट्रंप प्रशासन के नजरिए को देखकर ऐसा कर रहा हो अथवा दुनिया में अलग-थलग (भारत के प्रयासों के कारण) पड़ते हुए देखकर। पाकिस्तान हाफिज सईद को आतंकवादी मानने के लिए क्यों विवश हुआ, यह प्रश्न अभी भी महत्वपूर्ण है। हाफिज सईद को आतंकवाद रोधी कानून (एटीए) की चौथी अनुसूची कानूनी तौर पर शामिल करने का अर्थ है कि वह किसी न किसी तरह से आतंकवाद से जुड़ा है। उल्लेखनीय है कि इस माह की शुरुआत में सईद को एग्जिट कंट्रोल लिस्ट (निकास नियंत्रण सूची) में डाला गया था, जो उसे देश छोड़कर जाने से रोकती है। इसके साथ ही उसके चार अन्य साथियों को भी आतंकवाद निरोधक कानून की अनुसूची में डाला गया है जिससे सम्भव है कि हाफिज सईद के लिए पर्दे के पीछे से अपनी आतंकी गतिविधियों को चलाना आसान न रह जाए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वह पाकिस्तान जो मुंबई हमले के मास्टर माइंड हाफिज सईद को धार्मिक-सामाजिक सेवा से जुड़ा बताकर भारत द्वारा दिए गये सबूतों को झुठलाता रहा या फिर उसका वॉयस सैम्पल (उफा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और नवाज शरीफ के बीच बातचीत में) देने से मुकरता रहा, वही पाकिस्तान अब स्वयं को आतंकवाद पर चारों ओर से घिरता हुआ देखकर अपने सुर बदलने लगा है। उल्लेखनीय है कि म्युनिख में अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा सम्मेलन में पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने हाफिज सईद को आतंकी करार देते हुए उसे देश के लिए गंभीर खतरा बताया है और देश हित में उसे नजरबंद किए जाने को उचित ठहराया। म्यूनिख में पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ने कहा है कि ’सईद समाज के लिए एक गंभीर खतरा पेश कर सकता है और इसलिए देश के वृहद हित को ध्यान में रखते हुए उसे नजरबंद किया गया है।’ हालांकि 26/11 का आरोपी सईद इससे पहले भी नजरबंद किया जा चुका है लेकिन वर्ष 2009 में पाकिस्तान की अदालत ने उसे मुक्त कर दिया था। इसलिए पाकिस्तान पर अभी भरोसा नहीं किया जा सकता। लेकिन आतंकी गतिविधियों में सईद की संलिप्तता के चलते अमेरिका ने उस पर एक करोड़ डॉलर का ईनाम रखा हुआ है, और ट्रंप का रवैया इस्लामी आतंकवाद को लेकर बेहद सख्त है इसलिए संभव है कि पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ कोई परिणामी कार्रवाई करने के लिए विवश हो।
बहरहाल पाकिस्तानी रक्षा मंत्री म्यूनिख से दुनिया को यह कहते हुए आश्वस्त करने की कोशिश कर रहे हैं कि पाकिस्तान इस युद्ध (आतंकवाद के खिलाफ) में अग्रिम मोर्चे पर तैनात देश है और वह अपनी जनता और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन जारी रखेगा लेकिन यदि पश्चिमी देशों की नीतियां इसे अलग-थलग करने वाली होती हैं तो इससे आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में मदद नहीं मिलेगी, बल्कि इससे आतंकवाद बढ़ेगा ही। लेकिन इधर पाकिस्तान के ख़ैबर पख्तूनख्वा हके चारसद्दा शहर में आतंकवादी अपना करिश्मा दिखाते हुए नजर आ रहे हैं। पाकिस्तान में पिछले दो सप्ताह के दौरान आतंकवाद की घटनाओं में हुयी अचानक यह वृद्धि बताती है कि पाकिस्तान अभी भी आतंकवाद के खिलाफ वास्तविक और नैतिक लड़ाई नहीं लड़ रहा है। इसलिए अब देखना यह है कि क्या अमेरिकी या वैश्विक दबाव में आतंकवाद के खिलाफ जिन कार्रवाइयों के लिए विवश हुआ है, उन्हें जारी रखते हुए भारत के प्रति अपना नजरिया बदल पाएगा अथवा नहीं? फिलहाल वह स्वयं ही बेनकाब होना तो शुरू ही हो गया है।