बॉम्बे हाईकोर्ट के अनुसार, भगवा ध्वज फहराना अपराध नहीं
बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि भगवा ध्वज फहराना और नारे लगाना अनुसूचित जाति एवं जनजाति (उत्पीड़न रोकथाम) कानून के तहत अपराध नहीं है। हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी इस कानून के तहत आरोपी बनाए गए एक व्यक्ति को गिरफ्तारी से पहले अग्रिम जमानत देते हुए की। जस्टिस आईए महंती और जस्टिस एएम बदर की पीठ ने राहुल शशिकांत महाजन नामक व्यक्ति को इस कानून के प्रावधानों के तहत कल्याण पुलिस द्वारा दर्ज एक मामले में अग्रिम जमानत दी। महाजन ने विशेष अदालत द्वारा पिछले साल अग्रिम जमानत याचिका खारिज किए जाने के बाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। जुलाई 2018 में हाईकोर्ट ने उन्हें गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दी थी।
महाजन के अनुसार, तीन जनवरी 2018 को दर्ज एफआईआर में अनुसूचित जाति एवं जनजाति (उत्पीड़न रोकथाम) कानून के तहत कोई अपराध नहीं बनता है। एफआईआर में उनकी भूमिका केवल भगवा ध्वज फहराना और नारे लगाना है। यह एफआईआर महाजन और अन्य के खिलाफ ठाणे जिले के कल्याण में कथित प्रदर्शनों को लेकर दर्ज की गई थी। ये प्रदर्शन 2 जनवरी 2018 को पुणे के भीमा-कोरेगांव गांव में हुई सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ आयोजित किए गए थे।
पुलिस ने महाजन की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि कानून के तहत आरोपी को जमानत या गिरफ्तारी से पूर्व जमानत नहीं दी जा सकती है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोप यह दिखाते हैं कि उसने भगवा ध्वज फहराया और जय भवानी, जय महादेव, जय शिवराय नारे लगाए। हमारी राय यह है कि भगवा ध्वज फहराना और नारे लगाना उत्पीड़न रोकथाम कानून के तहत दंडनीय अपराध नहीं है। इसलिए, उसे जमानत नहीं देने की दलील स्वीकार करने योग्य नहीं है।