बड़ी खबर: नॉर्थ कोरिया के हाइड्रोजन बम टेस्ट ने बढ़ाईं भारत की मुश्किलें!
भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को इस बात का भी यकीन है कि चीन भले ही नॉर्थ कोरिया के न्यूक्लियर टेस्ट की निंदा कर रहा हो लेकिन वह इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि इस्लामाबाद और प्योंगयांग के तेजी से न्यूक्लियर और बलिस्टक मिसाइलों के विकसित करने के पीछे उसी का हाथ है।
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पाकिस्तान ने बड़ी ही तेजी से अपने परमाणु हथियारों और मिसाइलों की संख्या में इजाफा किया है। परमाणु हथियारों के मामले में तो वह अब भारत से आगे निकल चुका है। अनुमान के मुताबिक पाकिस्तान के पास करीब 130-140 परमाणु हथियार हैं जबकि भारत के पास 110-120 हथियार हैं। पाकिस्तान ने अपने यूरेनियम आधारित न्यूक्लियर प्रोग्राम को भी आगे बढ़ाया है। अब वह प्लूटोनियम आधारित न्यूक्लियर प्रोग्राम पर काम कर रहा है। एक अधिकारी के मुताबिक प्लूटोनियम से हथियारों और मिसाइलों की क्षमता और बढ़ जाती है।
पाकिस्तान ने इसी साल जनवरी में नए बलिस्टिक मिसाइल अबाबील का पहली बार परीक्षण किया था। 2200 किलोमीटर की मारक क्षमता वाले इस मिसाइल में के साथ MIRV पेलोड को भी छोड़ा गया। MIRV पेलोड का अर्थ है कि एक ही मिसाइल कई परमाणु हथियार लोड किए जा सकते हैं और सभी अलग-अलग लक्ष्यों को निशाना बना सकते हैं। भारत भी अपने अग्नि सीरीज के मिसाइलों के लिए MIRV विकसित कर रहा है।
यह किसी से छिपा नहीं है कि चीन ने एक व्यवस्थित तरीके से पाकिस्तान और उत्तर कोरिया को बीते कई दशकों से मदद की है। साल 1976 में चीन के माओ जेदोंग और पाकिस्तान के जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच एक गुप्त समझौता हुआ था। पेइचिंग ने पहले इस्लामाबाद को छोटे यूरेनियम उपकरणों के डिजाइन मुहैया कराए और फिर सन 1990 में अपने परीक्षण स्थल से पाकिस्तान के परमाणु हथियार का परीक्षण तक किया।
इसी तरह चीन ने नॉर्थ कोरिया को भी मिसाइल डिजाइन और तकनीक के क्षेत्र में मदद की। पाकिस्तान ने भी परमाणु हथिया और तकनीक विकास के लिए नॉर्थ कोरिया को मदद दी। इसके बदले में प्योंगयाग ने इस्लामाबाद को मिसाइल डिजाइन तकनीक दी। उदाहरण के लिए पाकिस्तान के 1500 किलोमीटर की रेंज वाले ‘गौरी-1’ मिसाइल को नॉर्थ कोरिया के ‘नोडोंग’ मिसाइल की ही कॉपी माना जाता है। चीन के तमाम विरोधों के बावजूद इन तीनों देशों का यह मिलीभगत अभी भी जारी है, जिसने भारत की चिंताएं बढ़ा दी हैं।