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भारतीय राजनीति में एक नए युग की शुरूआत

संदर्भ – राहुल गांधी का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अध्यक्ष पद पर निर्वाचन

अजय सिंह

भारतीय राजनीति में एक नए युग की शुरूआत होने जा रही है। कांग्रेस पार्टी एक नए स्वरूप, नए कलेवर, नई सोच और दिशा दृष्टि के साथ एक बार फिर राजनीति के क्षितिज पर जाने के लिए कमर कस रही है। श्री राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद पर निर्विरोध निर्वाचन पूरी पार्टी में एक नई ऊर्जा का संचार होना है। राहुल जी की राजनीतिक पृष्ठभूमि में देश का एक पूरा गौरवशाली इतिहास जुड़ा है। गुलाम देश को आजाद करवाने में परदादा पंडित जवाहर लाल नेहरू, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के बाद दूसरी बड़ी शख्सियत थे। उन्होंने आजाद भारत के विकास की जो नींव रखी वह आसान नहीं थी। एक जर्जर लेकिन जज्बे वाला भारत उन्हें मिला था। उन्होंने जर्जरता को इस देश के लोगों के जज्बे से संवारने का काम किया। आधुनिक भारत के निर्माण का सपना नेहरू जी ने देखा और उसे हकीकत में बदला। उनकी बनाई गई विदेश नीति आज भी बरकरार है। दादी इंदिराजी ने भारत को दुनिया में सशक्त राष्ट्र के रूप में खड़ा किया। उन्होंने गुटनिरपेक्ष आंदोलन के जरिए भारत को पूरी दुनिया का सिरमौर बनाया। पिता जी राजीव गांधी ने आज के भारत की नींव 1985 में रखी। आज भारत में कम्प्यूटर और आईटी के क्षेत्र में जो क्रांति दिख रही है, वह राजीव जी की देन है। माता सोनिया गांधी जी के सानिध्य में उन्होंने राजनीति के व्यापक स्वरूप को जाना। पिता का साया उठने के बाद परिवार और पार्टी को जो मजबूती सोनिया जी ने दी यह राहुल जी के लिए एक बड़ा अनुभव था, जो उन्होंने जाना।

राहुल जी की राजनीतिक परिपक्वता को लेकर काफी सवाल उन लोगों ने उठाए जिन्हें वे उनके अस्तित्व के लिए खतरे के रूप में देखते हैं। बात उस समय की है जब सोनिया गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनाने की मांग पूरे देश से उठ रही थी,पर सोनिया जी ने प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर दिया। बाद में मनमोहन सिंह जी को संसदीय बोर्ड की बैठक में नेता चुना गया। बाहर मौजूद मीडिया ने राहुल जी से पूछा कि आपकी माता जी ने देश के इतने बड़े पद का जो त्याग किया है उस बारे में प्रतिक्रिया क्या है। तब उनका जवाब था कि “यह कोई नई बात नहीं है। त्याग-बलिदान तो कांग्रेस की परंपरा रही है” यह उत्तर बतलाता है कि उनके अंदर कांग्रेस और अपने परिवार के विचार और सोच कितनी गहरी पैठी है। राहुल जी को पद का मोह नहीं रहा। राजनीति में सेवा की परंपरा जो उनके परिवार से उन्हें मिली उसका ही निर्वाह उन्होंने 2004 से 2014 तक किया। उन पर यूपीए सरकार में मंत्री बनने का दबाव गाहे-बगाहे आता रहता था, लेकिन उन्होंने उसे कभी स्वीकार नहीं किया। कारण वे राजनीति को बगैर किसी पद के इस देश की तासीर को आज के संदर्भों में समझना चाहते थे। उसके अनुसार वे कांग्रेस की रीति, नीति सिद्धांतों और कार्यक्रमों को गढ़ना चाहते थे। वे लगातार यात्रा करते रहे। सरकार के जिन कामों से वे असहमत होते थे तो उसका विरोध भी खुलेआम वे करते थे। जिसे विपक्ष के लोग अकारण आलोचना का विषय बनाते थे।

राहुल गांधी का राजनीतिक अनुभव इसी बात से प्रकट होता है कि 2014 के पहले और उसके बाद उन पर “बिलो द बेल्ट” हमले हुए उनकी इमेज को सुनियोजित तरीके से निम्न और घटिया तरीके से बिगाड़ने की कोशिश, उनकी छवि खराब करने के भरपूर प्रयास हुए, पर राहुल जी कभी विचलित नहीं हुए। वही राहुल गांधी जब अमेरिका गए और उन्होंने कई एकेडिमिक फोरम पर बड़ी व्यापक्ता और उदारता के साथ अपनी बात रखी तो पूरी सरकार विचलित हो गई। उनकी इस परिपक्व अभिव्यक्ति से राजनीति में 40-40 साल से काम कर रहे आधा दर्जन से अधिक मंत्री उनके खिलाफ बयान देने खड़े हो गए। राहुल जी पलटे नहीं वे चलते रहे। उन्होंने कभी उन लोगों की चिंता नहीं की जो उन्हें राजनीति में खतरे के रूप में देखते हैं। वे जिस परिवार से हैं उस परिवार पर हर काल समय में ऐसे आरोप लगते रहे हैं लेकिन अंततः वे उबरकर चमकते हुए निकले और फिर से देश सेवा में जुट गए, 2008 का लोकसभा चुनाव सबने देखा था कि किस तरह सोनिया जी पर भाजपा ने हमले किए थे। राहुल जी राजनीति में वैचारिक मत भिन्नता को स्वीकारते हैं, लेकिन व्यक्तिगत मनगंढत आरोप, जब कुछ न चले तो धर्म का इस्तेमाल करने को वे राजनीति प्रदूषण बताते है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चाहे उन पर कितने ही व्यक्तिगत हमले करे लेकिन वे हमारे प्रधानमंत्री हैं, मैं उन पर कोई व्यक्तिगत आक्षेप नहीं लगांऊगा, सिर्फ नीतिगत मुद्दों और उनके वायदों की याद दिलाऊंगा। राजनीति में यह स्वच्छता और स्वस्थता कांग्रेस की परंपरा रही है। उस परंपरा को राहुल जी ने आत्मसात किया है। इसका अनेक बार उदाहरण हमें गुजरात चुनाव में स्पष्टतः दिखलाई देता है। उनके नेतृत्व में कांग्रेस अपने मूल सिंद्धातों और बुनियाद से जुड़ी रहेगी। यह भरोसा है ही साथ वे कांग्रेस को तरोताजा बनाएंगे। उसमें समय के परिवर्तन के लिए नई खिड़कियां खुलेगी जो हमेशा कांग्रेस को इस देश के मजदूर, किसान, गरीब, युवा, विद्यार्थियों, महिलाओं, व्यापारियों, समाज के अनुसूचित जाति एवं जनजाति, पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यकों को अपने से जोड़े रखेगी।

गुजरात चुनाव का जो माहौल राहुल जी ने अपने परिपक्वता से पलटा है वह एक मिसाल है। आज पूरी भाजपा, केंद्र के मंत्री, भाजपा अध्यक्ष उनकी पार्टी, 12 राज्यों के मुख्यमंत्री और खुद प्रधानमंत्री को अपने ही गुजरात में जहां 22 साल से शासन में है। विकास के गुजरात मॉडल के नाम पर वे दिल्ली तक पहुंचे, आज वहां उन्हें इतनी मेहनत करने की आवश्यकता क्यों पड़ गई। उसी युवा के सामने जिसे वे चुनौती के रूप में देखते ही नहीं थे। राहुल जी ने अपनी सूझबूझ और राजनीति अनुभव की विरासत से अपने को राजनीति का पंडित स्थापित करने वालों को जो चुनौती दी है, उसे पूरे देश ने बड़ी और फटी आंखों से देखा है। उन्होंने अपने पिता की हत्या को देखा है और झेला है। मां के तप को भी जाना है। आज उनका जो व्यक्तित्व हमारे सामने है, उसकी पृष्ठभूमि में उनके परिवार की वह सेकूलर विरासत है, जिसमें तप, त्याग, तपस्या और देश सेवा ही लक्ष्य है। वे एक ऐसे दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए हैं जिसका गुलाम भारत से आजाद भारत की यात्रा में जो योगदान है वह किसी अन्य दल का नहीं है। जो इस बात की आलोचना करते हैं कि गांधी परिवार ही क्यों उन्हें पता होना चाहिए कि गांधी परिवार के बिना भी कांग्रेस पार्टी रही है। इस पार्टी के अध्यक्ष की परंपरा ऐसे कई महान नाम हैं जो गैर गांधी परिवार के थे। करने के लिए आलोचना ठीक है, लेकिन वह तथ्य और प्रमाण पर हो तो उसका स्वागत होता है। देश के लिए कांग्रेस और गांधी परिवार के योगदान को देश की जनता और इस देश का कर्मठ कांग्रेसी कार्यकर्ता कभी नहीं भुला सकता। कांग्रेस को एक युवा सोच और ऊर्जावान नेतृत्व मिला है। इसका प्रतिफल हमें मिलने भी लगा है।

(लेखक मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं)

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