भारत के ज्यादातर सेक्युलर हिंदू विरोधी और मुस्लिम समर्थक हैं :तस्लीमा
दस्तक टाइम्स/एजेंसी-
नई दिल्ली. बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीना का कहना है कि भारत में ज्यादातर सेक्युलर हिंदू विरोधी और मुस्लिम समर्थक हैं। तस्लीमा ने यह बयान हाल ही में कई भारतीय लेखकों द्वारा अपने पुरस्कार लौटाए जाने के संदर्भ में दिया है। बता दें कि दादरी में बीफ की अफवाह पर हुए एक मर्डर और कन्नड़ लेखक कुलबुर्गी की हत्या के विरोध में अब तक 30 लेखक साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा चुके हैं। तस्लीमा का कहना है कि दादरी जैसी घटनाओं से वे डरा हुआ महसूस करती हैं। भारतीय लेखकों का पुरस्कार लौटाना सही है लेकिन विरोध के मामले में वे दोहरा रवैया अपनाते हैं। तस्लीमा ने एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में ये बातें कहीं।> तस्लीमा नसरीन मशहूर लेखिका हैं और बंग्लादेश से निकाली जा चुकी हैं। वे कई सालों से भारत में रह रही हैं। शुरुआत में वे पश्चिम बंगाल में रहीं। अब दिल्ली में रहती हैं। उनकी किताब ‘लज्जा’ को लेकर खूब विवाद हुआ था। मुस्लिम कट्टरपंथियों ने किताब को इस्लाम विरोधी बताया था। उनके खिलाफ फतवे जारी हुए। इस कारण उन्हें बांग्लादेश छोड़ना पड़ा था। नसरीन के पास स्वीडन की भी नागरिकता है।> तस्लीमा ने अपने इंटरव्यू में कहा- ”भारत में ज्यादातर सेक्युलर प्रो-मुस्लिम और एंटी हिंदू हैं। वे हिंदू कट्टरपंथियों का विरोध करते हैं लेकिन जब कोई मुस्लिम कट्टरपंथी ऐसा करता है तो उसे डिफेंड करते हैं।> लेखकों द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने पर अपने रिएक्शन में नसरीन ने कहा, ”लेखकों ने नाइंसाफी के खिलाफ अपने पुरस्कार लौटाने का फैसला लिया है, इसमें कोई बुराई नहीं है।’> सरकार द्वारा इसे गढ़ा हुआ आंदोलन कहे जाने पर तस्लीमा ने कहा,”मैं ऐसा नहीं सोचती। लेखक राजनीतिक और सामाजिक तौर पर सतर्क होते हैं।”> क्या लेखक दोहरा रवैया अपनाते हैं? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ”हां, मैं बिल्कुल सहमत हूं। जब विरोध की बात आती है तो ज्यादातर दोहरा रवैया अपनाते हैं।”> तस्लीमा ने कहा- जब पश्चिम बंगाल में मेरी किताब पर बैन लगाया गया था तो उस वक्त ज्यादातर लेखक चुप थे। मेरे खिलाफ पांच फतवे जारी हुए तो भी चुप थे। मुझे पश्चिम बंगाल से बाहर कर दिया। दिल्ली में मुझे महीनों हाउस अरेस्ट किया गया। मुझे भारत छोड़ने के लिए मजूबर किया गया। मेरे सीरियल को टीवी पर बैन कर दिया गया। जब ये सब हुआ तब ज्यादातर लेखकों ने कोई आवाज नहीं उठाई।> उन्होंने कहा- मैं अकेले जीने और बोलने के हक के लिए लड़ रही थी। ज्यादातर लेखक न केवल चुप थे, बल्कि सुनील गांगुली और शंखा घोष जैसे लेखकों ने उस वक्त बंगाल के सीएम बुद्धदेव भट्टाचार्य से अपील कर मेरी किताब को बैन कर दिया था।तस्लीमा ने कहा, ”भारत में नेता मुस्लिमों को लुभाने वाले बयान देते हैं। मुस्लिमों को मिलने वाले फेवर से कई हिंदू नाराज होते हैं। हालांकि, यह सच है कि कई बार मुस्लिमों को केवल इसलिए परेशान किया जाता है क्योंकि वे मुस्लिम हैं। यदि मुस्लिमों के साथ भारत में ऐसा बर्ताव होगा तो वे पड़ोसी मुस्लिम देशों में चले जाएंगे जैसे बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू अल्पसंख्यक भारत आने की सोचते हैं।”