भारत नहीं कर पा रहा फुटबॉल में क्रिकेट जैसा कमाल
भारत में घरेलू फुटबॉल की स्थिति सालों से खस्ताहाल है। हालांकि हमारे यहां इंग्लिश प्रीमियर लीग और ला लीगा चैंपियनशिप के काफी प्रशंसक हैं, लेकिन देश में फुटबॉल की स्थिति बेहतर नहीं है। फुटबॉल में भारत दुनिया की सौ टीमों में भी शामिल नहीं हो पाया है।
अगर क्रिकेट के खेल से तुलना करें तो फुटबॉल सूरज के सामने जुगनू जैसी हैसियत ही रखता है। इसका कारण माना जा रहा है देश में फुटबॉल संस्कृति का अभाव। हमारे देश में क्रिकेट का खेल गांव—गली में भी दिखाई देता है, जबकि फुटबॉल के मैदान बड़े शहरों में भी खाली दिखाई देते हैं। ग्रामीण स्तर पर तो फुटबॉल के मैदान मिलेंगे ही नहीं। इस खेल के भारत में न पनपने की सबसे वजह ये है कि गांव के स्तर पर इसकी आधारभूत सुविधाएं नहीं हैं और इस खेल में बेहतर करने की चाहत का अभाव भी दिखाई देता है।
हमारे देश के लोगों को इस खेल के आधारभूत नियमों और तकनीक की भी जानकारी नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी मन की बात के 18 वें संस्करण में फुटबॉल को लेकर चिंता जताई और इसे गांव-गली का खेल बनाने पर जोर दिया। यदि भारत में फुटबॉल को क्रिकेट के स्तर पर पहुंचाना है तो इसे गांव—गली और स्कूल से लेकर कॉलेज तक पहुंचाना होगा।
वहीं भारतीय टीम के कोच स्टीफन कान्सटेनटाइन का मानना है कि भारत में फुटबॉल संस्कृति के अभाव के कारण अधिकतर भारतीय फुटबॉलरों की खेल के बेसिक्स पर मजबूत पकड़ नहीं है। इस साल के शुरू में दूसरी बार भारतीय टीम का कोच पद संभालने वाले कान्सटैंटाइन का कहना है कि वर्षों तक जमीनी स्तर पर ध्यान नहीं देने के कारण खिलाड़ी काफी बाद में बेसिक्स सीखते हैं।
वैश्विक स्तर पर हम देखें तो अब तक आठ देशों ने फीफा विश्व कप जीता है और आप उनकी फुटबाल संस्कृति को देख सकते हो। उन देशों में बच्चे चार या पांच साल की उम्र से बेसिक्स सीखना शुरू कर देते हैं। भारत में खिलाड़ी छोटी उम्र में बेसिक्स नहीं सीखते हैं और जब वे बड़े होते हैं तो बेसिक्स को लेकर उन्हें जूझना पड़ता है।
आईएसएल ने जगाई आस इंडियन सुपर लीग देश में फुटबॉल को आगे बढ़ाने के लिए एक उम्मीद की किरण बनकर आया है। अभी बड़े शहरों में ही सही लेकिन इस ली से लोगों की फुटबॉल में रुचि बढ़ी है। आईएसएल की सबसे बड़ी चुनौती भारत में फुटबॉल की लोकप्रियता और स्थिति दोनों को बेहतर बनाने की है।
एक ओर यह युवा खिलाड़ियों के लिए यह एक बेहतर मंच साबित हो रहा है वहीं इसके टीवी पर प्रसारण दूरदराज के क्षेत्रों में भी फुटबॉल के बारे में जिज्ञासा बढ़ी है। लेकिन अभी इसे और निचले स्तर पर प्रतियोगिता के रूप में ले जाना होगा और इसके बच्चों में इसके प्रति रुचि जगानी होगी।