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दिल्ली हाईकोर्ट ने नवलखा की नजरबंदी खत्म करते हुए कहा कि उनकी हिरासत 24 घंटे को पार कर गई और इसकी इजाजत नहीं है।
नई दिल्ली। भीमा-कोरेगांव हिंसा के सिलसिले में नक्सल से जुड़े होने के आरोप में अपने घर में ही नजरबंद मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा की ट्रांजिट रिमांड संबंधी याचिका खारिज हो गई। दिल्ली हाईकोर्ट ने गौतम नवलखा को नजरबंदी से मुक्त करने की इजाजत दे दी दिल्ली हाईकोर्ट ने नवलखा को राहत देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते उन्हें आगे के उपायों के लिए चार हफ्तों के अंदर उपयुक्त अदालत का रुख करने की छूट दी थी, जिसका उन्होंने उपयोग किया है। हाईकोर्ट ने निचली अदालत की ट्रांजिट रिमांड के आदेश को भी रद्द कर दिया। मामले को शीर्ष न्यायालय में ले जाए जाने से पहले इस आदेश को चुनौती दी गई थी। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि नवलखा को 24 घंटे से अधिक समय हिरासत में रखा गया, जिसे उचित नहीं ठहराया जा सकता। बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट का यह आदेश सुप्रीम कोर्ट के हाल में दिए उस फैसले के बाद आया है, जिसमें नवलखा और चार अन्य को कोर्ट ने चार सप्ताह के लिए और नजरबंद रखने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने गौतम नवलखा के अलावा वामपंथी कार्यकर्ता कवि वरवर राव, वरनन गोंजालविस अरुण फरेरा और ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज की नजरबंदी चार हफ्तों के लिए बढाई थी। गौरतलब है कि नवलखा को दिल्ली में 28 अगस्त को गिरफ्तार किया गया था। अन्य चार कार्यकर्ताओं को देश के विभिन्न हिस्सों से गिरफ्तार किया गया था। शीर्ष न्यायालय ने 29 सितंबर को पांचों कार्यकर्ताओं को फौरन रिहा करने की एक याचिका खारिज करते हुए कहा था कि महज असहमति वाले विचारों या राजनीतिक विचारधारा में अंतर को लेकर गिरफ्तार किए जाने का यह मामला नहीं है। इन कार्यकर्ताओं को भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था। शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि आरोपी और चार हफ्ते तक नजरबंद रहेंगे, जिस दौरान उन्हें उपयुक्त अदालत में कानूनी उपाय का सहारा लेने की आजादी है।उपयुक्त अदालत मामले के गुण दोष पर विचार कर सकती है। महाराष्ट्र पुलिस ने पिछले साल 31 दिसंबर को हुए एलगार परिषद सम्मेलन के बाद दर्ज की गई एक प्राथमिकी के सिलसिले में 28 अगस्त को इन कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था. इस सम्मेलन के बाद राज्य के भीमा-कोरेगांव में हिंसा भड़की थी।
गौतम नवलखा कौन हैं
गौतम नवलखा दिल्ली में रहने वाले पत्रकार हैं और पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) से जुड़े रहे हैं। वह प्रतिष्ठित पत्रिका ‘इकनॉमिक एंड पोलिटिकल वीकली’ के संपादकीय सलाहकार हैं। उन्होंने सुधा भारद्वाज के साथ मिलकर गैर-कानूनी गतिविधि निरोधक कानून 1967 को निरस्त करने की मांग की थी। उनका कहना है कि गैरकानूनी संगठनों की गतिविधियों के नियमन के लिए पारित किए गए इस कानून का गलत इस्तेमाल हो रहा है, पिछले दो दशकों से अक्सर कश्मीर का दौरा करते रहे नवलखा ने जम्मू-कश्मीर में कथित मानवाधिकार हनन के मुद्दे पर काफी लिखा है।