शामली (उत्तर प्रदेश)। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर और शामली जिलों में सितंबर में हुई भयानक हिंसा के दंश अभी भी पीड़ितों को झेलने पड़ रहे हैं। दिसंबर की इस हाड़ कंपा देने वाली ठंड में शामली जिले के मलकपुर स्थित राहत शिविर में एक तिरपाल के नीचे रहने के लिए लोग मजबूर हैं। मलकपुर राहत शिविर सबसे बड़े राहत शिविरों में से एक है और यहीं से ठंड के कारण बच्चों के मौत की खबरें आ रही हैं। सितंबर में भड़की हिंसा के कारण करीब 5० ००० लोग बेघर हुए थे। इनमें अधिकांश मुस्लिम थे। इनकी जिंदगी अब बहुत कठिन दौर से गुजर रही है। मलकपुर शिविर में 2०० परिवार हैं और सभी के लिए केवल एक हैंडपंप है। मलकपुर शिविर में खड़ा एक बड़ा तंबू मस्जिद के रूप में काम कर रहा है और दूसरा स्कूल के रूप में काम कर रहा है। वहां केवल तीन अध्यापक हैं और 2०० छात्र हैं। रहने के लिए खड़े किए गए प्रत्येक कुछ तंबुओं के लिए लगभग दो वर्गफुट की जगह को कपड़ों से घेरकर स्नानागार की शक्ल दी गई है। वहां पर कुछ निर्माण कार्य भी हुए हैं। उपयुक्त सेप्टिक टैंक के साथ कुछ शौचालय भी बने हैं। लेकिन इन निर्माणों के भी गिराए जाने का खतरा है क्योंकि यह जगह उत्तर प्रदेश वन विभाग की है। इसी शिविर से पिछले कुछ दिनों से 3० बच्चों के मरने की खबरें आई हैं। इस शिविर को देखने से साफ पता चलता है कि कैसे इन शिविरों में कुछ स्वंयसेवी संस्थाओं की मदद मिली है। कुछ तंबुओं पर तैयब मस्जिद और कुछ पर ‘मनिटी ट्रस्ट लिखा है। वहां पर ऑक्सफेम का भी एक बड़ा टेंट है। राज्य प्रशासन प्रयास कर रहा है कि लोग अब अपने घरों को वापस लौट जाएं। अधिकारियों का दावा है कि मुआवजे का वितरण अब पूरा हो चुका है और बेघर लोगों को वापस लौट जाना चाहिए। कई लोग अपने घरों को इसलिए वापस नहीं लौटना चाहते क्योंकि उन्हें अपने जानमाल पर खतरा महसूस होता है।