नई दिल्ली: भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने बुधवार को कहा कि देश में शिक्षित युवक ‘वस्त्र निर्माता’ बनने की बजाय ‘दर्जी’ बन कर रह गए हैं और ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि देश अपनी प्रौद्योगिकी का निर्माण करने के बजाय प्रौद्योगिकी दूसरे देशों से लेने पर अधिक ध्यान दे रहा है। पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री ने यह भी सुझाव दिया कि सरकार को नई विकास योजनाएं पेश करने से पहले देश की प्रौद्योगिकीय शक्ति का आकलन करना चाहिए।
उन्होंने अफसोस जताया कि आईआईटी और आईआईएम से निकल रही अत्यधिक कौशल वाला मानव पूंजी केवल विकसित देशों की मदद कर रही है। ये विकसित देश उस दिशा में काम कर रहे हैं जो भारतीय समस्याओं पर विचार नहीं करता।
वह पीएचडी चैंबर द्वारा शैक्षणिक-औद्योगिक इंटरफेस को संस्थागत बनाने के विषय पर आयोजित पांचवें राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। कानपुर से लोकसभा सदस्य जोशी ने कहा कि देश अपनी प्रौद्योगिकी का निर्माण करने के बजाय प्रौद्योगिकी दूसरे देशों से लेने पर अधिक ध्यान दे रहा है जिससे शिक्षित युवा ‘वस्त्र निर्माता’ के बजाय ‘दर्जी’ बनकर रह जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि वाजपेयी जी ने चतुर्भुज सड़कों का अद्भुत विचार रखा था, लेकिन इसके तहत सड़कों का निर्माण कैसे किया जाएगा, इसकी अवधारणा पर काम पूरी होने से पहले ही वॉल्वो कंपनी ने एसी बसें उतार दीं, जो उन सड़कों पर चलाई जा सकती हैं। प्रौद्योगिकी लेना अच्छी बात है लेकिन अंतत: हमारी परियोजनाएं हमारे युवाओं के लिए रोजगार और राजस्व का निर्माण नहीं करतीं बल्कि दूसरों के लिए लाभ अर्जित करने की जमीन तैयार करती हैं।
जोशी ने कहा कि सरकारों को यह समझने की जरूरत है कि उन्हें इस तरह की योजनाओं पर आगे बढ़ने से पहले देश की प्रौद्योगिकी शक्ति का आकलन करने की जरूरत है ताकि उनसे देश को दीर्घकालिक नुकसान नहीं हो। उन्होंने कहा कि आईआईटी और आईआईएम जिस उद्देश्य के लिए स्थापित किए गए थे, उसकी पूर्ति नहीं कर रहे हैं। ये उन दिशाओं में काम कर रहे हैं जिनमें भारतीय समस्याओं पर विचार नहीं किया जाता।
जोशी ने कहा कि वे देश के शीर्ष संस्थान हैं। अगर उनका प्रशिक्षण देश में समस्याओं के हल के लिए यहां प्रतिभा को नहीं रोक पाता है तो इसका मतलब है कि भारतीय बाजार के लिए प्रशिक्षित करने में उनकी खासी रूचि नहीं है। आईआईटी और आईआईएम सिर्फ विकसित देशों को पूंजी हस्तांतरित कर रहे हैं। हम यहां अवसर पैदा नहीं कर रहे और इन संस्थानों से उत्तीर्ण होने वाले छात्र केवल दूसरे देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रबंधन में योगदान दे रहे हैं।
उन्होंने कहा कि वे क्या कर रहे हैं? क्या वे कृषि, बागबानी, अस्पताल, स्वच्छता, बिजली आपूर्ति के लिए प्रबंधक तैयार कर रहे हैं। क्या उन्होंने कोई ऐसा व्यक्ति दिया है जो दिल्ली में ट्रैफिक की स्थिति का प्रबंधक हो सके? नहीं वे सिर्फ खातों, मार्केटिंग और पैकेजिंग पर ध्यान दे रहे ताकि छात्र विदेश जा सकें और वहां बस सकें।