उन्होंने जोर देते हुए कहा कि भारत-श्रीलंका संबंधों को लेकर अनुभव सिद्ध नियम यह होना चाहिए कि यदि एक निर्वतमान सरकार का उनके देश के साथ पर्याप्त कार्य संबंध है तो आने वाली सरकार को भी इसे उचित मान्यता देनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि पिछले अनुभवों से स्पष्ट है कि सत्ता परिवर्तन के तुरंत बाद हमारे द्विपक्षीय संबंधों में व्यवधान का खतरा पैदा हो जाता है। दोनों देशों के लिए ऐसे आसानी से टाले जा सकने वाले व्यवधानों के गंभीर परिणाम हुए हैं।
यहां हिंदू के दो दिवसीय वार्षिक सम्मेलन, द हडल के तीसरे संस्करण, में राजपक्षे ने कहा कि 2014 में द्विपक्षीय संबंधों में दूसरी बड़ी बाधा उत्पन्न हुई। दुर्भाग्यवश, मेरी सरकार और निर्वतमान सरकार (यूपीए) के बीच मौजूद कामकाजी संबंध भारत में बनी नई सरकार (एनडीए) से नहीं रहे।
राजपक्षे ने कहा कि 1980 और 2014 में जो गलतफहमियां थीं उन्हें आसानी से टाला जा सकता था। यह जरूरी है कि दोनों देश इन गलतफहमियों को पैदा होने से रोकने के लिए एक तंत्र विकसित करें।
उन्होंने कहा कि दोनों देशों ने संप्रभुता, गुटनिरपेक्षता, गैर-हस्तक्षेप, पारस्परिक लाभ और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सिद्धांतों का हमेशा सम्मान किया और उस पर खरे रहे।
श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला श्रीसेना ने पिछले साल अक्टूबर में विवादित तौर पर राजपक्षे को प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया था। इससे एक अभूतपूर्व संवैधानिक संकट उत्पन्न हो गया था जो करीब 50 दिन तक चला। बाद में श्रीलंका के सर्वोच्च न्यायालय ने रानिल विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री के पद पर बहाल कर दिया था।