आयोग के इस निर्णय से सीएम व दोनों डिप्टी सीएम के साथ ही दोनों मंत्री भी एमएलसी बन जाएंगे। ऐसे में अब किसी भी मंत्री को इस्तीफा देने की जरूरत नहीं पड़ेगी। कार्यवाहक मुख्य निर्वाचन अधिकारी अमृता सोनी ने मंगलवार को चुनाव कार्यक्रम भी घोषित कर दिया। 31 अगस्त को अधिसूचना जारी होने के साथ ही नामांकन शुरू हो जाएंगे। नामांकन सात सितंबर तक जमा होंगे। नामांकन पत्रों की जांच आठ सितंबर को होगी। 11 को नाम वापसी का अंतिम दिन है।
18 सितंबर को सुबह नौ बजे से चार बजे के बीच मतदान होगा और इसी दिन शाम पांच बजे से मतगणना होगी। बता दें, जयवीर की सीट गत 29 जुलाई को रिक्त घोषित की गई थी। जबकि इसका कार्यकाल 5 मई 2018 तक ही है। हालांकि आयोग ने अंबिका चौधरी की रिक्त सीट पर कोई निर्णय नहीं लिया है। यह सीट नौ अगस्त को रिक्त घोषित हुई थी। इस सीट का भी कार्यकाल 5 मई 2018 तक है।
रही बात मुख्यमंत्री सहित उप मुख्यमंत्री और दो राज्य मंत्रियों को विधानसभा का उप चुनाव न लड़ाकर विधान परिषद का रास्ता चुनने की तो इसके पीछे पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की अपनी रणनीति है। नेतृत्व, इसी के तहत इनमें से किसी को भी विधान सभा उपचुनाव नहीं लड़ाना चाहता था। इसकी वजह यह नहीं है कि इनमें से कोई जनता से चुनकर नहीं आना चाहता था। इनमें से सिर्फ एक को छोड़कर बाकी सभी चुनाव लड़ते रहे हैं।
मुख्यमंत्री योगी और उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य चुनाव लड़कर ही लोकसभा पहुंचे हैं। योगी तो लगातार जीतते आए हैं। केशव मौर्य भी सांसद बनने से पहले विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं। रही बात दूसरे उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा की तो वह भले ही विधानसभा का चुनाव न लड़े हों लेकिन लखनऊ के महापौर का चुनाव लगातार दो बार जीतकर साबित कर चुके हैं कि उन्हें भी चुनाव लड़ने का अनुभव है। स्वतंत्र देव सिंह भी विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। बचे मोहसिन रजा तो परिषद में एक सीट पर उनका समायोजन हो ही जाता।
अब कर सकेंगे पूरा फोकस
भाजपा के रणनीतिकार अब आगे के चुनाव व उप चुनाव की तैयारियों को दबाव मुक्त होकर अंतिम रूप दे सकेंगे। विधान परिषद का सदस्य चुन जाने के बाद योगी और केशव लोकसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देंगे। पार्टी के नेता इस सीट पर होने वाले उपचुनाव तथा कानपुर की सिकंदरा सीट से भाजपा विधायक मथुरा पाल के निधन के कारण होने वाले उप चुनाव पर पूरा ध्यान दे सकेंगे। पार्टी के प्रदेश महामंत्री विजय बहादुर पाठक कहते हैं कि मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री या मंत्रियों को चुनाव लड़ाना कठिन नहीं था। पार्टी चाहती है कि जनता ने जिसे प्रतिनिधि चुना है उसी को पांच वर्ष सेवा का मौका मिले। इसीलिए जब विधान परिषद में सीटेें रिक्त हो गईं तो भाजपा ने इसे वरीयता दी। अब हम उपचुनाव पर भी पूरा फोकस कर सकेंगे।