अद्धयात्मदस्तक-विशेष

रामेश्वरम

दिनेश भवानीदत्त व्यास

दुश्मन, संघर्ष …जैसी कई हिन्दी व अन्य भाषाओं में अपने अभिनय की अमिट छाप छोड़ने वाले अभिनेता, अपने गुरु श्री दद्दा जी के प्रति पूर्ण समर्पित शिष्य, अपने शुभचिंतकों के सदा परिष्कार की लालसा रखने वाले मित्र व एक उच्च शिक्षित, जागृत, सजग, दबंग व तर्कशास्त्री, ज्ञानवान आशुतोष राणा को तो मैं जानता था परंतु ‘रामेश्वरम’ पढ़ने के बाद कहना पड़ रहा है कि इन्हें सीमाओं में परिभाषित नहीं किया जा सकता। कथाकार या साहित्यकार कहना पर्याप्त नही लगता।

वाल्मीकि कृत रामायण, तुलसीदास रचित रामचरितमानस, अन्य कई मनीषियों द्वारा विभिन्न भाषाएं व भाष्य तथा तीन दशकों पूर्व टेलीवीजन पर व्यूवरशिप के रिकॉर्ड तोड़ने वाला रामानन्द सागर द्वारा प्रस्तुत धारावाहिक ‘रामायण’ ने सनातन भारत के जन-मन में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम को आस्था का केन्द्र बनाये रखा है। राम कथा के अनेकों प्रसंगों, पात्रों, घटनाओं का विवरण, विश्लेषण, विवचना हर काल में हुए विद्वानों, लेखकों, भक्तों, तर्कशास्त्रियों व वैज्ञानिकों ने अपनी अनुभूति, ज्ञान व दृष्टिकोण से की हैं। मैने अपने जैसे सामान्य लोगों से वार्तालाप के दौरान पाया कि भले ही श्रीराम के प्रति आपार श्रद्धा हो, उनका सीता को वनवास में भेजना एक अजीब सा संशय और अनभिज्ञता पैदा करता है; भले ही रावण को खलनायक मानकर उसके वध को दशहरा पर्व में हर्षोल्लास के साथ मनाने में प्रसन्नता रहती हो, पर उसका एक प्रकांड विद्वान और शिव का असाधारण भक्त होना उसके कई निर्णयों पर संशय को जन्म देता है। कई और ऐसे प्रसंग हैं जो पूरी कथा के बीच अचानक उसके प्रवाह में अवरोधक व दिशाशूल के रूप में या अतार्किक प्रतीत होते हैं। मेरा यह भी मानना है कि जो लोग इनका सही संदर्भ मे अर्थ समझ पाये वो औरों को समझा नही पाये। जब मैं इन दो कथाओं को पढ़ रहा था तो ऐसा लगा मानो इस युग के वाल्मीकि या तुलसी साक्षात सामने हैं और मुस्कराते हुए मेरे संशयों को देख कुछ प्रसंगों को लिखते जा रहे हैं और विस्मित हुआ मैं पढ़ता जा रहा हूं। अद्भुत अनुभूति है यह।
श्री आशुतोष राणा ने राम कथा के दो प्रसंगों को जैसे प्रस्तुत किया है ‘रामेश्वरम्’ में वह अतुलनीय है। दुश्मन, संघर्ष …जैसी कई हिन्दी व अन्य भाषाओं में अपने अभिनय की अमिट छाप छोड़ने वाले अभिनेता, अपने गुरु श्री दद्दा जी के प्रति पूर्ण समर्पित शिष्य, अपने शुभचिंतकों के सदा परिष्कार की लालसा रखने वाले मित्र व एक उच्च शिक्षित, जागृत, सजग, दबंग व तर्कशास्त्री, ज्ञानवान आशुतोष राणा को तो मैं जानता था परंतु ‘रामेश्वरम’ पढ़ने के बाद कहना पड़ रहा है कि इन्हे सीमाओं में परिभाषित नहीं किया जा सकता। कथाकार या साहित्यकार कहना पर्याप्त नहीं लगता। आशुतोष राणा कृत सीता परित्याग व पार्थेश्वर महादेव कथा रामायण के समसामयिक व कालजयी होने का प्रमाण है जो आज व भविष्य मे भी जनमानस के परिष्कार में सहायक होंगी। और क्या कहूं, बहुत आनंदित हूं।

(दिनेश भवानीदत्त व्यास, निदेशक – एच. एण्ड आर. जॉन्सन टी.बी.के. लिमिटेड, मुंबई, महाराष्ट्र)

Related Articles

Back to top button