लखनऊ बालगृह में लिखी गई ‘बजरंगी भाईजान’ की पटकथा
लखनऊ। फिल्म ‘बजरंगी भाईजान की कहानी तो आपको याद ही होगी। वैसी ही कहानी एक बार फिर राजधानी के मोतीनगर स्थित राजकीय बालगृह (बालिका) में लिखी गई। फिल्म में एक मूकबधिर किशोरी को पाकिस्तान पहुंचाने की कहानी थी, यहां दो किशोरियों के साथ दो पड़ोसी देशों बांग्लादेश और नेपाल का मामला रहा। सलमान खान का किरदार स्वयं बालगृह ने निभाया।
करीब एक साल पहले बांग्लादेश की रहने वाली 14 वर्षीय सलीमा अपनी मौसी के साथ दिल्ली जा रही थी। अमरोहा स्टेशन पर पानी पीने के लिए उतरी, तभी ट्रेन छूट गई। जीआरपी ने उसे चाइल्ड लाइन को सौंप दिया। सलीमा न तो अपने बारे में और न ही घरवालों के बारे में ही कुछ बता पा रही थी। वहां के उसे राजधानी के मोतीनगर स्थित राजकीय बालगृह (बालिका) में लाया गया। सलीमा की भाषा भी समझ से परे थी।
महीनों काउंसिलिंग के बाद उसकी भाषा का पता चला कि वह बांग्लादेश की है। बालगृह की अधीक्षिका रीता टम्टा ने दिल्ली स्थित बांग्लादेश दूतावास से संपर्क किया। वहां की भाषा में उसकी बात कराई गई। सलीमा के बताए गए पते पर पुलिस ने उसके परिवारीजन को सूचना दी और उसके भाई मुहम्मद शाकिर गुरुवार को राजधानी आए। बहन के मिलने की आस खो चुके शाकिर ने बहन को देखा तो आंखें भर आईं। वह उसे अपने वतन वापस ले गया।
दूसरी किशोरी तसलीमुन्निशा अपने देश नेपाल से बहराइच आ गई थी, जहां पुलिस ने उसे पकड़ लिया। वह पुलिस को कुछ नहीं बता पा रही थी। 14 वर्षीय तसलीमुन्निशा को चाइल्ड लाइन के सिपुर्द कर दिया गया। करीब नौ महीने तक बहराइच के बालगृह में उसे रखा गया। वहां से उसे राजधानी के मोतीनगर स्थित राजकीय बालगृह (बालिका) लाया गया। यहां उसने धीरे-धीरे बोलना शुरू किया। टूटी फूटी भाषा में उसने बताया कि उसके माता-पिता बाजार गए थे।
सहेलियों के साथ खेलते हुए वह नेपाल बार्डर पार कर बहराइच आ गई। वापस जाने का रास्ता भी नहीं सूझ रहा था। जानकारी के बाद अधीक्षिका ने नेपाल दूतावास से संपर्क के बाद उसे भी उसके परिवारीजन के सिपुर्द किया। दोनों विदेशी किशोरियों को उनके परिवारीजन के सिपुर्द करने में शिक्षिका प्रेरणा व काउंसलर भारती संग बालगृह कर्मचारियों की भी अहम भूमिका रही। दोनों लड़कियों को उनके परिवारीजनों से मिलाकर काफी सुकून मिला।