विजया एकादशी 2 मार्च को / जाने क्या है इसका शुभ फल
फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी विजया एकादशी के नाम से जानी जाती है। इस बार यह व्रत 2 मार्च को आ रहा है। नाम के अनुसार ही इस एकादशी का व्रत करने वाला सदा विजयी रहता है। प्राचीन काल में कई राजा-महाराजा इस व्रत के प्रभाव से अपनी निश्चित हार को भी जीत में बदल चुके हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने रावण से युद्ध करने से पहले अपनी पूरी सेना के साथ इस व्रत को रखा था।
व्रत का महत्व और पूजन विधि
पद्म और स्कन्द पुराण में वर्णन
1. इस व्रत के विषय में पद्म पुराण और स्कन्द पुराण में वर्णन मिलता है। कहा जाता है कि जब जातक शत्रुओं से घिरा हो तब विकट से विकट से परिस्थिति में भी विजया एकादशी के व्रत से जीत सुनिश्चित की जा सकती है।
- इतना ही नहीं विजया एकादशी के महात्म्य के श्रवण व पठन मात्र से ही व्यक्ति के समस्त पापों का विनाश हो जाता है। साथ ही आत्मबल बढ़ जाता है।
- विजया एकादशी व्रत करने वाले साधक के जीवन में शुभ कर्मों में वृद्धि, मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है और कष्टों का नाश होता है। जो भी साधक इस एकादशी का व्रत विधिविधान और सच्चे मन से करता है, वह भगवान विष्णु का कृपापात्र बन जाता है।
व्रत विधि
2. इस दिन भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित कर उनकी धूम, दीप, पुष्प, चंदन, फूल, तुलसी आदि से आराधना करें, जिससे कि समस्त दोषों का नाश हो और आपकी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकें।
- भगवान विष्णु को तुलसी अत्यधिक प्रिय है इसलिए इस दिन तुलसी को आवश्यक रूप से पूजन में शामिल करें।
- भगवान की व्रत कथा का श्रवण और रात्रि में हरिभजन करते हुए उनसे आपके दुखों का नाश करने की प्रार्थना करें।
- रात्रि जागकरण का पुण्य फल आपको जरूर ही प्राप्त होगा। व्रत धारण करने से एक दिन पहले ब्रम्हचर्य धर्म का पालन
- करते हुए व्रती को सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए।
- व्रत धारण करने से व्यक्ति कठिन कार्यों एवं हालातों में विजय प्राप्त करता है।