विश्व शेर दिवस की पीएम मोदी ने दी बधाई
नई दिल्ली: वर्ल्ड लॉयन डे यानी विश्व शेर दिवस हर साल दुनियाभर में 10 अगस्त को मनाया जाता है। विश्व शेर दिवस के दिन लोगों को शेरों के प्रति जागरूकता बढ़ाने और उनकी घटती आबादी और संरक्षण के लिए कार्यक्रम किए जाते हैं। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के मुताबिक शेर लुप्तप्राय प्रजातियों की लिस्ट में शामिल है। एशिया में सबसे ज्यादा शेर भारत में पाए जाते हैं।
एशियाई शेर भारत में पाई जाने वाली सबसे बड़ी प्रजाति है। इसके अलावा अन्य चार रॉयल बंगाल टाइगर, इंडियन लेपर्ड, क्लाउडेड लेपर्ड और स्नो लेपर्ड हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस खास दिन की सभी देशवासियों को बधाई दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व शेर दिवस’ पर बधाई देते हुए कहा, “भारत को एशियाई शेरों का घर होने पर गर्व है। आपको जानकर ये बहुत ज्यादा खुशी होगी कि पिछले कुछ वर्षों में भारत की शेरों की आबादी में लगातार वृद्धि देखी गई है।”
पिछले साल जून में गुजरात सरकार द्वारा की गई जनगणना के मुताबिक शेरों की आबादी में वृद्धि देखी गई। भारत में 2015 में शेरों की आबादी 523 थी, जो 2020 में 674 हो गई है। यानी 5 सालों में 29 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। जनगणना रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उनका वितरण 2015 में 22,000 वर्ग किमी से बढ़कर 2020 में 30,000 वर्ग किमी हो गया है। शरों के इतिहास की बात करे तो आज से लगभग तीन मिलियन साल पहले एशिया, अफ्रीका, मध्य पूर्व और यूरोप में शेर स्वतंत्र रूप से घूमते थे। लेकिन बीते 100 सालों में शेर अपनी ऐतिहासिक सीमा के 80 प्रतिशत इलाके से गायब हो गए हैं। वर्तमान में शेर 25 से ज्यादा अफ्रीकी देशों और एक एशियाई देश में मौजूद हैं।
हाल ही में किए गए सर्वेक्षण से पता चला है कि शेरों की संख्या 30,000 से घटकर लगभग 20,000 हो गई है। भारत में पाए जाने वाले एशियाई शेरों की बात की जाए तो वह अब प्रतिबंधित गिर वन और राष्ट्रीय उद्यान और इसके आसपास के क्षेत्रों में ही पाए जाते हैं। हालांकि बीते दिनों की बात करे तो दशकों साल पहले ये पश्चिम में सिंध से लेकर पूर्व में बिहार तक फैले भारत-गंगा के मैदानों में स्वतंत्र रूप से घूमते थे।
शेर भारतीय पौराणिक कथाओं में भी पाया जाता है। कई पेंटिंग्स और साहित्य और शेर के शिकार के रिकॉर्ड से पता चलता है कि शेर धार्मिक, पौराणिक कथाओं, शाही प्रतीकों और भारतीय सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा रहा है। कहा जाता है कि भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान बड़े पैमाने पर शेरों का शिकार किया जाता था। उसी वक्त से उनकी अधिकांश वितरण सीमा और उनकी संख्या कम हो गई है।