शहीद मेजर अक्षय गिरीश की पत्नी ने कहा- आज भी आपके कपड़ों में आपकी महक आती है…
किसी अपने को खोने का दर्द वही जान सकता है जिसने कभी किसी अपने को खोया हो…संगीता गिरीश जी की उनके पति मेजर अक्षय गिरीश कुमार के लिए लिखी हुई उस फेसबुक पोस्ट को पूरा पढ़ा तो आंखें नम हो जाती हैं …संगीता गिरीश ने नगरोटा में शहीद अपने पति मेजर अक्षय गिरीश के बारे में एक पोस्ट लिखी है ..एक एक शब्द दिल पर चोट करता है …इनके छोटे से सुखी परिवार की तस्वीरें किसी को भी हिला कर रख देंगी .. संगीता गिरीश की ये फेसबुक पोस्ट शहीदों के परिवारों के उस दर्द को बयां करती है जिन्होंने देश की खातिर किसी अपने को खो दिया
अपने इस पोस्ट में संगीता गिरीश ने अपने पति मेजर गिरीश अक्षय कुमार के साथ पहली मुलाकात से लेकर उनकी मौत के दिन तक का पूरा वर्णन लिखा है ..दोनों ने किस तरह अपनी खुशियों का संसार बसाया …परिवार के मना करने पर भी संगीता मेजर के साथ उनकी उस पोस्टिंग पर आई जहां आकर उन्होंने मेजर को हमेशा के लिए खो दिया.. जो एक पल को भी एक दूसरे से अलग नहीं रह सकते थे उन्हें मृत्यु ने सदा के लिए अलग कर दिया …
आज की हमारी ये पोस्ट केवल संगीता गिरीश को सैल्यूट देने के लिए है.. उस वीर शहीद की पत्नी के प्रति मेरी संवेदनाएं व्यक्त करने के लिए है जो कठिन परिस्थितियों में अंतिम दिनों तक पति के साथ रहीं… आज हम यहाँ संगीता के पोस्ट का केवल एक अंश शेयर कर रहे है जो किसी के भी दिल को झकझोर देने के लिए और हमें यह बताने के लिए काफी है कि देश की खातिर अपनी जान न्यौछावर करने वाले शहीदों की पत्नियों की क्या मानसिक अवस्था होती है …क्योंकि इनसे बेखबर हम सब बड़ी-बड़ी बातें करते रहते हैं इस सत्य से बिल्कुल अनभिज्ञ कि देश की सुरक्षा के लिए कितने बलिदान दिए जाते हैं।
मेजर गिरीश की पत्नी लिखती है – यह 2009 की बात है। जब पहली बार उन्होंने मुझे प्रपोज किया था, और 2011 में हमने शादी कर ली और मैं पुणे शिफ्ट हो गई। दो साल बाद हमारी बेटी नैना पैदा हुई। अपने काम के चलते उन्हें लंबे समय तक बाहर रहना पड़ता था। क्योंकि मेरी बेटी छोटी थी इसलिए हमारे परिवारों ने कहा कि मुझे बंगलुरू वापस चले आना चाहिए। लेकिन मैं वहीं रुकी रही। मुझे हमारी खुद की बसाई उस दुनिया से प्यार था और मैं उसे नहीं छोड़ना चाहती थी। उनके साथ जिंदगी एक एंडवेचर की तरह थी।
2016 में उनकी पोस्टिंग नगरोटा में हो गई। हम अधिकारियों के मेस में रहते थे क्योंकि हमें घर तब तक नहीं मिला था। 29 नवंबर को हम अचानक सुबह 5.30 बजे गोलियों की आवाज़ सुनकर जागे। लगभग 5.45 बजे एक जूनियर उनके पास आया और बोला आतंकवादियों ने रेजिमेंट के तोपखाने को कब्जे में ले लिया है, आप कपड़े बदलिए और चलिए। जो आखिरी बात उन्होंने मुझसे कही थी, वह यह थी कि तुम इस बारे में ज़रूर लिखना।
दिन गुज़र रहा था और कोई ख़बर नहीं थी। मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। मैं खुद को नहीं रोक पाई और 11.30 बजे मैंने एक कॉल किया। उनकी टीम के एक सदस्य ने फोन उठाया और कहा – मेजर अक्षय को एक दूसरी जगह भेज दिया गया है। शाम को लगभग 6.15 बजे उनके कमांडिंग ऑफिसर और कुछ दूसरे अधिकारी मुझसे मिलने आए। उन्होंने कहा- मैम हमने अक्षय को खो दिया। सुबह 8.30 बजे वह शहीद हो गए थे यह सुनते ही ऐसा लगा की मेरी दुनिया खत्म हो गई थी। मैं एक बच्चे की तरह रो रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे मेरी आत्मा मेरे शरीर से अलग हो रही हो। दो और जवान शहीद हो गए थे लेकिन उन्होंने उन बच्चों, महिलाओं और पुरुषों को बचाया था जो आतंकियों के कब्जे में थे।
संगीता ने गिरीश की यादों को बहुत ही संजो कर रखा है और वो अपनी इस पोस्ट में लिखी थी की यूनिफॉर्म, उनके कपड़े और वो बाकी सारी चीजें जो हमने इतने सालों में इकट्ठा की थीं उन्हें ट्रक से लेकर आ गई। मैंने अपने आंसुओं से लड़ने की बहुत कोशिश की। मैंने उनकी रेजीमेंट की जैकेट को नहीं धोया और मुझे जब भी उनकी याद आती थी मैं उसे पहन लेती थी। उसमें आज भी उनकी महक आती है। शुरुआत में नैना को ये समझाना कि क्या हुआ, बहुत मुश्किल था लेकिन अब उसके पापा आसमान में एक सितारा हैं। आज मैंने उन सारे चीजों से जो हमने इकट्ठा की थीं अपनी एक जगह बना ली है। हमने साथ में जो यादें बनाई थीं और चीजें इकट्ठी की थीं उनमें, उनकी तस्वीरों में वो आज भी ज़िंदा हैं।