मण्डला । मण्डी प्रांगण भुआबिछिया में मानव कल्याण के लिए श्रीराम कथा महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है छठवें दिवस की कथा में राष्ट्रीय मंच की प्रवचनकर्ता दीदी शांति श्रिया ने भगवान राम की विवाह उपरांत अयोध्या आगमन राम राज्य अभिषेक की तैयारी केकई-मंथरा, वनगवन केवट संवाद चित्रकूट आगमन तक के प्रसंगों पर विस्तृत विवेचन किया। उन्होंने कहा मानव जीवन के कल्याण राक्षसों के संहार के लिए भगवान राम ने माता पिता की आज्ञा के पालन में राज्य की उत्तराधिकारी होते हुए भी 14 वर्ष की बनवास स्वीकार किया। कौशल्या ज्ञान का सुमित्रा भक्ति का और कैकई किया का रूप है। राजा दशरथ को चार पुत्र के रूप में धर्म अर्थ, काम, मोक्ष प्राप्त हुए। माता सीता के अयोध्या आगमन पर मुख दिखाई में कौशल्या ने सीता को सर्वदा के लिए राम कैकई ने अपना कनक भवन और सुमित्रा ने अपने पुत्र लक्ष्मण को पुत्र के रूप में सौपा। अहंकार से अहंकार को नहीं जीता जा सकता, जीतने के लिए विनम्रता होना चाहिए। कोध को क्षमा से कृपा को दान से जीता जा सकता है। संत और दुष्ट दोनां दुख देते हैं संत बिछड़ने पर और दुष्ट मिलने पर पीड़ा पहुंचाते है। प्रवचनकर्ता शांति श्रिया ने एक एक प्रसंग की जीवंत प्रस्तुति करके श्रोताओं की आंखे नम कर दी। कई बार प्रसंगों में श्रोताओं के आंख से आंसू छलक पड़े। उन्होंने सामाजिक परिवेश पर मां पुत्री सास मायके और ससुराल के जीवन परिवेश पर प्रकाश डालते हुए कहा सीता जैसी बहु और सुनैना जैसी मां कौशल्या जैसा जीवन चरित्र परिवार में आ जाए तो घर स्वर्ग सामान हो सकता है। बदलते सामाजिक परिवेश में उन्होंने कहा संस्कृति खतरे में है। संस्कृति और सभ्यता को बचाने के लिए राम के आदर्श को एवं रामचरित्र मानस को मानव जीवन में उतारना होगा। धर्म की हानि मानव मूल्यों में गिरावट से होती है। सत संग का असर जीवन में बहुत मुस्किल से आता है कुसंग का असर त्वरित प्रभाव करता है।