सुप्रीम कोर्ट ने छह महीने की अनिवार्य अवधि को ख़त्म कर के दिया तुरंत तलाक
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक दंपति को तलाक के लिए छह महीने की अनिवार्य अवधि (कूलिंग ऑफ पीरियड) में छूट देते हुए अलग होने को अनुमति दी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस अनूठे फैसले में नौजवान पति-पत्नी को आजीवन दोस्त बने रहने की शर्त पर तलाक की इजाजत दे दी है। इस नतीजे पर पहुंचाने वाले सुप्रीम कोर्ट ने दोनों के बीच वैवाहिक संबंध में पड़ी दरार को पाटने की हरसंभव कोशिश की लेकिन वह नाकामयाब रहा। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के जरूरी छह महीने के कूलिंग ऑफ पीरियड का को भी खत्म कर दिया। दंपति की 2016 में विद्यावती (परिवर्तित नाम) और विद्याधर (परिवर्तित नाम) के बीच हिन्दू रीति-रिवाज के साथ शादी हुई थी और वे एक महीने तक एक साथ रहे थे। विवाद होने पर वे अलग हो गये और पति ने तलाक की अर्जी दायर कर दी। महिला ने दिसंबर 2017 में गुजरात के आणंद में पति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। कोर्ट ने आपसी समझौते की शर्तों पर गौर किया और कहा कि आपसी रजामंदी से तलाक का आदेश जारी किया जाता है। इस पति-पत्नी के रिश्ते में पड़ी दरार को मिटाने की कोशिश की। पीठ ने पति-पत्नी से खुद बातचीत भी की और विवाद को सुलझाने का प्रयास किया, लेकिन बात नहीं बनी। लिहाजा सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद-142 (विशेषाधिकार) का इस्तेमाल करते हुए तलाक के जरूरी छह महीने के के ‘कूलिंग ऑफ पीरियड’ को खत्म कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘‘पति और पत्नी दोनों हमारे सामने उपस्थित हैं, जो सुशिक्षित हैं। हमने उनसे लंबी बात की है। हम इस बात पर राजी हैं कि उन्होंने दोस्त के रूप में अलग होने के लिए सोचा समझा फैसला किया है। पक्षों के बीच मुकदमे की पृष्ठभूमि देखते हुए, हम इस बात पर सहमत हैं कि पक्षों को छह और महीने का इंतजार कराने की कोई तुक नहीं है।’’ सुप्रीम कोर्ट ने पति रोहित के वकील दुष्यंत पराशर से कहा कि अंतिम समझौते के तौर पर युवती विद्यावती को रुपये दिए जाए। पति इसके लिए तैयार हो गया। वहीं विद्यावती ने कहा कि वह विद्याधर के खिलाफ दर्ज सभी मुकदमे वापस ले लेंगी। विद्याधर ने जहां तलाक की याचिका दिल्ली में दायर की थी वहीं पत्नी ने गुजरात में दहेज उत्पीड़न व घरेलु हिंसा अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कराया था।