जगदलपुर : छत्तीसगढ़ में ग्रीष्मकाल की इस काल में बस्तर की जीवन दायिनी इंद्रावती नदी में पानी नहीं के बराबर बह रहा है और मध्य बस्तर में तो इस पानी की कमी का अनुभव किया ही जा रहा है। साथ ही बस्तर के दक्षिण-पश्चिम भाग में इसका प्रभाव और अधिक संकट लेकर आ रहा है। इस क्षेत्र के इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान सहित भैरमगढ़ अभयारण्य के जंगली जानवरों व सैकड़ों गांव के लोगों को पानी की कमी से जूझना पड़ रहा है। यह क्षेत्र बस्तर में इंद्रावती के पानी के सहारे ही पिछले सैकड़ों वर्षों से निर्भर हैं। अब इस क्षेत्र के लिए जीवन की आशा इंद्रावती में ही जब पानी नहीं रहेगा तो इस क्षेत्र की क्या स्थिति होगी यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। इस संबंध में यह एक आशाजनक संकेत है कि बस्तर में इंद्रावती नदी में एनीकटों का बड़ी मात्रा में निर्माण हुआ है, जिसके कारण उपयोग के लायक पानी सीमित मात्रा में मिल रहा है। नदी में पानी कम होने से इस समय बोध मछली और कुछ छोटे मगरमच्छों का शिकार भी ग्रामीणों द्वारा किया जा रहा है। इन जलचर प्राणियों को और कहीं जाने के लिए स्थान ही नहीं है। ऐसी स्थिति में आने वाले दिनों में बस्तर की जैवविविधता पर भी गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। इसके साथ ही पूरे पश्चिमी भाग में वन्य प्राणियों के जल की तलाश में भटकते हुए ग्रामीणों के द्वारा शिकार भी बनाया जा रहा है। वन्य प्राणियों के लिए जंगलों में स्थित सभी नाले व भूमिगत जलश्रोत भी सूख चुके हैं। इस स्थिति में बस्तर के पर्यावरण को जबरदस्त नुकसान पहुंच सकता है।