स्वर्ण मंदिर के लंगर में एक दिन में इतने क्विंटल आटे से बनती हैं रोटियां, जानकर होश उड़ जायेंगे
गोल्डन टेंपल में लगने वाले लंगर के लिए 50 क्विंटल गेहूं, 18 क्विंटल दाल, 14 क्विंटल चावल, हजारों क्विंटल आटा और लगभग 7 क्विंटल दूध का इस्तेमाल रोजाना होता है. जानिए लंगर से जुड़ी और रोचक बातें.
लंगर में 2 लाख से ज्यादा लोग खाते हैं धार्मिक कार्यक्रमों में यहां लगने वाले लंगर में 2-3 लाख से ज्यादा लोग भोजन प्रसादी पाते हैं. जबकि यहां एक दिन में 10 लाख लोगों को भोजन प्रसाद खिलाने तक व्यवस्था है. खास बात यह है कि लंगर में बंटने वाला भोजन प्रसाद का खर्चा और सामान भक्तों द्वारा ही दिया जाता है.
यहां तैयार होने वाले खाने को कई सौ स्वयं सेवक खाना खाने के लिए आने वाले लोगों के लिए परोसते हैं. इसमें उनकी कोई उम्र निर्धारित नहीं है फिर चाहे वो 8 साल का हो या 80 साल का, सभी को यहां सेवा करने का अधिकार है.
यहां लंगर के लिए रोजाना 100 क्विंटल चावल और प्रति क्विंटल चावल पर 30-30 किलोग्राम से अधिक दाल और सब्जियों का उपयोग होता है. इसके अलावा हजारों क्विंटल हरी सब्जियां, तेल, मसालों का इस्तेमाल होता है. चपाती बनाने वाली आठ मशीनें हैं, जिनसे हजारों चपाती बनाई जाती है. इसके अलावा महिला और पुरुष स्वयंसेवी हाथ से भी चपाती बनाते हैं.
इसके अलावा सैकड़ों किलोग्राम जलावन का भी इस्तेमाल किया जाता है. यही नहीं, 250 किलोग्राम देसी घी की भी खपत है. औसतन इस रसोई घर में खाना बनाने के लिए हर रोज 5 हजार किलोग्राम लकड़ी और सौ से ज्यादा एलपीजी गैस सिलेडंर का इस्तेमाल होता है.
रोटियों के लिए तकरीबन 50 क्विंटल आटा रोजाना यहां खपत होता है. एक अनुमान के मुताबिक यहां पर हर रोज 2 लाख से लेकर 3 लाख के बीच रोटियां बनती हैं. इसके लिए यहां 11 विशालकाय तवे लगे हुए हैं.
जबकि छुट्टियों और तीज त्योहारों पर रोटी मेकिंग मशीन से रोटियां बनाई जाती हैं. जिसे लेबनान के भक्त ने गुरुद्वारे को दान में दिया था. इस मशीन से एक घंटे में 25 हजार रोटियां बनाई जा सकती हैं.
स्टील की लाखों थालियां, गिलास और चम्मच हैं, जिनका उपयोग यहां श्रद्धालु करते हैं और इनकी सफाई भी श्रद्धालु खुद स्वेच्छा से करते हैं. साथ ही, स्वयंसेवी कार्यकर्ता भी बर्तनों की सफाई में लगे रहते हैं.
गोल्डन टेंपल से जुड़े एक अधिकारी का कहना है कि हर घंटे में यहां 30 हजार कप चाय तैयार की जाती है. इतनी मात्रा में चाय बनाने के लिए 6 लोगों की टीम है. चाय के लिए 30 किलोग्राम दूध पाउडर को 300 लीटर पानी के साथ उबाला जाता है. जब दूध पूरी तरह तैयार हो जाता है तो उसमें 50 किलो चीनी और चायपत्ती डाली जाती है.
स्वयं सेवक के काम करने के बाद उनको कटोरे में चाय दी जाती है. यहां पर सभी तरह का तरल पदार्थ गिलास की जगह कटोरे में परोसा जाता है. दुनिया भर के लोगों से मिलने वाले चंदे और दान के लिए यहां पर कई काउंटर भी लगाए जाते हैं जैसे ठंडे पानी के लिए, जो कि लोगों को काफी सस्ते दामों पर दिया जाता है.