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स्‍मार्ट सिटी बनाम अपराधियों का अड्डा- ये क्‍या हो गया शहर को

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इंदौर। एक ओर इंदौर को स्मार्ट सिटी बनाने की तैयारी चल रही है और इधर, आए दिन रिश्तों के खून हो रहे हैं। क्या ऐसा शहर रहने लायक हो सकता है? सोमवार को बचपन का दोस्त हत्यारा बना तो कई पति-पत्नी ने एक-दूसरे का खून बहाया। निर्दयी पिता ने नवविवाहिता बेटी की कोख और मांग दोनों उजाड़ दिए। ऐसे एक नहीं बीते दो महीनों में दिल दहला देने वाली करीब 10 हत्याएं हुई हैं। शांत, शालीन और संबंधों को निभाने वाले शहर को आखिर क्या हो गया..?

शुरुआत करें स्कूल से लौट रही बेटी को घर से लेने निकील मां कविता के लापता होने की छोटी सी घटना से। लापता होने के तीसरे दिन लोग उस वक्त सन्ना रह जाते हैं जब कविता का शव छह टुकड़ों में मिलता है। यह घटना बीते कुछ दिन ही गुजरे थे कि नेता-अधिकारियों की प्रताड़ना और फाइल गायब होने से परेशान निगम इंजीनियर ने आत्महत्या कर ली तो एक निगम अफसर दामाद की हत्या कर लाश सड़क पर फेंक देता है।

इन दोनों घटनाक्रम के दो दिन बाद ही पति की प्रताड़ना से परेशान मां एक और तीन साल के बच्चों की हत्या कर खुद फांसी पर झूल जाती है। …और इन सबसे उलट, पुलिस और सेना के बीच संघर्ष के बाद थाने में हुई तोड़फोड़ की घटना शहर की सुरक्षा-व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए माथे पर एक और दाग लगा जाती है। इन सभी घटनाक्रमों पर नईदुनिया की विशेष रिपोर्ट…

सुरक्षित नहीं महिलाएं

24 अगस्त को कविता मित्रबंधु नगर (कनाड़िया रोड) से अचानक लापता हो गई थी। दरदर भटने के बाद पति संजय थाने पहुंचा और पत्नी की गुमशुदगी दर्ज करवाई। दो दिन बाद कविता छह हिस्सों में कटी मिली। इस घटना ने महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस घटना ने पूरे शहर को झकझोर दिया है। पुलिस करीबी, परिचित और परिवार से जुड़े व्यक्ति के शामिल होने का दावा कर दिन काट रही है।

यहां से गुजरने में कांप जाती है रुह

रहवासी गायत्री के मुताबिक कविता बेटी यशस्वी को लेने बस स्टॉप पर आती थी। स्टॉप से 300 मीटर दूर तक कविता एक्टिवा चलाते हुए आ रही थी। अचानक गायब हो गई। अब यहां से गुजरने में भी डर सताता है। आते-जाते बच्चे पूछते हैं ‘आंटी को यहां से कौन ले गया।” मासूमों से सवाल सुन रुह कांप जाती है।

मां-पिता और भाइयों ने गर्भवती बेटी का गला घोटा, दामाद को मार डाला

शहर की पहचान अदब और संस्कार के लिए देशभर में है, लेकिन इसी शहर में राखी पर मां-पिता और भाइयों ने बेटी का सुहाग उजाड़ दिया। जन्म लेने के पहले ही बच्चे की कोख में हत्या कर दी। एक तरफ शहर आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है, सरकार बेटियों की बचाने के लिए दिन-रात एक कर रही है, वहीं दूसरी ओर अर्चना जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रही है। दरअसल, अर्चना प्रेमी हेमेंद्र से लव मैरिज के बाद पहली बार रक्षाबंधन पर पिता के घर पहुंची थी। वह बड़े उत्साह से भाइयों के लिए राखियां खरीद कर लाई थी, लेकिन जिन हाथों से वह रक्षा की आस बांधे हुए थी उन्हीं ने पति हेमेंद्र को मार डाला।

पिता परसराम आरोलिया और मां विमला ने पीटा और भाइयों ने दुपट्टे से गला घोट दिया। हेमेंद्र की हत्या के बाद भी हत्यारे नहीं माने। उन्होंने अर्चना का भी गला कसा और पत्थर से वार किए। उसके पेट में पल रहे बच्चे को मार दिया। अर्चना को भी मरा समझकर फेंक दिया।

इतना दबाव की जान दे दी

आरटीआई में मांगी गई 110 फाइलों की जानकारी के मामले में जब 34 फाइलें नहीं मिली तो अफसरों और पूर्व पार्षद लाल बहादुर वर्मा ने निगम के ही एक उपयंत्री पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। उपयंत्री नरेश पिता टेऊमल नेहलानी ने 76 फाइलें दे दी थी, लेकिन 34 फाइलें या तो ठेकेदार घर ले गए थे या कुछ निगम मुख्यालय में थी।

उपयंत्री नेहलानी पर इतना प्रेशर डाला गया कि वह फाइल खोजकर न दे सके। उन्हें पूर्व पार्षद के गुंडों ने पीटा। वर्मा और सिटी इंजीनियर नरेंद्रसिंह तोमर ने घर आकर जलील किया। अपशब्द कहे और बेटी व पत्नी को अगुवा करने तक की धमकी दे दी थी। उपयंत्री इतने डिप्रेशन में आ गए कि उन्हें बेड रेस्ट की सलाह मिली। आखिरकार 29 अगस्त की सुबह नेहलानी ने फांसी लगा ली।

दो बच्चों का गला घोटकर फांसी पर झूल गई मां

शादी के बाद से ही पति की प्रताड़ना झेलने वाली श्रद्धा जाट को आखिर एक ही रास्ता सूझा। उसने पहले तीन साल के बेटे राजवीर का गला घोटा। फिर एक साल की बेटी परी को गले में दुपट्टा कसकर मार डाला और फिर खुद फंदे पर झूल गई। शादी के चार सालों में श्रद्धा को पति योगेश ने कभी चैन नहीं लेने दिया। जब भी शराब की तलब लगती वह पत्नी को पीटता, रुपए की जरूरत होती तो प्रताड़ित करता।

नहीं मिलने पर हाथ-पैर बांधकर पलंग के नीचे पटक देता और तो और बात जब ज्यादा बढ़ जाती तो छह-छह महीने घर छोड़कर गायब हो जाता था। श्रद्धा जब रक्षाबंधन का त्योहार मनाकर पति के घर लौटी तो वह लापता था। वह दो दिन पहले ही पांच लाख की मांग कर रहा था और श्रद्धा के जेवर भी बेच चुका था। आखिर में श्रद्धा ने वह कदम उठा लिया, जिसके बारे में किसी ने सोचा तक नहीं था।

बचपन का दोस्त बन जाता है कातिल

सदर बाजार इलाके में साथ में पढ़े, जब-जब जरूरत पड़ी तो प्रापर्टी ब्रोकर ने मदद की, लेकिन इस रिश्ते को अचानक क्या हो गया कि उसने महज डेढ़ लाख के लेनदेन में दोस्त की जघन्य हत्या कर दी। इस दोस्ती की कीमत क्या डेढ़ लाख रुपए ही थी या यहां भी रिश्तों का कत्ल हुआ है।

पति को भी कुछ नहीं समझा

पड़ोसी के प्रेम में अंधी बनी पत्नी कीर्ति बाला ने बच्चों तक को नहीं देखा और आनन-फानन में प्रेमी और उसके दोस्तों की मदद से पति तुलसीराम जोशी का गला घोटकर हत्या करवा दी। फिर उसे एक चैंबर में भी फिंकवा दिया। उसे पति की हत्या का जरा भी मलाल नहीं था।

बच्चों को भी नहीं देखा

गणेश नगर में रहने वाले सुरेश प्रसाद बनवारी ने 30 वर्षीय पत्नी की चाकुओं से गोदकर हत्या कर दी। हत्या उस समय की जब 10 साल की बेटी जाग रही थी। मंजू पर चरित्र शंका करते हुए पति ने उसे मारकर ही दम लिया। अब बच्चे दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर हैं।

आज तक पता नहीं क्या हुआ था उस रात

पंचमूर्ति नगर में रहने वाला राजेश सोलंकी आर्टीफिशियल फूल बनाता था और लोगों की जिंदगी में खुशियां भरने का काम करता था, लेकिन उस रात अचानक पत्नी बबीता का गला घोटा और फिर खुद फंदे पर झूल गया। दोनों बच्चों को दिन में ही नाना के घर भेज चुका था। आज तक उस रात का काला सच सामने नहीं आ पाया है।

पारिवारिक तनाव या विवाद में उठाए कदम

यह शहर मेरा अपना है और मेरे सपनों का शहर है। पिछले कुछ दिनों में हुई घटनाएं झकझोरने वाली हैं। पारिवारिक तनाव या विवाद में जो कदम उठाए जा रहे हैं वो दुर्भाग्यपूर्ण हैं। सेना पुलिस विवाद में रक्षा मंत्री से चर्चा की है। इसकी पुनरावृत्ति न हो इसके लिए ठोस प्रयास होंगे। -कैलाश विजयवर्गीय, पूर्व मंत्री व राष्ट्रीय महासचिव भाजपा

शहर की छवि को धूमिल नहीं होने देंगे

सरकार कानून व्यवस्था को लेकर गंभीर है। इंदौर की मुख्यमंत्री खुद लगातार समीक्षा कर व्यवस्थाओं में बदलाव कर रहे हैं। बीच में कुछ घटनाएं हुई हैं, जिन्हें काफी गंभीरता से लिया गया है। इंदौर की छवि शांत और विकास करने वाले शहर की है, उसे किसी भी स्थिति में धूमिल नहीं होने दिया जाएगा। -भूपेंद्र सिंह, प्रभारी मंत्री

यह 30 वर्ष का सबसे खराब समय

न्याय की देवी के रूप में प्रतिष्ठित देवी अहिल्या की नगरी में ये सब हो रहा है, समझ से परे और दुर्भाग्यपूर्ण हैं। शहर मुश्किल से आगे बढ़ता है और ऐसी घटनाएं उसे पीछे खींच लेती हैं। सभी को आगे आकर कुछ करने की जरूरत है। यह 30 वर्ष का सबसे खराब समय है। -पद्मश्री जनक पलटा

सामाजिक परिर्वतन खतरनाक है

समाज में व्यापक बदलाव आ रहे हैं। शहर और समाज के प्रति अपनत्व समाप्त हो चुका है। ये सामाजिक परिवर्तन बेहद खतरनाक है। मोहल्ला समितियों पर बात तो होती है, लेकिन सफाई और अन्य कार्य के लिए समाज को एक साथ जोड़ने के लिए नहीं होती। जो घटनाएं हुई वे किसी संगठित गिरोह ने नहीं की, समाज के ही लोग ऐसा क्यों कर गुजरे इस पर विचार करने की जरूरत है। जहां तक सेना और पुलिस विवाद का सवाल है तो सैनिकों ने जो किया वो सही नहीं था। भारतीय संविधान के मार्गदर्शक सिद्धांतों में शराब पीने की प्रवृत्ति पर पूरी तरह रोक की बात कही गई है, लेकिन यहां एक-एक बजे रात तक पब, शराब दुकानें खुली रखी जाती है।

विवाद में दोष किसका है यह तो जांच का विषय है लेकिन पुलिसकर्मियों को यह कहते शर्म नहीं आई कि टेबल के नीचे छुप गए और जान बचाई। थाने पर हमला हुआ तो वे थाना छोड़कर भाग रहे हैं। क्या उन्हें यही ट्रेनिंग मिली है। सेना के बजाय यदि अपराधी होते तो। लोगों का विश्वास इसीलिए पुलिस से उठ रहा है। सैनिक क्या लड़की छेड़ने आए थे। रिपोर्ट में भी झूठ का उल्लेख करते हैं। ऐसे घटनाक्रमों के लिए ही न्यायिक जांच की व्यवस्था है, लेकिन उसकी अनुशंसा कोई नहीं करेगा। -जस्टिस वी.एस कोकजे, पूर्व राज्यपाल

ऐसी घटनाएं आत्मवलोकन से ही रुक सकती हैं

समाज में एक ही व्यक्ति की अलग-अलग तरह की शख्सियत होती है। वे समय-समय पर अलग-अलग तरह का व्यवहार भी करते हैं। इसी समाज में सख्त, संवेदनशील, करूण हृदय के लोग भी हैं, जो परिस्थितियों के मुताबिक कई बार इतने ज्यादा उग्र हो जाते हैं कि उनके सोचने समझने की क्षमता खत्म हो जाती है। सही गलत का भेद भूल जाते हैं। गलत कदम उठा लेते हैं, लेकिन बाद में हर कोई पछताता है। संवेदशील लोग इस तरह की घटनाओं से आहत हो जाते हैं। जब लोग स्वविचार और आत्मवलोकन करना शुरू करेंगे सभी इस तरह की घटनाएं रुक सकेंगी। -डॉ. महेंद्र आचार्य, मनोचिकित्सक व काउंसलर

 
 

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