अद्धयात्म
हनुमान अष्टमी 2 को, सुंदरकांड से सीखें कैसे मिलती है सफलता
पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हनुमान अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 2 जनवरी, शनिवार को है। इस पर्व पर अनेक स्थानों पर सुंदरकांड का पाठ किया जाता है। कहते हैं सुंदरकांड का पाठ करने से जीवन में सफलता के नए मार्ग खुल जाते हैं। आखिर सुंदरकांड में ऐसा क्या है जो इसका पाठ करने से जीवन को एक नई दिशा मिल जाती है, जानिए-
सुंदरकांड श्रीरामचरितमानस का पांचवां अध्याय है। यह श्रीरामचरितमानस का सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला भाग हैं, क्योंकि इसमें हनुमानजी के बल, बुद्धि, पराक्रम व शौर्य का वर्णन किया गया है। सफलता के सारे सूत्र सुंदरकांड में समाए हुए हैं। सुंदरकांड में हनुमानजी ने बताया है कि सफलता कैसे प्राप्त की जाए, सफलता के साथ क्या किया जाए और सफलता के बाद क्या किया जाए?
सुंदरकांड के हर दोहे, चौपाई व शब्द में गहन अध्यात्म छुपा है, जिससे मनुष्य जीवन की हर समस्या का सामना कर सकता है। सुंदरकांड का प्रथम श्लोक है-
शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं
सुंदरकांड श्रीरामचरितमानस का पांचवां अध्याय है। यह श्रीरामचरितमानस का सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला भाग हैं, क्योंकि इसमें हनुमानजी के बल, बुद्धि, पराक्रम व शौर्य का वर्णन किया गया है। सफलता के सारे सूत्र सुंदरकांड में समाए हुए हैं। सुंदरकांड में हनुमानजी ने बताया है कि सफलता कैसे प्राप्त की जाए, सफलता के साथ क्या किया जाए और सफलता के बाद क्या किया जाए?
सुंदरकांड के हर दोहे, चौपाई व शब्द में गहन अध्यात्म छुपा है, जिससे मनुष्य जीवन की हर समस्या का सामना कर सकता है। सुंदरकांड का प्रथम श्लोक है-
शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं
सुंदरकांड का आरंभ जिस श्लोक से हुआ है उसका पहला शब्द ही शांति है अर्थात सुंदरकांड का आरंभ शांति के आवाह्न से हुआ है। सुंदरकांड के प्रथम श्लोक का यह प्रथम शब्द यहां संकेत दे रहा है कि वर्तमान युग सुख अर्जित करने का युग है। सुख मिलना बहुत ही आसान है। पहले के समय में जो आदमी के लक्ष्य हुआ करते थे, वे अब आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं जैसे- घर, बंगला, गाड़ी आदि। लेकिन मन की शांति नहीं मिल पाती।
शांति प्राप्त करने का सर्वश्रेष्ठ उपाय भगवत स्मरण ही है। जब आपके मन में भगवान का वास होगा, उसी समय शांति भी आपके जीवन में प्रवेश करेगी। इसके लिए आवश्यक है कि स्वयं को प्रभु को समर्पित कर दें और जब सुख व शांति दोनों जीवन में हो तो ही जीवन सुंदर होता है। यही सुंदरकांड का मुख्य उद्देश्य है।
शांति प्राप्त करने का सर्वश्रेष्ठ उपाय भगवत स्मरण ही है। जब आपके मन में भगवान का वास होगा, उसी समय शांति भी आपके जीवन में प्रवेश करेगी। इसके लिए आवश्यक है कि स्वयं को प्रभु को समर्पित कर दें और जब सुख व शांति दोनों जीवन में हो तो ही जीवन सुंदर होता है। यही सुंदरकांड का मुख्य उद्देश्य है।
जीवन में लक्ष्य निर्धारित होना चाहिए
हिंदू धर्म में हनुमानजी को बल, बुद्धि व विद्या का देवता माना गया है। इनकी स्तुति के लिए कई रचनाएं लिखी गई हैं। उन्हीं में से एक है बजरंग बाण। बहुत गहराई से अगर आप देखेंगे तो आप पाएंगे कि बजरंग बाण किष्किंधा कांड का हिस्सा है। किष्किंधा कांड में हनुमानजी को जगाया गया है।
बजरंगबाण की हर पंक्ति में रचनाकार ने हनुमानजी को ऊठाया है कि हे बजरंगबली उठिए। आप रामदूत बनिए। बजरंग बाण की प्रत्येक पंक्ति भक्ति केंद्रित है। बजरंग बाण की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह भक्त को सक्रिय व स्फूर्त करता है और चैतन्य बनाता है। बजरंग बाण का पहला दोहा है-
बजरंगबाण की हर पंक्ति में रचनाकार ने हनुमानजी को ऊठाया है कि हे बजरंगबली उठिए। आप रामदूत बनिए। बजरंग बाण की प्रत्येक पंक्ति भक्ति केंद्रित है। बजरंग बाण की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह भक्त को सक्रिय व स्फूर्त करता है और चैतन्य बनाता है। बजरंग बाण का पहला दोहा है-
निश्चय प्रेम प्रतीत ते विनय करें सनमान,
तेही के कारज सकल शुभ, सिद्ध करे हनुमान।
बजरंग बाण में प्रवेश करते ही जो पहला दोहा है, उसका पहला शब्द है निश्चय। निश्चय का अर्थ है दृढ़ता। जीवन में कोई न कोई लक्ष्य निश्चित होना चाहिए। जो भी आपका लक्ष्य है वह स्वयं से शुरू होना चाहिए। बदलाव की पहल स्वयं से ही होनी चाहिए। इसी का नाम निश्चय है। इसी दृढ़ता से बजरंग बाण का आरंभ होता है।