हनुमान जी की इस गलती की सजा, भुगत रही हैं यहाँ की महिलाएं!
धर्म: 14000 फुट की ऊंचाई पर स्थित उत्तराखंड के चमोली जिले में एक गांव है द्रोणागिरी. जी हां दोस्तों द्रोणागिरि पर्वत का नाम तो आप सबने सुना हींं होगा. रामायण काल में इसी पर्वत को हनुमान जी उठाकर ले गए थे. क्योंकि द्रोणागिरी पर्वत पर हींं संजीवनी बूटी मौजूद था. और लक्ष्मण की जान बचाने की खातिर संजीवनी बूटी की जरूरत थी. जिसके लिए हनुमान जी ने द्रोणागिरी पर्वत को हीं उठा लिया. और अपने भगवान श्री राम के पास ले गए. जिससे भ्राता लक्ष्मण की जान बच पाई थी. हनुमान जी के ऐसा करने से लक्ष्मण जी तो बच गए. भगवान राम भी खुश हो गए. लेकिन द्रोणागिरि गांव के लोग हनुमानजी से बेहद नाराज हुए.
इस गांव के लोग आज तक हनुमान जी को माफ नहीं कर सके हैं. दरअसल जिस द्रोणागिरी पहाड़ को भगवान उठाकर ले चले गए थे, उस द्रोणागिरी पर्वत की इस गांव के लोग पूजा करते थे. गांव वालों की नाराजगी इतनी है कि वे हनुमान जी के प्रतीक लाल ध्वज को भी नहीं लगाते.
गांव वाले बताते हैं ये कहानी
कहते हैं कि हनुमान जी जब यहां पर संजीवनी बूटी की तलाश में आए तो, हर तरफ पहाड़ हीं पहाड़ देखकर उन्हें समझ नहीं आ रहा था, कि संजीवनी बूटी कहां मिलेगी. वे कैसे इस बूटी की पहचान करेंगे. तब उन्होंने गांव की एक बूढ़ी औरत से संजीवनी बूटी के बारे में पूछा, तो उस बूढ़ी औरत ने एक तरफ इशारा करते हुए बताया. उनके बताए अनुसार हनुमान जी उस पहाड़ पर चले गए. लेकिन वहां जाने के बाद भी वे संजीवनी बूटी की पहचान कर पाने में असमर्थ रहे. इसीलिए उन्होंने उस पूरे पहाड़ को ही उठा लिया.
हनुमान जी जैसे हीं द्रोणागिरी पर्वत लेकर पहुंचे, वहां भगवान राम और पूरी वानर सेना में खुशियों की लहर दौड़ गई. सभी हनुमान जी की जय जयकार करने लगे. वैद्य ने द्रोणागिरी पर्वत से संजीवनी बूटी चुनकर लक्ष्मण जी का इलाज किया. और फिर लक्ष्मण जी होश में आ गए.
लेकिन वहीं दूसरी तरफ द्रोणागिरि गांव के लोगों में हनुमानजी के प्रति गुस्सा और नाराजगी इस कदर घर कर गई कि हर कोई हनुमानजी से नफरत करने लगा. यहां तक कि गांव वालों ने उस बूढ़ी औरत को, जिसने हनुमान जी को उस पर्वत के बारे में बताया था समाज से बहिष्कृत कर दिया. लेकिन उस महिला की गलती की सजा न सिर्फ उस महिला को मिली, बल्कि आज तक इस गांव की हर महिला को सजा मिल रही है.
बता दें कि द्रोणागिरि गांव में आराध्य देव पर्वत की गांव वाले विशेष रूप से पूजा-आराधना करते हैं. और इस विशेष पूजा के दिन कोई भी पुरुष महिलाओं के हाथ का भोजन नहीं करते.