ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान, मंदिरों में घंटियों की गूंज, वेदोच्चारण, संत-महात्माओं और तीर्थयात्रियों की घाटों पर बढ़ती चहल-पहल.. सुबह-सवेरे कुछ इसी अंदाज में जगता है यह शहर। यहां भूपतवाला से लेकर ललतारो पुल और कनखल तक यही नजारा दिखता है। कह सकते हैं कि इस करीब साढ़े छह किमी. के दायरे में हरिद्वार की पुरातन संस्कृति का दर्शन होता है। यहां पर संस्कृत और अन्य वेदपाठ विद्यालय हैं। वहां की पठन-पाठन गतिविधियां भी भोर से ही आरंभ हो जाती हैं और संध्या काल में फिर से गंगा स्तुति के उपरांत ही शहर रात्रि-विश्राम के लिए जाता है। इसी तरह, आश्रमों, अखाड़ों, मठ-मंदिरों और धर्मशालाओं की दिनचर्या भी इसी तर्ज पर रहती हैं। स्थानीय निवासी सिद्धार्थ चक्त्रपाणि कहते हैं, ‘यह शहर अपनी रौ में जीता है। सिडकुल औद्योगिक क्षेत्र बनने के बाद यहां नाइट लाइफ का थोड़ा बहुत आगाज हुआ है पर इससे इसकी पुरातन सांस्कृ्तिक परंपरा पर कोई खास असर नहीं पड़ा है।’ भारतीय संस्कृति की प्राणतत्व मानी जाने वाली गंगा यहां के निवासियों के रग-रग में बसी है। हर की पैड़ी क्षेत्र निवासी उज्जवल पंडित के अनुसार, ‘गंगा यहां की प्राण हैं। हर काम शुरू करने से पहले या हर बात में गंगा शामिल है। उसके आशीर्वाद के बिना कोई काम संभव नहीं।’डाटवाली हवेली
विश्र्व प्रसिद्ध ‘हरकी पैड़ी’ हरिद्वार की हृदयस्थली है। राजा भृर्तहरि के महल के अवशेष आज भी डाटवाली हवेली के नाम से मौजूद हैं। कहा जाता है कि इसका निर्माण करीब 2000 वर्ष पूर्व हुआ था। कालांतर में हरिद्वार पर नेपाली राजाओं का प्रभुत्व बढऩे पर यह उनके कब्जे में चली गई। 19वीं शताब्दी के अंतिम वषों में यह हवेली कम खंडहर ज्यादा नजर आती थी। इसके बाद यहां हरिद्वार आने वाले तीर्थ यात्रियों की सुविधा के लिए इसे होटल ‘ओशो’ में तब्दील कर दिया। तब से इसे होटल ओशो के नाम से ही जाना जाता है। सिर्फ पुराने लोग ही इसे डाट वाली हवेली के नाम से पहचानते हैं।गंगा आरती की निर्मल अनुभूति
हरिद्वार का मुख्य आकर्षण भव्य गंगा आरती है। इस अलौकिक अनुभूति को प्राप्त करने देश-दुनिया से लोग आते हैं। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने यहां के विजिटर बुक में अपनी अनुभूति कुछ इस तरह व्यतक्त् की है ‘आज मुझे हरकी पड़ी पर अलौकिक गंगा आरती देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ, जो हमेशा याद रहेगा।’ श्री गंगा सभा इस भव्य आरती को प्रतिदिन दो बार, प्रात:कालीन मंगला आरती सूर्योदय के समय और सांध्यकालीन श्रृंगार आरती सूर्यास्त के समय पर करती आ रही है। गंगा की स्तुति के बाद वातावरण गंगा मैया के जयकारों से गुंजायमान हो उठता है। इसमें शामिल होने के लिए श्रद्धालुओं में होड़ सी लगी रहती है।