हरियाणा स्थित कुरुक्षेत्र के इस प्राचीन मंदिर का है महाभारत के युद्ध से गहरा संबंध
हरियाणा के कुरुक्षेत्र को हिंदूओं के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है. यह स्थान इतना प्राचीन है कि आज भी यह स्थान, 5 हजार साल पहले हुए महाभारत के उस विनाशकारी युद्ध की गवाही देता है. कुरुक्षेत्र का महाभारत के युद्ध से बेहद गहरा संबंध है क्योंकि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत की लड़ाई के लिए कुरुक्षेत्र को ही चुना था और इसी स्थान पर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश भी दिया था. इसके अलावा आज हम आपको कुरुक्षेत्र के एक ऐसे प्राचीन मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका महाभारत के युद्ध और श्रीकृष्ण से गहरा संबंध बताया जाता है.
कुरुक्षेत्र का देवीकूप भद्रकाली शक्तिपीठ
कुरुक्षेत्र में हरियाणा का एकमात्र देवीकूप भद्रकाली शक्तिपीठ स्थापित है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का भगवान श्रीकृष्ण और महाभारत के युद्ध से गहरा संबंध है. कहा जाता है कि जब भगवान शिव अपनी पत्नी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्मांड में घूमने लगे तो भगवान विष्णु ने देवी सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 52 हिस्सों में बांट दिया, ताकि भगवान शिव का देवी सती के प्रति मोह खत्म हो सके. बताया जाता है कि धरती पर जहां-जहां देवी सती के शरीर के हिस्से गिरे थे, वहां-वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गए. कुरुक्षेत्र के देवीकूप भद्रकाली शक्तिपीठ में माता सती का दाया पैर यानि घुटने के नीचे वाला हिस्सा गिरा था.
श्रीकृष्ण का इसी मंदिर में हुआ था मुंडन
कुरुक्षेत्र के इस प्राचीन शक्तिपीठ का संबंध सिर्फ माता सती से ही नहीं है बल्कि महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन को गीता का उपदेश देनेवाले भगवान श्रीकृष्ण से भी इस स्थान का गहरा संबंध है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का मुंडन इसी पवित्र स्थान पर कराया गया था. जिसके कारण इस जगह का महत्व कलियुग में और ज्यादा बढ़ जाता है.
इसी मंदिर में अर्जुन ने की थी जीत की प्रार्थना
मान्यताओं के अनुसार महाभारत के युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इसी प्राचीन मंदिर में मां भद्रकाली की पूजा करने के लिए कहा था. श्रीकृष्ण के कहने के बाद अर्जुन ने इस स्थान पर मां भद्रकाली की पूजा की थी. इस पवित्र स्थान पर पूजा-अर्चना करके अर्जुन ने महाभारत के युद्ध में विजयी होने की मन्नत मांगी और जीत के बाद इस मंदिर में घोड़ा चढ़ाने का प्रण भी लिया था. बताया जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद से ही मन्नत पूरी हो जाने के बाद यहां सोने, चांदी या फिर मिट्टी के घोड़े चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है.
गौरतलब है इस प्राचीन मंदिर में आज भी भारी तादात में भक्त आते हैं और मन्नतें पूरी होने पर चढ़ावा भी चढ़ाते हैं. सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि इस मंदिर में आनेवाले भक्तों को मां भद्रकाली के दर्शन के साथ-साथ महाभारत काल से जुड़ी ऐतिहासिक बातों को जानने का मौका भी मिलता है.