‘हिन्दुस्तान’ से बोले रविशंकर, पहले जैसे नहीं रहेंगे पाक से रिश्ते
एक गंभीर राजनेता और कुशल प्रशासक होने की छवि ने रविशंकर प्रसाद को न सिर्फ सरकार में अहम मंत्रालयों तक पहुंचाया, बल्कि भाजपा प्रवक्ता के तौर पर उनकी तर्कसंगत दलीलों ने उन्हें देश के आम घरों में भी सम्मान दिलाया है। वर्तमान में केंद्रीय कानून व सूचना-तकनीकी मंत्री रविशंकर प्रसाद से तमाम ज्वलंत मुद्दों पर हिन्दुस्तान के प्रधान संपादक शशि शेखर और राजनीतिक संपादक निर्मल पाठक ने बात की:
उरी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई का जबरदस्त दबाव है। सरकार के पास क्या विकल्प हैं?
सरकार की रणनीति पर सार्वजनिक चर्चा नहीं हो सकती। एक बात स्पष्ट है कि पाकिस्तान के साथ अब रिश्ते पहले जैसे नहीं रहेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रिश्ते बनाने की पूरी और ईमानदार कोशिश की थी। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को शपथ ग्रहण में बुलाया। बाद में हमारे गृह मंत्री राजनाथ सिंह वहां गए, सुषमा जी गईं, खुद प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने नातिन की शादी में बुलाया, तो पीएम वहां गए। लेकिन पाकिस्तान में नेतृत्व कौन कर रहा है, यह पता नहीं। आतंकवाद और उसके निर्यात को पाकिस्तान अपनी नीति मानता है। लेकिन एक बात स्पष्ट है कि यह कार्रवाई कूटनीतिक स्तर पर भी होगी, रणनीतिक स्तर पर भी और सामरिक सुरक्षा के दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर होगी।
आपको नहीं लगता कि हमारी पाकिस्तान नीति फेल हो गई है। क्या रिश्ते सुधारने के लिए मोदी सरकार ने जल्दबाजी में पाकिस्तान पर ज्यादा भरोसा किया?
नहीं, बिल्कुल नहीं। हमने शुरू में ही कहा, आतंकवाद पर पहले बात करना जरूरी है। पाक ने बाद में उफा में हुई बैठक में इसे स्वीकार किया। हमने अपनी तरफ से ईमानदार नीयत का परिचय दिया कि हम रिश्ते सुधारने के पक्ष में हैं। अब आप देख रहे हैं, बलूचिस्तान का मुद्दा कितना बड़ा बन रहा है। हमने उन्हें जवाब दिया है कि अगर आप जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों की बात करते हैं, तो पीओके में नागरिकों के जनतांत्रिक अधिकारों का हनन कर रहे हैं, उसका क्या? यह हमारी प्रभावी रणनीति का हिस्सा है।
दूसरा, हमने कभी सेना के हाथ बांधकर आतंकवादियों से लड़ने से रोका नहीं। सेना को कहा गया है कि आप तय करिए कि कहां किसको टारगेट करना है। इसमें कोई बंधन नहीं रखा है। हां, कश्मीर की जनता के मामले में नियंत्रण जरूर रखने को कहा गया है। हम सेना पर भरोसा करते हैं। सामरिक सुरक्षा और भारत हित मोदी सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता है। मैं फिर कहूंगा कि पाकिस्तान से रिश्ते अब पहले जैसे नहीं रहेंगे। और जैसा सेना ने कहा है, वह इसका जवाब देगी, अपने चुने हुए समय और स्थान पर।
तो क्या यह माना जाए कि प्रधानमंत्री सार्क सम्मेलन में भाग लेने इस्लामाबाद नहीं जाएंगे?
अब यह तो प्रधानमंत्री जी को तय करना है। परिस्थितियों और अन्य वास्तविकताओं का आकलन करके फैसला करना होता है।
द्विपक्षीय बातचीत का क्या भविष्य है?
देखिए, उसका उत्तर बहुत साफ है। आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते। आप आतंकवाद की नीति को नहीं बदलेंगे और बातचीत का आग्रह करेंगे, यह नहीं चलेगा।
क्या बलूच नेताओं को भारत में राजनीतिक शरण दी जाएगी?
उन्होंने आग्रह किया है। विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय व्यापक विचार कर फैसला करेंगे।
कश्मीर पर राजनीतिक समाधान की बात हो रही है, लेकिन भाजपा इसे राजनीतिक समस्या नहीं मानती?
कश्मीर के लोग अमन पसंद लोग हैं। एक साल पहले चुनाव में लोगों ने बढ़ -चढ़कर भाग लिया। अब अगर समस्या है, तो उसका बहुत बड़ा कारण पाकिस्तान है। पाकिस्तान की काली करतूतें हैं।
कुछ महीनों बाद पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। क्या आकलन है?
उत्तर प्रदेश में सपा में जो घमासान मचा है, आप देख ही रहे हैं। यूपी के लोग ये मोहन बगान… ईस्ट बंगाल, कभी सपा, कभी बसपा से बाहर निकलना चाहते हैं, भाजपा उन्हें वह स्थान देना चाहती है। हम कहना चाहते हैं कि आप सुशासन के साथ चलें। दूसरे चुनाव वाले राज्य उत्तराखंड का मैं प्रभारी रहा हूं। वहां कांग्रेस ने जैसा शासन दिया है, मैं आश्वस्त हूं कि वहां के लोग भाजपा के साथ आएंगे। गोवा में हम फिर से सरकार बनाएंगे। पंजाब में रोज परिस्थितियां हमारे पक्ष में बदल रही हैं। मणिपुर में भी हमारा प्रदर्शन बेहतर होगा… इंतजार कीजिए, हमारे लिए अच्छा ही होगा।
कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में आपके पास मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार ही नहीं है? क्या किसी को आगे कर चुनाव लड़ेंगे?
ऐसी बात नहीं है। यह कहना सही नहीं है कि चेहरा नहीं है। हालात पर निर्भर करता है। चेहरा देते भी हैं, नहीं भी। यह रणनीति की बात है।
पर कुछ चुनावों से यह ट्रेंड दिख रहा है कि मतदाता जानना चाहता है कि मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार कौन है? असम में तो आपने मुख्यमंत्री उम्मीदवार सामने रखा था।
मैं नहीं मानता कि इस तरह का ट्रेंड है। बिहार से पहले महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा में चुनाव हुए, जहां कोई चेहरा नहीं था। वहां हम चुनाव जीते। इसके बाद असम में चेहरा सामने था। दोनों तरह के उदाहरण हैं। यह उस समय की जरूरतों और रणनीति के हिसाब से तय होगा।
एनजेएसी (राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग) कानून के खारिज होने के बाद से न्यायपालिका व कार्यपालिका के बीच शुरू हुआ टकराव कब तक चलेगा?
टकराव का सवाल नहीं है। इस सरकार में प्रधानमंत्री मोदी सहित कई वरिष्ठ मंत्री हैं, जो आपातकाल के विरोध में संघर्षरत रहे। उस संघर्ष में तीन आजादी का मुद्दा था। व्यक्तिगत आजादी, प्रेस की आजादी और न्यायपालिका की आजादी। कहने का मतलब यह है कि न्यायपालिका की आजादी के लिए हमने संघर्ष किया है। हम इसके लिए प्रतिबद्ध हैं। एनजेएसी कानून पर पूरे देश में सर्वानुमति थी।
सुप्रीम कोर्ट ने उसे असांविधानिक माना, हमने कोर्ट का फैसला स्वीकार किया। लेकिन आज मैं ‘हिन्दुस्तान’ के पाठकों के सामने बहस के लिए यह विषय रखना चाहता हूं। हमारे संविधान ने प्रधानमंत्री को तमाम अधिकार दिए हैं। भारत की राजनीति प्रधानमंत्री पर इतना भरोसा करती है। लेकिन प्रधानमंत्री की ओर से नियुक्त कानून मंत्री यदि कॉलेजियम का सदस्य रहता है, तो ईमानदार जज नियुक्त नहीं हो पाएगा, इस तर्क पर मैं समझता हूं कि गंभीरता से चर्चा होनी चाहिए। दूसरी बात कॉलेजियम सिस्टम 1993 में आया, संविधान 1950 का है। पूरे 43 साल कानून मंत्री या कई बार गृह मंत्री जजों को नियुक्त करने की प्रक्रिया में शामिल रहे। सर्वाधिक ईमानदार जज इसी प्रकिय्रा से आए।
पतंजलि शास्त्री से लेकर हिदायतुल्ला और एचआर खन्ना और जगमोहन सिन्हा तक सब इस प्रक्रिया से आए। इसलिए यह मान लेना कि कानून मंत्री के रहने से ईमानदार जज नहीं आ पाएंगे, अनुभव को झुठलाना होगा।
सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश को अपनी वेदना सार्वजनिक तौर पर व्यक्त करनी पड़ी। इससे खराब संदेश नहीं गया?
सुप्रीम कोर्ट ने 15 दिसंबर के अपने फैसले में कहा है कि सरकार एमओपी बनाए। उसकी प्रक्रिया चल रही है। लेकिन हमने नियुक्तियां रोकी नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला 15 दिसंबर, 2015 का है। अगस्त 2014 में एनजेएसी के फैसले के बाद से दिसंबर 2015 तक सरकार की कोई भूमिका नहीं थी। जनवरी 2016 में पूर्ववर्ती कानून मंत्री ने पत्र लिखा और कहा कि जब तक एमओपी तैयार नहीं होता, हम नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं। इस बीच में लगभग 65 से 70 हाईकोर्ट जजों की नियुक्ति हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट में चार जज नियुक्त हो चुके हैं।
लगभग 14 हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त हो चुके हैं। 30 जजों का ट्रांसफर हो चुका है। 112 एडिशनल जज कन्फर्म हो चुके हैं। सात-आठ महीने में यह काम कम नहीं है। मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि मोदी जी की सरकार न्यायिक प्रक्रिया को गुड गवर्नेंस का भाग मानती है। एक बात और बता दूं कि 1993 से अब तक न्यायपालिका के ढांचे में सुधार के लिए 5,000 करोड़ रुपये दिए गए हैं। उनमें से दो हजार करोड़ रुपये पिछले दो साल में दिए गए हैं। एक बात मैं अवश्य कहना चाहूंगा कि निचली न्यायपालिकाओं में चार हजार पद खाली हैं और इसमें न केंद्र की कोई भूमिका है, न राज्य की। यह काम हाईकोर्ट खुद करता है या उनके निर्देश पर संघ लोक सेवा आयोग। हमारी अपेक्षा है कि इन पदों पर भी जल्द नियुक्तियां हों।
सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने कहा है कि कॉलेजियम जो फैसले करता हैै, उसमें पारदर्शिता होनी चाहिए।
मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा। लेकिन मैं, आपके माध्यम से स्पष्ट करना चाहूंगा कि न्यायपालिका अपना काम ईमानदारी से कर रही है और करेगी। न्यायपालिका के इस काम में हमारा कभी कोई हस्तक्षेप नहीं होगा।
एमओपी पर कब तक सहमति बन जाएगी?
हमने अपनी ओर से बात सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा दी है। उनकी राय मिलना बाकी है। लगता है, जल्दी हो जाएगा।
वेबसाइट हैकिंग का खतरा लगातार बढ़ रहा है?
साइबर सिक्योरिटी के सिस्टम को और मजबूत कर रहे हैं। साइबर कोऑर्डिनेशन सेंटर बना रहे हैं। मानव संसाधन को नई चुनौतियों के लिहाज से प्रशिक्षित कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा है साइबर सिक्योरिटी एक रक्तविहीन युद्ध है। इससे आप गंभीरता को समझ सकते हैं।
डिजिटल इंडिया पर आपकी सरकार का बहुत जोर है। क्या कर रहे हैं?
मैं आपको कुछ आंकड़े दे रहा हूं। पिछले एक वर्ष में देश के आईटी उद्योग ने आठ लाख करोड़ रुपये का निर्यात किया है। यह अब तक सबसे ज्यादा है। दुनिया के 80 देशों के 200 शहरों में भारत के आईटी प्रोफेशनल हैं। हिन्दुस्तान आरऐंडडी का बड़ा हब बन रहा है। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, फेसबुक आदि के अमेरिका के बाद यहां सबसे ज्यादा फुट प्रिंट हैं। मैं यह बताना चाहता हूं कि 125 करोड़ के देश में 105 करोड़ आधार हैं, 103 करोड़ मोबाइल फोन हैं और 40 करोड़ इंटरनेट यूजर्स हैं।
आपने एक डिजिटल लॉकर स्कीम भी शुरू की है। यह कितनी सुरक्षित है?
एकदम सुरक्षित है। अब तक 21.5 लाख लोग इसका उपयोग कर रहे हैं और लगभग 25 लाख डॉक्यूमेंट अपलोड हो गए हैं। हिन्दुस्तान के लोग पहले टेक्नालॉजी को ऑब्जर्व करते हैं, फिर उसे अपनाते हैं, फिर इंजॉय करते हैं और फिर एम्पावर हो जाते हैं।
जब मैं मंत्री बना, तब इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र में 11 हजार करोड़ का पूंजी निवेश हुआ था। अब एक लाख तेईस हजार करोड़ का हो गया है। भारत इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफैक्चरिंग का बहुत बड़ा केंद्र बन रहा है। पिछले एक साल में 38 मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग केंद्र खुल गए हैं। 11 अकेले नोएडा में हैं।
यह भी कहा
कश्मीर समस्या के बारे में
देखिए, जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा। इस पर तो कोई सवाल ही नहीं है। वहां के लोगों को अधिकार मिलें, विकेंद्रीकरण हो, पंचायतें मजबूत हों, यह सभी चाहते हैं। राजनीतिक संवाद से वहां शांति लानी चाहिए, यही जम्हूरियत है और इंसानियत है। लेकिन राजनीतिक समस्या मानने वाले यदि जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करने की मंशा रखते हैं, तो बात नहीं हो सकती। इस पर कोई समझौता नहीं हो सकता।
डिजिटल इंडिया के बारे में
डिजिटल इंडिया गरीबों के लिए ही है। प्रधानमंत्री जी की सोच है कि चाय वाला, रिक्शे वाला या ठेले वाला इसके जरिये अपने लिए व्यापार की नई संभावनाएं तलाश सके। उसके लिए हम कॉमन सर्विस सेंटर के आंदोलन को बहुत मजबूत कर रहे हैं। अभी इनकी संख्या करीब दो लाख तीस हजार है। हमारी कोशिश है कि हर ग्राम पंचायत में एक सेंटर जरूर हो। इनके माध्यम से ग्रामीण आबादी हर तरह की ऑनलाइन सुविधा का लाभ ले रही है। आधार बनाने से लेकर पासपोर्ट बनाने तक। बिजली का बिल जमा करने से लेकर जरूरी जानकारी जुटाने तक। पिछले दो साल में भारत में उतने मोबाइल आए हैं, जितनी फ्रांस और इटली की जनसंख्या है।
आधार के बारे में
विश्व बैंक का एक अध्ययन है कि केंद्र और राज्य सरकारें अगर आधार का उपयोग करें, तो हर साल 70 हजार करोड़ रुपये बचेंगे। हमने जो आधार का कानून बनाया है, उसमें निजता का पूरा-पूरा ध्यान रखा गया है। यह स्पष्ट किया गया है कि जो सब्सिडी लेना चाहता है, यानी भारत सरकार के कॉन्सोलिडेटेड फंड से पैसा लेगा, उसके लिए आधार जरूरी होगा। बाकी अन्य सुविधाओं के लिए उसकी मर्जी के ऊपर है, वह चाहे या न चाहे। हम इसका उपयोग गुड गवर्नेंस और पारदर्शिता के लिए बढ़ाना चाहते हैं।