हिमाचल का ये अनछूआ क़स्बा किसी जन्नत से कम नहीं, एक बार जरूर जाये घूमने
घूमने फिरने के लिए हिमाचल प्रदेश बहुत अच्छी जगह मानी जाती है। इसकी खूबसूरती और मनमोहने वाले दृश्य ऐसे हैं कि पर्यटकों की भीड़ यहां हर मौसम में बनी रहती है। देश-विदेश से लोग यहां की वादियों का आनंद उठाने के लिए आते हैं, लेकिन लोग सिर्फ कुल्लू, मनाली, शिमला, धर्मशाला, स्पीति वैली और तीर्थन वैली तक ही जाते हैं। ये सभी जगह खूबसूरत तो हैं, लेकिन इनसे अलह भी हिमाचल में एक ऐसी जगह है जहां जाकर आप जन्नत जैसा महसूस करेंगे। एक बार यहां जाने के बाद आपका घर वापस आने का दिल नहीं करेगा। हिमाचल के इस कस्बे का नाम है ‘करसोग’।
वैसे तो ‘करसोग’ शहर मंडी जिले में आता है, लेकिन यह मंडी से 125 कि.मी की दूरी पर है। करसोग जाते समय आपको रास्ते में सेब, नाशपाती, चीड़, कैल और देवदार के पेड़ देखने को मिलेंगे, जो देखने में बेहद सुंदर लगते हैं। करसोग पहुंचना तो छोड़िए वहां का रास्ता ही आपका दिल जीत लेगा। इस रूट की सबसे अच्छी बात यह है कि दूसरे रास्तों की तरह यहां आपको भीड़ भाड़ नहीं मिलेगी।
करसोग पहुंचते ही बर्फ की चादर से लिपटे पहाड़ और वहां की हरियाली देखकर आपका रोम-रोम खिल उठेगा। पहाड़ों को छूकर आती हुई ठंडी ठंडी हवा आपके पूरे शरीर में सिरहन पैदा कर देगी। अगर आप कुछ पल अपने साथ बिताना चाहते हैं, तो इससे अच्छी जगह नहीं हो सकती। आइए जानते हैं इस घाटी से जुड़ी कुछ बातें…
4,500 फीट की ऊँचाई पर स्थित करसोग घाटी से जुड़ी कई सालों पुरानी कहानी है। इस घाटी का नाम दो शब्दों ‘कर’ और ‘सोग’ से जुड़कर बना है। इसका अर्थ है ‘प्रतिदिन शोक’। महाभारत से जुड़ी इस कहानी के बारे में बताया जाता है कि इस गांव पर एक राक्षस का आतंक छाया था। वह हर दिन एक गांववासी को खाया करता है। इसलिए पूरे गांव में शोक छाया रहता था। भीन ने उस राक्षस को मारकर गांववालों की रक्षा की थी।
इस गांव में ठीक-ठाक आबादी है। यहां घूमने के लिए आप कमरूनाग मंदिर, शिखरी देवी मंदिर, कामाक्षा देवी और महुनाग का मंदिर जा सकते हैं। इसके अलावा आप यहां के बाजार भी घूमने जा सकते हैं, जहां हमेशा हलचल रहती है। यहां एक ममलेश्वर मंदिर भी है, जिसका संबंध पांडवों से बताया जाता है। कहा जाता है इस जगह पर पांडवों ने अज्ञातवास का कुछ समय बिताया था।
ममलेश्वर मंदिर में एक ढोल रखा है। कहा जाता है ये ढोल भीम का। मंदिर में पांच शिवलिंग है, जिसकी प्रतिष्ठा पाण्डवों ने ही की थी। यहीं पर 200 ग्राम का एक गेहूँ का दाना भी है, जो पांडवो का माना जाता है। इस मंदिर में एक धुना है। इस धुना से जुड़ी मान्यता है कि ये महाभारत काल से लगातार जल रहा है। जब भीम ने यहां के लोगों को राक्षस से मुक्ति दिलाई थी, तब इस धुना को जलाया गया था, जो आज तक जल रहा है। अगर आप ट्रेकिंग पसंद करते हैं तो आप करसोग से 22 कि.मी. दूर रोहांडा जा सकते हैं। यहां से कमरू नाग ट्रेक शुरू होता है।