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हॉकी खिलाड़ियों ने ट्रेन के फर्श पर बैठकर किया सफर

hocky_1472494467एक तरफ पूरे देश में रियो में पदक जीतने वाली पीवी सिंधू और साक्षी मलिक का सम्मान हो रहा है। हर कोई खुद को उनका और खेलों का हितैशी होने के दावे कर रहा है, लेकिन ओलंपिक के लिए 36 साल बाद क्वालीफाई करने वाली भारतीय महिला हॉकी टीम के चार सदस्यों का रियो से वापस लौटने के बाद ऐसा अपमान हुआ जिसके कल्पना आप नहीं कर सकते। भारतीय रेलवे के अधिकारियों ने जैसा व्यवहार किया उससे आपको इस बात का अंदाजा हो जाएगा कि वास्तव में भारत में लोग खेलों और खिलाड़यों को कितनी अहमियत देते हैं। 

 रियो से वापस लौटी महिला हॉकी टीम के कुछ सदस्यों को घर वापसी के लिए ट्रेन के फर्श पर बैठकर सफर करने के लिए मजबूर होना पड़ा। आखिर कब हमारा देश अपने खिलाड़ियों का सम्मान करना सीखेगा? भारतीय महिला हॉकी टीम की चार सदस्य नमिता टोप्पो, दीप ग्रेस एक्का, लिलिमा मिंज, सुनीता लकड़ा धनबाद अल्लीपे एक्सप्रेस से झारखंड की राजधानी रांची से राउरकेला सफर कर रही थीं। स्टेशन में टीटी ने इन्हें जानकारी दी कि इनका टिकट कन्फर्म नहीं हुआ है। खिलाड़ियों ने टीटी के सामने अपनी पहचान जाहिर की लेकिन टीटीई पर उनकी बातों का कोई असर नहीं हुआ। उसने इन खिलाड़ियों से कहा कि जब तक कोई सीट खाली नहीं होगी तब तक वो फर्श पर बैठकर सफर करें। सुनीता ने टीटीई से कहा कि हम लगातार दो-तीन दिन से सफर कर रहे हैं हमें कम से कम दो सीट दे दें ताकि हम कम से कम बैठकर यात्रा कर लें, लेकिन हमें सीट नहीं मिल सकी। 

हॉकी इंडिया और भारत सरकार खिलाड़ियों के रियो से घर वापसी की उचित व्यवस्था नहीं कर पाना बेहद अफसोस जनक है। इसी तरह की घटनाओं के कारण देश की युवा पीढ़ी खेलों को करियर के रूप में अपनाने से कतराती है और हम हर चार साल बाद ओलंपिक से खाली हाथ लौटने पर केवल अफसोस जताते रह जाते हैं। प्रधानमंत्री भले ही मन की बात में खेलों के विकास की योजना पर बात करें लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। 

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