अक्षय की ‘एयरलिफ्ट’ को झुठलाती है इसके पीछे की सच्ची कहानी
दस्तक टाइम्स एजेन्सी/ रायपुर. छत्तीसगढ़ अक्षय कुमार की ‘एयरलिफ्ट’ फिल्म भले ही रिलीज के बाद महज 10 दिनों में 100 करोड़ (रुपए) क्लब में शामिल हो गई हो, लेकिन इस फिल्म की स्क्रिप्ट की सच्चाई वास्तविक घटना से बिल्कुल अलग है.
भारतीय विदेश मंत्रालय का भी कहना है कि 1990 के दशक में इराक-कुवैत युद्ध के दौरान कुवैत में फंसे भारतीयों को वहां से बाहर निकालने के अभियान पर बनी यह मूवी असल सच्चाई से बिल्कुल अलग है. पूर्व विदेश सचिव निरूपमा राव के मुताबिक, एयरलिफ्ट की कहानी और इसका रिसर्च वास्तविक घटना से मेल नहीं खाता है.
ऐसे में सवाल उठता है कि एयरलिफ्ट की असली सच्चाई क्या है? इसके पीछे के नायक कौन थे? किसने कुवैत में मौजूद भारतीयों वहां से बाहर निकालकर उनकी जान बचाई?
हालांकि, कुवैत एयरलिफ्ट का पूरा घटनाक्रम कुछ ऐसा रहा था.
1 अगस्त 1990
सद्दाम हुसैन ने अचानक कुवैत पर हमला बोल दिया. इराकी सेना कुवैत में घुसी और उसने कुवैत पर कब्जा कर लिया. कुवैत का शासक जान बचाकर किसी तरह सऊदी अरब भागने में कामयाब रहा. अचानक हुए इस हमले में कुवैत में मौजूद 1.7 लाख से ज्यादा भारतीय वहां फंस गए.
सद्दाम को गले लगाने की कूटनीति
उसी दौरान तत्कालीन भारतीय विदेश मंत्री इंद्रकुमार गुजराल की इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन के साथ गले लगाते हुए तस्वीर सामने आई, जिसकी काफी आलोचना हुई.
हालांकि, गुजराल के इसके पीछे का मकसद को उस समय लोग समझ नहीं पाए. गुजराल की सद्दाम हुसैन को गले लगाने की कूटनीति किसी तरह वहां फंसे भारतीयों को सुरक्षित निकालना था.
जमीन पर ऑपरेशन (18 अगस्त, 1990)
इसी बीच भारत सरकार ने बचाव अभियान शुरू कर दिया. सबसे पहले बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे को पहले राउंड में वहां से निकाला गया.
कुवैत पर इराकी सेना का कब्जा था. ऐसे में भारतीयों को निकालने के लिए वहां मौजूद सैन्य अधिकारियों की मंजूरी जरूरी थी. ऐसे में विदेश मंत्रालय, गल्फ एंड मिडल ईस्ट रिजनल डायरेक्टर और सुपरवाइजर को इस ऑपरेशन में शामिल किया गया.
हालात काफी खराब होते जा रहे थे. ऐसे में बगदाद से हरी झंडी मिलते ही बसों में भरकर भारतीयों को बसरा लाया गया और फिर वहां से जोर्डन के अम्मान में.
सन्नी ब्रेवेडो उर्फ मैथ्यूज
इस पूरे ऑपरेशन में कुवैत में भारतीय मूल के कारोबारी सन्नी ब्रेवेडो का महत्वपूर्ण रोल रहा. सन्नी ब्रेवेडो का असल नाम मैथ्यूनो मैथ्यूज था. सन्नी की कुवैत में टोयटा एजेंसी एजेंसी थी. जब इराक और कुवैत के बीच भरतीय पिसने लगे तो सन्नी ने कई भारतीयों को शरण दी.
इस दौरान उसे एक और भारतीय हरभजन सिंह बेदी का साथ मिला. मैथ्यूज बगदाद स्थित भारतीय राजदूत से मिले. उन्होंने इराकी ट्रांसपोर्टर, भारतीय अधिकारियों और संयुक्त राष्ट्र से एक डील की. इसके तहत वहां फंसे भारतीयों को बसों में भरकर बगदाद के रास्ते अम्मान लाया गया.
एयर इंडिया
उस वक्त एयर इंडिया के एमडी मस्केरहंस थे. इन भारतीयों को निकालने के लिए एयर इंडिया ने 488 उड़ानें भरीं. यह ऑपरेशन लगभग 59 दिन तक चला. इस दौरान 1,11,711 भारतीयों को वहां से बाहर निकाला गया.