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अक्षय तृतीया के दिन क्यों सर्वोत्तम मानी जाती है मां विंध्यवासिनी की पूजा, जानिए

हिंदू रीतियों के आधार पर किसी भी काम की शुरूआत शुभ मुहूर्त पर ही की जाती है, लेकिन साल में एक दिन ऐसा भी है जिसे सर्वसिद्ध मुहूर्त माना गया है। वो दिन है अक्षय तृतीया, जो कि बैशाख माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पड़ती है। इस वर्ष अक्षय तृतीया रविवार 26 अप्रैल को पड़ रही है। ऐसी मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन बिना पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, आभूषणों की खरीददारी अथवा प्रॉपर्टी या बिजनेस में निवेश आदि कार्य किए जा सकते हैं।

साथ ही पुराणों के अनुसार अक्षय तृतीया अथवा आखा तीज के दिन किसी भी प्रकार का दान अथवा पूजा भी अक्षय फल प्रदान करती है। अक्षय तृतीया के दिन मां विंध्यवासिनी का श्रृंगार और आरती कराने का अत्यंत महत्व है। मां विंध्यवासिनी देवी का मंदिर उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में विंध्याचल नामक तीर्थ में स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि यह मां जगदम्बा का निवास स्थान है, इसलिए यह एक जाग्रत शक्तिपीठ है जो कि मां दुर्गा के 51 शक्तिपीठों में से एक है। विंध्यवासिनी मंदिर को लेकर ढे़रों मान्यताएं व्याप्त हैं । धर्मराज युधिष्ठिर ने मां विंध्यवासिनी की आराधना की थी, इसके अलावा कंस के वध की भविष्यवाणी करने की भी कथा काफी प्रचलित है।

आज भी प्रतिदिन मां विंध्यवासिनी की दिन में चार बार आरती होती है। भोर में होने वाली आरती को मंगला आरती, दोपहर में मध्यमान आरती, सायं काल में होने वाली आरती को छोटी आरती व रात्रि में होने वाली आरती को बड़ी आरती कहा जाता है। अक्षय तृतीया के दिन मां विंध्यवासिनी की आरती का हिस्सा बनने के लिए व श्रृंगार दान के लिए हर वर्ष भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। हालांकि इस वर्ष लॉकडाउन के कारण मंदिर भक्तों के लिए बंद है लेकिन पुजारियों के द्वारा मां विंध्यवासिनी की आरती सम्पन्न कराई जाती है ।

 

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