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अखिलेश और माया पर प्रधान सेवक की नजर

 


चीनी मिलों को बेचे जाने की जांच सीबीआई को देकर भाजपा सरकार बसपा मुखिया मायावती पर ठीक उसी तरह दबाव डालना चाहती है जैसे कि उसने बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के सर्वेसर्वा लालू प्रसाद यादव पर डाल रखा है। भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि चीनी मिलों को लेकर सीबीआई के जरिए यदि बसपा मुखिया मायावती अर्दब में आ गयीं तो ठीक अन्यथा सपा मुखिया अखिलेश यादव उसके निशाने पर हैं। अखिलेश यादव को सीबीआई के जाल में लोकसेवा आयोग, रिवर फ्रण्ट घोटाला, आय से अधिक संपत्ति जैसे किसी एक मामले में दबाव में लेकर किसी तरह गठबंधन को तार-तार किए जाने की तैयारी की चर्चा है।
उत्तर प्रदेश का सियासी समीकरण बहुत तेजी से बीते दिनों बदला है। धुर विरोधी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच गठजोड़ ने पूरा परिदृश्य ही बदल कर रख दिया है। भारतीय जनता पार्टी जब तक इस गठजोड़ के नफे नुकसान का हिसाब लगाती तब तक देर हो चुकी थी। प्रचण्ड बहुमत की सरकार होने के बावजूद भाजपा के हाथ से गोरखपुर लोकसभा और फूलपुर लोकसभा सीट निकल गयी। भाजपा यह दोनों उपचुनाव हार गयी थी। भाजपा के लिए यह परिणाम पूरी तरह अप्रत्याशित था। हार-जीत से इतर जो संदेष और समीकरण तैयार हुए उससे भाजपा का चिन्तित होना स्वाभाविक था क्योंकि 2019 की चुनौती उसके सामने खड़ी है। सूबे में दलित-पिछड़ा-मुस्लिम गठजोड़ की काट के लिए भाजपा ने सामाजिक समरसता अभियान तो शुरू किया लेकिन उसकी प्राथमिकता अब यही हो गयी थी कि किसी तरह इस गठबंधन को खण्ड-खण्ड किया जाये। भाजपा जिस तरह बिहार में नीतीश और लालू की राहें जुदा करने में सफल रही, ठीक उसी फार्मूले को अब उसने उत्तर प्रदेश में भी अखिलेश और मायावती के बीच खाई पैदा करने के लिए आजमाने की ठान ली है।


उप्र की कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा उपचुनाव से ठीक पहले भाजपा ने अपना दांव खेलते हुए पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के खिलाफ सीबीआई ने जांच शुरू कर दी है। मामला उनके शासन काल के दौरान वर्ष 2010-11 में बेची गई 21 चीनी मिलों से जुड़ा रहा है। इन चीनी मिलों को बेचे जाने से प्रदेश सरकार को 1,179 करोड़ रुपये का घाटा हुआ। मायावती के करीबी रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने पिछले साल आरोप लगाया था कि चीनी मिलें तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती और बीएसपी के महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा के इशारे पर बेची गई थीं। हालांकि मायावती ने दावा किया था कि चीनी मिलों को बेचने के लिए जो आदेश हुआ था, उस पर नसीमुद्दीन सिद्दीकी के हस्ताक्षर हैं। दरअसल मायावती सरकार पर आरोप है कि उसने जो 21 चीनी मिलें बेचीं उनमें से 10 मिलें चालू हालत में थीं। इन्हें बाजार की कीमतों से बहुत कम कीमत पर कौड़ियों के भाव बेचा गया। यह चीनी मिलें 500 हेक्टेयर पर बनी थीं और तब इनकी कीमत दो हजार करोड़ रुपये थी।
गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में मिली हार के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस घोटाले की जांच कराने के लिए सीबीआई को 12 अप्रैल 2018 को पत्र लिखा था। इसमें कहा गया था कि प्रदेश की जो भी 21 चीनी मिलें बेंची गईं, वह सब फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बनाई गईं बोगस कंपनियों ने खरीदीं। जो चीनी मिलें खरीदी गईं उनमें से देवरिया, बरेली, लक्ष्मीगंज, हरदोई, रामकोला, चित्तौनी और बाराबंकी की बंद पड़ी सात चीनी मिलें भी शामिल थीं। योगी सरकार ने इस मामले में जो नोटिफिकेशन जारी किया उसमें लिखा है कि संभव है कि दोषी प्रदेश के बाहर का भी हो सकता है इसलिए सीबीआई इसकी जांच करे। प्रदेश शासन का इसके पीछे तर्क था कि नीलाम की गईं 21 चीनी मिलों में विसंगतियां पाई गई थीं इसलिए अब सीबीआई को इसकी जांच सौंपी गई है। सीबीआई ने सौंपे गए दस्तावेजों की जांच शुरू कर दी है।
हालांकि 2004-05 में मुलायम सिंह यादव के शासनकाल में सरकार ने भी 24 चीनी मिलें बेचने का प्रयास किया था लेकिन उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद यह ‘डील’ होने से रुक गई थी। अखिलेश यादव सरकार ने मायावती शासनकाल में हुए इस घोटाले को लेकर कोई कार्रवाई नहीं की, जबकि इस मामले में सीएजी ने अखिलेश सरकार को वित्तीय अनियमितताओं की रिपोर्ट भी सौंपी थी। हालांकि नवंबर 2012 में लोकायुक्त को यह जांच सौंपी गई थी, लेकिन तत्कालीन लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा ने डेढ़ साल से ज्यादा समय तक जांच के बाद इसमें कोई घोटाला नहीं पाया था। सीबीआई इस घोटाले में राजनेताओं, अधिकारियों और व्यापारियों की भूमिका की हर पहलू की जांच करेगी। सरकार ने सीबीआई को उस एफआईआर की कॉपी भी सौंपी है जो नवंबर 2017 में गोमतीनगर थाने में कराई गई थी। इस एफआईआर में दो कंपनियां नम्रता मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड और गिरासो कंपनी प्राइवेट लिमिटेड का नाम था जिन्होंने चीनी मिलें खरीदी थीं। चर्चा है कि सरकार को जांच में ये दोनों कंपनियां बोगस मिली थीं। सीएजी जांच में भी चीनी मिलों की बिक्री को लेकर बड़ा घोटाला सामने आया था।
भाजपा के निशाने पर सिर्फ और सिर्फ 2019 का लोकसभा चुनाव ही है और इसके लिए वह चाणक्य नीति पर चलते हुए साम-दाम-दण्ड-भेद सारे उपाय करने को तत्पर है। यही वजह है कि भाजपा ने गांवों में रात्रि विश्राम और दलितों के घर भोज जैसे कार्यक्रम आयोजित किए। यह दांव भाजपा ने मायावती की रणनीति को शिकस्त देने और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए खेला था। उधर, कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा चुनाव में सपा, बसपा और राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन का लिटमस टेस्ट होगा। यदि यहां यह प्रयोग सफल रहा तो तय है कि 2019 में भाजपा की राहें आसान नहीं होने जा रही। वहीं कांग्रेस इस फिराक में है कि इन दोनों उपचुनावों को ऊंट जिस करवट बैठेगा, वह उसी हिसाब अपनी राह तय करेगी।


साफ है कि चीनी मिलों को बेचे जाने की जांच सीबीआई को देकर भाजपा सरकार बसपा मुखिया मायावती पर ठीक उसी तरह दबाव डालना चाहती है जैसे कि उसने बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के सर्वेसर्वा लालू प्रसाद यादव पर डाल रखा है। भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि चीनी मिलों को लेकर सीबीआई के जरिए यदि बसपा मुखिया मायावती अर्दब में आ गयीं तो ठीक अन्यथा सपा मुखिया अखिलेश यादव उसके निशाने पर हैं। अखिलेश यादव को सीबीआई के जाल में लोकसेवा आयोग, रिवर फ्रण्ट घोटाला, आय से अधिक संपत्ति जैसे किसी एक मामले में दबाव में लेकर किसी तरह गठबंधन को तार-तार किए जाने की तैयारी की चर्चा है। कुल मिलाकर भाजपा के निशाने पर सिर्फ और सिर्फ 2019 का लोकसभा चुनाव ही है और इसके लिए वह चाणक्य नीति पर चलते हुए साम-दाम-दण्ड-भेद सारे उपाय करने को तत्पर है। यही वजह है कि भाजपा ने गांवों में रात्रि विश्राम और दलितों के घर भोज जैसे कार्यक्रम आयोजित किए। यह दांव भाजपा ने मायावती की रणनीति को शिकस्त देने और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए खेला था। उधर, कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा चुनाव में सपा, बसपा और राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन का लिटमस टेस्ट होगा। यदि यहां यह प्रयोग सफल रहा तो तय है कि 2019 में भाजपा की राहें आसान नहीं होने जा रही। वहीं कांग्रेस इस फिराक में है कि इन दोनों उपचुनावों को ऊंट जिस करवट बैठेगा, वह उसी हिसाब अपनी राह तय करेगी।

 

 

 

 

 

जितेन्द्र शुक्ल ‘देवव्रत’

 

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