राजनीति

अखिलेश कर सकते हैं कांग्रेस से गठबंधन, एलान 9 के बाद

विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव की अगुवाई वाली समाजवादी पार्टी, कांग्रेस से गठबंधन करके चुनाव मैदान में उतरेगी। संभावना है कि नई दोस्ती पर 9 जनवरी के बाद मुहर लगेगी। इससे पहले अखिलेश यादव की दिल्ली में राहुल और प्रियंका गांधी वाड्रा से बातचीत हो सकती है।
अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने से पहले 237 प्रत्याशियों की घोषणा की थी। ये वे सीट हैं, जिन पर सपा को चुनाव लड़ना है। इनमें सपा के मौजूदा विधायक और सीएम के नजदीकी लोग शामिल हैं। सपा सूत्रों के मुताबिक अखिलेश लगभग 300 सीटों पर अपने प्रत्याशी प्रत्याशी उतारना चाहते हैं।
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शेष सीट गठबंधन के लिए छोड़ने के पक्षधर है। वह कांग्रेस से दोस्ती का हाथ बढ़ा चुके हैं। कांग्रेस चाहती है कि पश्चिमी यूपी में राष्ट्रीय लोकदल को भी गठबंधन में शामिल रहे। संभावना है कि सपा का कांग्रेस व रालोद से गठबंधन होगा। गठबंधन की स्थिति में सपा की लड़ने वाली सीटों की संख्या घट-बढ़ सकती है।

मुस्लिमों की एकजुटता पर नजर

अखिलेश चाहते हैं कि सपा की उठापटक से मुस्लिम वोटर उनसे नाराज न हों। कांग्रेस से गठबंधन उनकेलिए इसमें मददगार होगा। कांग्रेस से दोस्ती के बाद मुसलमानों का भरोसा लौटेगा कि सपा-कांग्रेस गठबंधन भाजपा को हरा सकता है। सरकार के काम और छवि के बल पर वह सभी वर्गों का समर्थन हासिल करने की कोशिश करेंगे। 

रालोद के जरिये भाजपा को रोकने की रणनीति:

सपा व कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि रालोद से दोस्ती करके वेस्ट यूपी मे भाजपा को झटका दिया जा सकता है। 2014 के चुनाव में मुजफ्फरनगर दंगे के चलते जाट भाजपा के साथ चले गए थे। इससे पश्चिमी यूपी में वोटों का धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण हो गया था। तब से हालात बहुत बदल गए हैं। केंद्र में भाजपा की सरकार बनने पर जाटों का आरक्षण समाप्त हो चुका है। पश्चिमी यूपी से सटे हरियाणा में जाट आंदोलन में दो दर्जन से ज्यादा जाटों की जान जा चुकी है। ये सारे मुद्दे पश्चिमी यूपी में उठाकर भाजपा को घेरने की रणनीति है। यूं भी यह माना जाता है कि यदि जाटों का समर्थन नहीं मिला तो भाजपा पश्चिमी यूपी में धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण नहीं करा पाएगी।

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