अखिलेश को निशाना बना कर होगी लड़ाई!
समाजवादी पार्टी के झगड़े का अंत नतीजा क्या निकलेगा यह नहीं कहा जा सकता है। मायावती प्रचार कर रही हैं कि शिवपाल और अखिलेश यादव के समर्थक एक दूसरे को हराएंगे, इसलिए लोगों को बहकावे में नहीं आना चाहिए और बसपा को समर्थन देना चाहिए। उनकी यह अपील खास तौर से मुस्लिम मतदाताओं के लिए है। लेकिन उनकी इस अपील से एक बात जाहिर हुई है कि सपा के झगड़े के कारण अखिलेश यादव का नेतृत्व और छवि दोनों स्थापित हुए हैं। उनके प्रति लोगों का सद्भाव दिखा है और तभी तमाम मीडिया समूहों के सर्वेक्षणों में अखिलेश सीएम पद के सबसे लोकप्रिय दावेदार के तौर पर उभरे हैं। इस लिहाज से कहा जा सकता है कि सपा के नेता अपने मकसद में कामयाब रहे हैं।
मौटे तौर पर भाजपा और बसपा दोनों को समझ आ गया है कि समाजवादी पार्टी में जो होना था वह हो गया है। उन्हे अखिलेश यादव को टारगेट बना कर चुनाव प्रचार करना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा के तमाम नेताओं ने समाजवादी पार्टी की राजनीति और अखिलेश यादव पर अभी तक जो कहां है उसमें कंफ्यूजन झलका है तो यह उम्मीद भी कि समाजवादी पार्टी का जनाधार बुरी तरह बिखरेगा। जमीनी स्तर पर पार्टी में गुटबाजी और एक-दूसरे को निपटाने के काम होगे। बसपा और भाजपा दोनों के लिए जरूरी है कि वे अखिलेश यादव की नई इमेज नहीं बनने दे लेकिन ये इस पर जितना फोकस बनाएगे उतना अखिलेश यादव को फायदा होगा। उधर कांग्रेस, लोकदल और जनता दल यू आदि पार्टियों का जहां सवाल है वे संभल कर एलायंस की उम्मीद में है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के दूसरे तमाम नेता भी अखिलेश सरकार को निशाना बना रहे हैं। अखिलेश के पांच साल के राज में कामकाज नहीं होने और कानून व्यवस्था बिगड़ने का मुद्दा बनाया जा रहा है। इससे भी अपने आप अखिलेश पर फोकस बन रहा है। सो, चाहे मायावती का हमला हो या भाजपा का निशाना हो, कुल मिल कर अखिलेश धुरी बनते दिख रहे हैं। अगर भाजपा और बसपा दोनों का यह अभियान चलता है तो वोटिंग अनिवार्य रूप से अखिलेश के पक्ष या विपक्ष के मुद्दे पर आ जाएगा। इसका फायदा उनको हो सकता है।
तभी कहा जा रहा है कि चुनाव की घोषणा के बाद अब भाजपा और बसपा दोनों अखिलेश पर से फोकस हटाने का प्रयास करेंगे। इसकी शुरुआत प्रधानमंत्री मोदी ने लखनऊ रैली से कर दी। उन्होंने अखिलेश पर हमला करने के साथ साथ भाजपा के मुख्यमंत्रियों के शासन को याद किया। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को याद किया और कहा कि सपा और बसपा के राज में सुशासन को वनवास दे दिया गया था, जिसकी वापसी भाजपा कराएगी। यानी भाजपा अपना सकारात्मक एजेंडा सेट कर रही है।
इसी तरह बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती कानून व्यवस्था को मुद्दा बना रही हैं। हाल के मीडिया सर्वेक्षणों में करीब 50 फीसदी लोगों ने माना है कि मायावती कानून व्यवस्था बेहतर बना सकती हैं। यह उनकी ताकत रही है। इसलिए उनका एजेंडा कानून व्यवस्था पर बनने वाला है। इस तरह भाजपा सुशासन और बसपा कानून व्यवस्था को मुद्दा बना कर अखिलेश पर से फोकस हटाने की कोशिश करेंगे। लेकिन सपा, कांग्रेस और रालोद के प्रयास से फिर फोकस अखिलेश पर लौटेगा। कांग्रेस और रालोद के नेता अखिलेश के चेहरे पर समझौते के लिए राजी हो रहे हैं। जिस तरह बिहार में नीतीश कुमार को चेहरा बना कर गठबंधन किया गया, उसी तरह उत्तर प्रदेश में अखिलेश को प्रोजेक्ट करने की तैयारी है। कांग्रेस और रालोद दोनों इस इंतजार में हैं कि सपा में शांति बने तो तालमेल की बात हो। अखिलेश खेमा भी कांग्रेस और रालोद के साथ तालमेल के लिए तैयार है। ऐसे में अखिलेश, राहुल और जयंत चौधरी मिल कर चुनाव की धुरी बनाएंगे।
सो, कुल मिला कर उत्तर प्रदेश का चुनाव अनिवार्य रूप से अखिलेश के चेहरे पर जनमत संग्रह की तरह होगा। उनके मुकाबले बसपा की मायावती का चेहरा है तो भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा है।