अखिलेश ने चुनाव आयोग में ठोका ‘साइकिल’ पर दावा, सियासी संग्राम में आमने सामने होंगे पिता-पुत्र
यूपी के सबड़े बड़े सियासी कुनबे में अब सुलह की आखिरी कोशिश भी नाकाम हो चुकी है। सियासी संग्राम में बेटा अखिलेश पिता मुलायम पर भारी पड़ते नजर आ रहे हैं।
रामगोपाल यादव का चुनाव आयोग जाकर साइकिल चुनाव चिन्ह पर दावा ठोकना और ये कहना कि अखिलेश यादव वाला गुट ही असली समाजवादी पार्टी है ये बताने के लिए काफी है कि अब इस परिवार के बिखरने और पार्टी के दो फाड़ होने की शुरुआत हो चुकी है।
अखिलेश यादव के चाचा राम गोपाल यादव शनिवार को अखिलेश के समर्थन में करीब 5731 शपथ पत्रों के साथ चुनाव आयोग पहुंचे थे। रामगोपाल यादव 205 विधायक, 15 सांसद और 68 एमएलसी के समर्थन के साथ चुनाव आयोग पहुंचे थे। इतना ही नहीं रामगोपाल यादव के साथ उनके सासंद बेटे अक्षय, नीरज शेखर समेत कई सांसद भी चुनाव आयोग में मौजूद थे।
इससे अब लगभग ये तय हो चुका है कि अब यूपी में बाप-बेटे अखिलेश और मुलायम सिंह यादव के बीच समझौते की आखिरी कड़ी भी टूट चुकी है और वो एक दूसरे के खिलाफ ही चुनावी मैदान में दो-दो हाथ करते नजर आएंगे।
रामगोपाल यादव अखिलेश यादव के करीबी माने जाते है इसी वजह से उन्हें अध्यक्ष रहते हुए मुलायम सिंह यादव ने पार्टी से बाहर का रास्त दिखा दिया था। वहीं दूसरी तरफ शिवपाल यादव मुलायम सिंह यादव खेमे के है जो हर हालत में समाजवादी पार्टी पर अखिलेश यादव का कब्जा नहीं होने देना चाहते।
बीते दिनों अखिलेश यादव ने राम गोपाल यादव की तरफ से बुलाए गए अधिवेशन में मुलायम सिंह यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से हटाकर खुद अध्यक्ष बन गए जिसके बाद पार्टी और सत्ता में वर्चस्व को लेकर बाट बेटे के बीच खीचतान और बढ़ गई।
पार्टी की कमान संभालने के तुरंत बाद अखिलेश ने पहली कार्रवाई करते हुए मुलायम सिंह के करीबी अमर सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था।
इसके बाद मुलायम सिंह यादव ने सम्मेलन को अवैध बताते हुए पार्टी के चुनाव चिन्ह साइकिल पर चुनाव आयोग जाकर अपना दावा ठोक दिया। इसके जवाब में शनिवार को रामगोपाल यादव ने भी अखिलेश की तरफ से चुनाव चिन्ह पर अपना दावा पेश कर दिया और इसके समर्थन में 5731 पन्नों का शपथ पत्र चुनाव आयोग में जमा करा दिया।
चुनाव आयोग ने दोनों पक्षों को विवाद सुलझाने के लिए 9 जनवरी तक का वक्त दिया है। इसके बाद चुनाव आयोग साइकिल चुनाव चिन्ह को लेकर फैसला करेगा।
इस पूरे विवाद में जहां अखिलेश यादव की छवि एक मजबूत नेता के तौर पर उभरी है वहीं मुलायम सिंह यादव उम्र के साथ ही राजनीतिक तौर पर भी कमजोर पड़ते नजर आ रहे हैं।
इस पूरे झगड़े में दिलचस्प बात ये है कि साल 2012 में चुनाव जीतने के बाद जब मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को सीएम बनाया था तो उन्होंने अखिलेश के खिलाफ सभी विरोधों को दरकिनार कर दिया था और आज उसी विरोध की वजह से पार्टी दो हिस्सों में बंट चुकी है।