नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर आरोपी जांच में सहयोग कर रहा हो तो हिरासत में पूछताछ से बचा जाना चाहिए क्योंकि गिरफ्तारी के साथ काफी अपयश, अपमान और बदनामी जुड़ी होती है।
न्यायमूर्ति ए के सीकरी और न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन की पीठ ने कहा, जिन मामलों में अदालत की राय है कि आरोपी जांच में शामिल हुआ है और वह जांच एजेंसी के साथ पूरी तरह सहयोग कर रहा है और उसके भागने की संभावना नहीं है तो उस स्थिति में हिरासत में पूछताछ से बचा जाना चाहिए। गिरफ्तारी के साथ काफी अपयश, अपमान और बदनामी जुड़ी होती है।
पीठ ने कहा, गिरफ्तारी के न सिर्फ आरोपी के लिए काफी गंभीर परिणाम होते हैं बल्कि समूचे परिवार के लिए भी और कई बार समूचे समुदाय के लिए। ज्यादातर लोग दोषसिद्धि से पूर्व के चरण में या दोषसिद्धि के बाद के चरण में गिरफ्तारी के बीच अंतर नहीं समक्षते।
पीठ ने कहा कि अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करने के दौरान आरोप की गंभीरता, आरोपी की ठीक-ठीक भूमिका को अवश्य समक्षना चाहिए और गिरफ्तारी से पहले अधिकारी को केस डायरी में गिरफ्तारी के लिए अवश्य सही कारणों को दर्ज करना चाहिए।
पीठ ने कहा कि एकबार आरोपी को अग्रिम जमानत पर रिहा किया जाता है तो निचली अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण के लिए उसे मजबूर करना और फिर से जमानत के लिए आवेदन करना अतर्कसंगत होगा।
पीठ ने यौन उत्पीड़न मामले में 17 वर्षीय एक आरोपी को अग्रिम जमानत देते हुए यह बात कही। इस मामले में 2014 में बलात्कार के आरोप तय किए गए थे।