राष्ट्रीय

अगर बारिश के पानी का उचित संग्रहण हो तो सूखे की मार से बच सकता है भारत देश

देश एक बार फिर भीषड़ सूखे की चपेट में है। देश के 17 राज्यों में लगभग 365 जिले इस बार सूखा झेल रहे हैं। उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र, महाराष्ट्र के विदर्भ और सौराष्ट्र, गुजरात और उड़ीसा के कई इलाकों में इस बार खेती ही नहीं पेयजल के लिए भी भारी संकट पैदा हो गया है। हर वर्ष सूखे की मार झेलने के बाद भी समाज और सरकार इसके लिए सही तरीके से जागरुक नहीं हो रहे हैं जिसकी वजह से समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि वन क्षेत्र में अपेक्षित बढ़ोतरी और जल संग्रहण की बेहतर स्थिति भारत को इस परेशानी से निबटने में सहायता कर सकता है लेकिन इसके लिए समाज और सरकार, दोनों की तरफ से सकारात्मक बदलाव करने पड़ेंगे।

बारिश खूब, फिर भी प्यासे क्यों
जल विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत की सबसे बड़ी समस्या यह है कि हम वर्षा जल को संग्रहित नहीं कर रहे हैं। अगर हम वर्षा के जल का संग्रहण करने लगें तो पूरे देश में पेय जल के संकट को हमेशा के लिए खत्म किया जा सकता है। सच्चाई यह है कि भारत पूरी बारिश का केवल 6 फीसदी हिस्सा ही संचित कर पाता है। बाकी का पानी बहकर नदियों और समुद्र में चला जाता है।

वनों की उपलब्धता लगातार कम होती गई है। पूरे भारत के भूक्षेत्र के लगभग 24.39 फीसदी हिस्से पर ही वन बाकी बचे हैं, जबकि इसकी आदर्श स्थिति लगभग 33 फीसदी के करीब होनी चाहिए। इसके कारण किसी एक हिस्से में ज्यादा बारिश हो रही है तो किसी दूसरे हिस्से में बेहद कम बारिश हो पाती है। यही कारण है कि कहीं फसलें बाढ़ के कारण नष्ट हो जाती हैं तो कहीं सूखे के कारण नष्ट हो रही हैं।

‘भौतिकवादी सोच समस्या का भयावह कारण’
जल उपलब्धता पर काम करने वाले समाज सेवी राजेंद्र सिंह, जिनके कामों की वजह से लोग उन्हें जल पुरुष कहने लगे हैं, ने अमर उजाला से कहा कि प्राकृतिक संसाधनों के प्रति हमारी भौतिकवादी सोच इस समस्या के लिए सबसे भयावह कारण है। पहले प्रकृति के हर संसाधन को हम एक देवी-देवता मानते थे, जिसके कारण समाज में कोई उनका अनुचित दोहन नहीं करता था, लेकिन अब बदले समय में इसे उपभोग की वस्तु मान लिया गया है। इसके कारण ज्यादा आर्थिक समृद्ध या ताकतवर इसका ज्यादा उपभोग कर रहा है तो कमजोर के लिए इसकी उपलब्धता सीमित है।

क्या किया जाए
राजेंद्र सिंह के मुताबिक, जल संकट को दूर करने के लिए पुराने तरीकों को अपनाने के अलावा और कोई उपाय नहीं है। वृक्षारोपण करने और जलाशयों को दुबारा पुनर्जीवित करने के बाद ही जल संकट को दूर किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि बुंदेलखंड और ओडीशा के सबसे ज्यादा सूखे की मार झेल रहे इलाकों में भी वर्षा जल का उचित संग्रहण कर दिया जाए तो वहां सूखे की मार से निबटा जा सकता है। सिंह के मुताबिक, कई वर्षों से राजनीतिक चर्चा में आ जाने के बाद भी इन इलाकों के जलाशयों को अपेक्षित स्तर तक नहीं भरा जा सका है जिसके कारण हर वर्ष सूखे की समस्या से जूझना पड़ता है।

Related Articles

Back to top button