1- नॉर्थईस्ट इंडिया में त्रिपुरा एक पहाड़ी राज्य है। आप को त्रिपुरा जाने के लिए हर प्रमुख शहर से बस की सुविधा मिलेगी जिससे आप त्रिपुरा की राजधानी अगरतला पहुंच सकते हैं। आप कोलकाता से हवाई यात्रा के जरिए भी त्रिपुरा पहुंच सकते हैं। विश्वस्तर पर जिमनास्ट में भारत को पहचान दिलाने वाली दीपा करमाकर भी इसी राज्य की हैं। यहां संस्कृति के साथ विरासत की झलक दिखाई देती है। यहां आप को हर ओर सिर्फ प्रकृति की सुंदरता ही नजर आएगी। यहां कॉलेज तिला इलाके में बनी सुंदर इमारतें व स्मारक आप का ध्यान आकर्षित करते हैं। यहां एक सुंदर झील भी है। जो सर्दियों में प्रवासी पक्षी से घिरी रहती है। अगरतला बंगाल के किसी समृद्ध कस्बे जैसा दिखाई देता है। यहां सड़कों पर आपको अधिकतर संकेत बंगाली में लिखे दिखाई देंगे। 2- यहां के शहर अपनी विशिष्ट संस्कृति, विरासत तथा स्मारकों के लिए प्रसिद्ध है। त्रिपुरा में बंगलादेशी, भारतीय बंगालियों के साथ कई जनजातियों की जीवनशैली का प्रभाव नजर आता है। त्रिपुरा की राजधानी अगरतला होआरा नदी के तट पर बसी है। इसे 1760 में त्रिपुरा राजघराने की राजधानी बनाया गया था। उस समय महाराजा कृष्णमाणिक्य उदयपुर से अपनी राजधानी सिर्फ सरल आवाजाही और खुले स्थान के लिए यहां लेकर आए थे। उदयपुर तब उत्तर-पूर्वी भारत का एक राज्य था। यहां के महल, सड़कें तथा जल आपूर्ति के लिए तालाब 1838 में महाराजा कृष्णकिशोर माणिक्य के द्वारा करवाए गए थे। 3- नदी किनारे बसे हुये उज्जयंत महल की खूबसूरती देखते ही बनती है। 19वीं सदी की शुरूआत में बना यह महल भारतीय-अरबी स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है। इसके विशालकाय गुम्बद तथा लम्बे-लम्बे बरामदे, नक्काशीदार दरवाजे तथा फव्वारे किसी का भी मन मोह लें। यह महल 1947 तक अगरतला पर राज करने वाले माणिक्य राजवंश का आवास था। महल के एक हिस्से अंदर महल में आज भी उनके वंशज रहते हैं। महल में हाथी दांत से बना विख्यात राज सिंहासन भी है। इसमें एक संग्रहालय भी स्थापित किया गया है। 4- यहां पुष्पवंत महल तथा मालंच निवास भी देखने लायक हैं। अगरतला से 53 किलोमीटर दूर स्थित मेलाघर में नीर महल भी अति सुंदर है। अगरतला से बंगलादेश और भारत के बीच की दूरी मात्र 2 किलोमीटर है। शाम को 5 बजे भारत की ओर से सीमा सुरक्षा बल यानी बी.एस.एफ. तथा दूसरी ओर से बंगलादेश राइफल्स के जवान अपने-अपने राष्ट्र ध्वज उतारते हैं। यह आयोजन सीमा पर बने गेट पर होता है। जिसे देखने के लिए यहां भारी भीड़ लगती है।
5- त्रिपुरा के अधिकतर वासी वैष्णव हैं। यहां आप को हिंदू व वैष्णव मंदिर खूब देखने को मिलेंगे हैं। इनमें सबसे बड़ा मंदिर जगन्नाथजी का है। जिसका वास्तुशिल्प दक्षिण भारतीय मंदिरों से प्रेरित है। शहर से 14 किलोमीटर दूर पुराने अगरतला में चतुर्दश देवता मंदिर भी अति सुंदर है। यहां 14 देवियों की पूजा होती है। इन देवियों को त्रिपुरी भाषा में नाम लाम्प्रा, अखत्रा, बिखत्रा, बुरासा, थुमनाईरोक, बोनीरोक, संग्रोमा, मवताईकोतोर, त्विमा, सोंग्राम, नोकसुमवताई, माइलूमा, खुलूमा और स्वकलमवताई हैं। 6- अगरतला से 55 किलोमीटर दूर उदयपुर में कई बड़े मंदिर हैं। माता त्रिपुरा सुंदरी मंदिर को देखने सबसे ज्यादा लोग पहुंचते हैं। 500 वर्ष प्राचीन यह मंदिर बंगाली चार-चाला स्थापत्य कला में निर्मित है। इसमें काली माता की मूर्ति की प्रतिमा स्थापित है। जिन्हें लोग त्रिपुरा सुंदरी या त्रिपुरेश्वरी पुकारते हैं। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। लाल रंग के इस मंदिर में शक्ति मां को प्रसन्न करने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं।
7- उदयपुर का अन्य प्राचीन मंदिर है भुवनेश्वरी मंदिर। 17वीं सदी में निर्मित यह मंदिर गोमती नदी के तट तथा पुराने शाही महल के करीब है। यह महल अब खंडहर में बदल गया है। महान लेखक रबीन्द्रनाथ टैगोर भी इस शक्तिपीठ से काफी प्रभावित थे। उन्होंने अपने उपन्यास तथा नाटक में इसका जिक्र किया है। त्रिपुरा का एक अन्य बेहद सुंदर आकर्षण नीरमहल है जो अगरतला से 54 किलोमीटर दूर है। इस महल में नाटकीय मुगल शैली वास्तुशिल्प है। रुद्र सागर झील से घिरे इस महल के साथ लुका-छिपी खेलते सूर्य के शानदार नजारे को देखने के लिए डिंगी नौका की सैर सर्वोत्तम है। झील में कमल के फूलों के बीच मौजूद कई तरह के पक्षी भी मन मोह लेते हैं। शाम के वक्त इस महल में सुंदर रोशनी की जाती है।