अगले वर्ष कहीं आपकी कुंडली में तो नहीं बन रहा है राजयोग, जानिए
सफलता कब और कैसे मिल जाए यह कहना मुश्किल है। क्योंकि किसी को तो सफलता रातोंरात मिल जाती है और किसी को जीवनभर नहीं मिल पाती है। आखिर ऐसा क्यों होता है, इसके पीछे का विज्ञान क्या है? इस सवाल का जवाब हमें ज्योतिश शास्त्र में मिलता है। ज्योतिष विज्ञान के मुताबिक जब किसी व्यक्ति की कुंडली में राजयोग बनते हैं तो उसे असीम सफलता मिलती है। कुंंडली में कुछ ऐसे राजयोग होते हैं जो किसी व्यक्ति को फर्श से उठाकर अर्श पर पहुँचा सकते हैं। अनुकूल ग्रहों की दशा अवधि आने पर राजयोग के फल मिलने लगते हैं।
गज-केसरी राजयोग
कुंडली में अगर गुरु बृहस्पति चंद्रमा से केन्द्र भाव में हो और किसी क्रूर ग्रह से संबंध नहीं रखता हो तो कुंडली में गज-केसरी राजयोग बनता है। इस राजयोग के कारण व्यक्ति धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र में कामयाबी हासिल करता है। ऐसे व्यक्ति सरकारी सेवाओं में उच्च पद पर बैठते हैं।
पाराशरी राजयोग
कुंडली में जब केन्द्र भावों का संबंध त्रिकोण भाव से हो तो ऐसी स्थिति में पाराशरी राजयोग का निर्माण होता है। दशावधि में इस योग के प्रभाव से आप धनी और समृद्धिशाली बनेंगे। आपके पास दौलत, शौहरत, गाड़ी, बंगला आदि सारी चीज़ें होंगी।
नीच-भंग राजयोग
कुंडली में जिस राशि में ग्रह नीच का होकर बैठा हो उस राशि का स्वामी उसे देख रहा हो या फिर जिस राशि में ग्रह नीच का होकर बैठा हो उस राशि का स्वामी स्वगृही होकर युति संबंध बना रहा हो तो नीच भंग राजयोग का सृजन होता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में ये योग होता है वह एक राजा के समान जीवन व्यतीत करता है।
उभयचरी राजयोग
कुंडली में यदि चंद्रमा के अतिरिक्त राहु-केतु, सूर्य से दूसरे या बारहवें घर में स्थित हों तो कुंडली में उभयचरी योग का निर्माण होता है। इस राजयोग वाले व्यक्ति का भाग्य बड़ा प्रबल होता है। ऐसे जातक स्वभाव से हंसमुख और बुद्धिमान होते हैं। ये बड़ी से बड़ी चुनौतियों को आसानी से पार कर जाते हैं।
धन योग
कुंडली में पहला, दूसरा, पांचवां, नौवां और ग्यारहवां भाव धन देने वाले हैं। अगर इनके स्वामियों में युति, दृष्टि या राशि परिवर्तन संबंध बनता है तो इस स्थिति में धन योग का निर्माण होता है। इस राजयोग से व्यक्ति का आर्थिक जीवन बेहद समृद्धिशाली बनता है।