अच्छी कहानी और एक्टिंग से फिर उभर कर आये आयुष्मान, बाला को मिले इतने स्टार
Movie Review: बाला
कलाकार: आयुष्मान खुराना, भूमि पेडनेकर, यामी गौतम, सीमा पाहवा और सौरभ शुक्ला
निर्देशक: अमर कौशिक
निर्माता: दिनेश विजन
निर्माता दिनेश विजन और निर्देशक अमर कौशिक की जोड़ी स्त्री के बाद फिर लौटी है एक और दमदार फिल्म लेकर। दिनेश विजन हिंदी सिनेमा में लीक से इतर फिल्में बनाने वाले निर्माता के रूप में पहचान बना रहे हैं और अमर कौशिक ने लगातार दूसरी फिल्म में दर्शकों को प्रभावित किया है। गिनती चल ही रही है तो अभिनेता आयुष्मान खुराना की ये लगातार सातवीं हिट फिल्म होने जा रही है। वह फिर एक ऐसे आम आदमी के किरदार में है जो हमारे आसपास की सी परिस्थितियों में रहते हुए हीरो बन जाता है।
कानपुर की एक मिडिल क्लास फैमिली का बालमुकुंद अपने सिर के झड़ते बालों से परेशान है। कंपनी ने उसे लड़कियों की फेयरनेस क्रीम बेचने में लगा रखा है। और, वह मानता है कि सुंदर दिखना सिर्फ लड़कियों का ही नहीं लड़कों का भी उतना ही हक है। जीवन में उसका सारा दुख बस खुद के उम्र से ज्यादा दिखने का है और जिसकी वजह है सिर पर बाल कम होते जाना। आखिरकार वह इसका तोड़ ढूंढने में कामयाब रहता है और फिर उसे मिलती है एक टिकटॉक स्टार, जिसे दुनिया का बनावटीपन हद दरजे तक पसंद है।
बाला हमारे आसपास के किसी भी बालमुकुंद की कहानी हो सकती है। बाल गिरने की समस्या तेजी से बढ़ रही बीमारियों की वजह से भी है और लगातार बढ़ते काम के दबाव की वजह से भी। आयुष्मान खुराना ने इस बार निरेन भट्ट की लिखी इस कहानी में शुरू से ही डुबकी लगा दी। हिंदी फिल्म जगत के समंदर में गोता मारकर अद्भुत कहानियां खोज लाने का आयुष्मान का हुनर उनकी अदाकारी पर पसंघे की तरह काम करता है और फिल्म बाला में पलड़ा एक बार फिर उनके हक में झुका दिख रहा है। स्टैंडअप कॉमेडी करनी हो या फिर अपनी गर्लफ्रेंड के सामने हकीकत खुल जाने के बाद की समझदारी, आयुष्मान की कलाकारी फिल्म में सब पर भारी है। उनका रोना भी असली लगता है और उनका हंसना भी।
और, छोटे शहरों की नकली दुनिया का असली चमकदार किरदार निभा ले गई हैं यामी गौतम। यामी गौतम ने साल की शुरुआत हिट फिल्म उरी द सर्जिकल स्ट्राइक से की और साल की विदाई की है बाला से। फिल्म की एक और मजबूत कड़ी हैं भूमि पेडनेकर। उनके खराब मेकअप को छोड़ दें तो फिल्म में वकील लतिका के किरदार में उन्होंने भी काफी दमदार काम किया है। सौरभ शुक्ला और सीमा पाहवा ने कनपुरिया दंपति का मजेदार किरदार निभाकर फिल्म को सही सहारा दिया है।
सनी सिंह की उजड़ा चमन देखने के बाद बाला देखकर ये भी समझ आता है कि फिल्म एक निर्देशक की समझदारी से बनती है। अमर कौशिक ने पिछली बार मध्यप्रदेश के एक कस्बे को परदे पर जीवंत कर दिया था और इस बार तो कानपुर उनका अपना शहर ही है। उन्होंने कहानी के एक एक किरदार को खुद को स्थापित करने का पूरा समय दिया है और फिर इन जमीन से जुड़े किरदारों को उम्मीदों के पंख दिए हैं। अमर कौशिक की फिल्म बाला ये भी बताती है कि कैसे एक औसत सी कहानी को एक मजेदार मनोरंजक फिल्म में बदला जा सकता है। अमर को यहां कानपुर को नए एंगल से दिखाने में अपने सिनेमैटोग्राफर अनुज राकेश धवन से काफी मदद मिली है। हेमंती सरकार की एडिटिंग भी फिल्म की गति बनाए रखती है।
सांवली बेटी की फोटो पर फिल्टर इस्तेमाल करके इंस्टाग्राम पर दामाद ढूंढने वाली मां हो या फिर एक टिक टॉक स्टार का बिना हिचक अपनी पसंद के पार्टनर की पहली जरूरत उसकी सुंदरता की बात करना, बाला बिना किसी संकोच के सच सामने रखती है। फिल्म की खासियत ये है कि ये किसी की कमियों के बारे में न कोई टिप्पणी करती है और न ही किसी तरह का फैसला सुनाने की कोशिश करती है। हां, कहीं कहीं सुंदरता और गोरेपन को लेकर दिया गया भाषण बोरिंग लगने लगता है। संगीत थोड़ा कमजोर है लेकिन फिल्म की जीत है इसके किरदारों का संपूर्ण न होना। हर किरदार में कोई न कोई खामी है लेकिन सब मिलकर एक संपूर्ण फिल्म बनाने में सफल रहते हैं। मूवी रिव्यू में फिल्म बाला को मिलते हैं साढ़े तीन स्टार।