अटलजी बोले- हमें बाहरी से उतना खतरा नहीं, जितना अंदर वालों से
सर्जिकल स्ट्राइक पर आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस के संजय निरुपम द्वारा उठाए गए सवालों से देश में गुस्से का उबाल है। मगर इतिहास में पहले भी ऐसे लोग हुए हैं, जिन्होंने भारतीय होते हुए भी कश्मीर में भारतीय सेना पर सवाल उठाए।
एक बार तो पानी सिर से ऊपर चला गया, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को संसद में ऐसे लोगों को लताड़ना पड़ा।
किस्सा कुछ यूं था कि सन् 2000 में देश में अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने कश्मीर में सीजफायर (संघर्ष विराम) की पेशकश की और पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने की रणनीति बनाई।
सरकार की ये कूटनीति काम करने लगी और पाकिस्तान की ओर से भी मजबूरन गोलीबारी की घटनाएं कम हो गईं। अंतरराष्ट्रीय दबाव में आतंकी घटनाएं भी रुकीं और कश्मीर में अमन और शांति के हालात बनने लगे। दुनियाभर में अटलजी की इस पहल का सम्मान हुआ और अमेरिका, रूस सहित सभी प्रमुख देशों ने इसकी सराहना की।
मगर स्थिति तब असहज हो गई जब देश के अंदर ही कुछ लोग अटलजी की सीजफायर की इस कोशिश पर सवाल उठाने लगे। पहले तो अटलजी शांत रहे और देश के अन्य मामलों पर ध्यान देते रहे, किंतु जब संघर्ष विराम पर संसद के अंदर विपक्ष के चुनिंदा सदस्य बार-बार सवाल उठाने लगे तो अटलजी ने ऐसे लोगों को 23 नवंबर 2000 को राज्यसभा में नाराजगी भरे स्वर में करारा जवाब दिया।
वे बोले- ‘कुछ लोग यह पूछ रहे हैं कि कश्मीर में संघर्ष विराम का ये सिलसिला कब तक चलेगा? मैं उन्हें बता देना चाहता हूं कि ये कदम देशहित में सोच-समझकर उठाया गया है, खतरा मोल लेकर उठाया गया है। इसका परिणाम भी देखने को मिल रहा है, जो कि भारत के हित में है।
आतंकियों के गुटों में खलबली है क्योंकि वे बेनकाब हुए हैं और अपनी कार्रवाई रोकने को बाध्य भी। हम चाहते हैं कि ये माहौल बढ़े और कश्मीर में शांति स्थापित हो। मगर यह बिलकुल स्पष्ट है कि हमारा शांति का कदम एकतरफा नहीं है। सेना को छूट दी गई है कि वे पाकिस्तानी सेना और आतंकियों को करारा जवाब दे।
हाल ही में छत्तीसिंहपुरा में आतंकियों ने भारतीय सेना की वर्दी पहनकर जो हत्याएं की हैं, वे हमारी सेना को बदनाम करने की साजिश है। हम उसे बेनकाब कर रहे हैं। मगर मुझे खेद है कि अपने ही देश के कुछ लोग आंखों पर पट्टी बांधकर सेना पर संदेह कर मनगढ़ंत बयानबाजी कर रहे हैं।
ऐसे में हमें बाहरी लोगों से उतना खतरा नहीं, जितना कि अंदर वालों से है। ये अच्छी बात नहीं है। इतिहास ऐसे लोगों को गद्दार कहता आया है। मुझे विश्वास है कि ऐसे लोग समझेंगे।