अद्भुत, इसकी वफादारी की देते हैं लोग मिसाल, मरते दम तक किया था इंतजार
एजेन्सी/ जापान में एक नाम वफादारी का पर्याय बन चुका है। 80 सालों से जापान के लोग इसकी वफादारी की मिसाल देते नहीं थकते। ये कोई इंसान नहीं बल्कि एक कुत्ता हचिको था, जिसे आज भी जापान में सम्मान से याद किया जाता है।
आप जिससे प्यार करते हैं उसका कितने दिनों तक इंतजार कर सकते हैं। एक दिन, दो दिन या एक दो सालों तक। बस इतना ही ना, लेकिन हचिको ने 9 साल 9 महीने और 15 दिनों तक अपने मालिक का इंतजार किया। इंतजार की ये घडिय़ां और लम्बी हो सकती थीं लेकिन मौत ने हचिको को छीन लिया।
अलहदा है हचिको की कहानी
ये कहानी 1925 की है। टोक्यो की तत्कालीन इंपीरियल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर इजॉबुरो उइनो पढ़ाते थे। अपने घर से वे टोक्यो जाने के लिए रोजाना शिबुया स्टेशन आया करते थे। जहां से ट्रेन पकड़कर वे यूनिवर्सिटी पहुंचा करते थे। हर रोज प्रोफेसर का कुत्ता हचिको उन्हें स्टेशन छोडऩे आया करता था। हचिको घर वापस चला जाता और फिर तीन बजे लौटता। ये वो वक्त होता जब प्रोफेसर ट्रेन से वापस लौटते। बाद में दोनों साथ घर लौट जाते। 21 मई 1925 को प्रोफेसर ट्रेन से टोक्यो गए लेकिन लौटे नहीं। उन्हें ब्रेन हैमरेज हो गया और उनकी मौत हो गई। बस उसी दिन से हचिको के इंतजार का अंतहीन सिलसिला शुरु हुआ और जो लगातार करीब 9 सालों तक जारी रहा। हचिको से मिलने के लिए लोग शिबुया स्टेशन पर आने लगे। वह रोजाना दोपहर के तीन बने स्टेशन पहुंच जाया करता था। आखिरी दम तक हचिको अपने मालिक का इंतजार करता रहा। 7 मार्च 1935 को हचिको की मौत हो गई।
हचिको को ऐसे मिला सम्मान
हचिको की मौत के बाद जापान में उसकी प्रसिद्धी फैलती चली गई। शिबुया स्टेशन हचिको की अविस्मरणीय कहानी का गवाह बन गया। हचिको की कहानी को हमेशा के लिए याद रखने के लिए लोगों ने पैसा इकट्ठा किया और शिबुया स्टेशन के बाहर उसकी प्रतिमा स्थापित की गई। उस वक्त मशहूर मूर्तिकार ताकेशी अंडो ने हचिको की मूर्ति बनाई। हालांकि विश्व युद्ध के दौरान कारतूस बनाने के लिए हचिको की मूर्ति को तोड़ दिया गया। बाद में 1948 में ताकेशी के बेटे ने मूर्ति का दुबारा से निर्माण किया।
यहां खाई जाती है वफादारी की कसमें
शिबुया स्टेशन पर स्थापित हचिको की मूर्ति आज वफादारी की सबसे बड़ी मिसाल है। प्यार करने वाले लोग यहां हचिको की प्रतिमा के सामने जीने-मरने की कसमें खाते है और जिंदगी भर साथ निभाने का वादा करते हैं। हचिको के सम्मान में हर साल जापान में 7 मार्च को ‘चुकेन हचिको मातसूरी’ यानी कि वफादार हचिको फेस्टिवल मनाया जाता है।
हचिको से सीखते हैं स्वामिभक्ति
जापान के लोगों में अपने देश के प्रति अटूट विश्वास है। यहां बच्चों को देश के प्रति वफादारी का पाठ शुरु से ही पढ़ाया जाता है। वफादारी और स्वामिभक्ति का पाठ पढ़ाने के लिए जापान में बच्चों की किताबों में हचिको की कहानी बताई जाती है।
वैज्ञानिकों ने लगाया हचिको की मौत का पता
हचिको की मौत कैसे हुई ये सवाल कई सालों तक राज ही बना रहा, लेकिन अब वैज्ञानिकों ने बताया है कि हचिको की मौत कैंसर या पेट में कीड़े पडऩे से हुई थी। वहीं इससे पहले हचिको के पार्थिव शरीर के अवशेष की कई बार जांच करने के बाद डॉक्टर्स ने माना था कि उसने कबाब सेंकनेवाली सींक निकल ली थी।
गौरतलब है कि आज भी हचिको के शरीर के अवशेष जापान के राष्ट्रीय संग्रहालय में सुरक्षित है, जिसे देखने के लिए दुनिया भर से लोग संग्रहालय में आते हैं।