अब आपको हर साल यूबीआइ देने के लिए सरकार को उठाना होगा यह कदम
भारत में पिछले दिनों यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआइ) को लेकर काफी चर्चा हई थी. इसको लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने कहा है कि भारत सरकार चाहे तो हर साल प्रति व्यक्ति 2600 रुपये की यूबीआइ दे सकती है. हालांकि यह तब ही संभव है जब सरकार खाद्य और ऊर्जा सब्सिडी खत्म कर दे. आईएमएफ ने अपनी ‘ फिस्कल मॉनिटर – टैकलिंग इनेक्वालिटी’ रिपोर्ट में यह बात कही है.
देनी होगी खाद्य सब्सिडी की आहुति
भारत में यूनिवर्सल बेसिक इनकम को लेकर आईएमएफ ने रिपोर्ट में विस्तार से चर्चा की है. आईएमएफ की तरफ से यूबीआइ निकालने के लिए जो गणना तय की गई है, वह 2011-12 के डाटा के आधार पर है. ऐसे में अगर सरकार यूबीआइ अपनाने का फैसला लेती है, तो उसे देश में मौजूदा समय में चल रहे सब्सिडी पैकेज को लेकर विचार-विमर्श करना होगा और नए सिरे से नीतियां बनानी होंगी.
जीडीपी पर पड़ेगा 3 फीसदी का बोझ
आईएमएफ ने कहा है कि इतनी कम यूबीआइ देने का वित्तीय खर्च जीडीपी का 3 फीसदी होगा. हालांकि इससे सार्वजनिक खाद्य वितरण और ईंधन पर दी जाने वाली सब्सिडी खत्म हो जाएगी.
अरविंद सुब्रह्मण्यम कर चुके हैं समर्थन
यूनिवर्सल बेसिक इनकम को लेकर भारत में काफी बड़े स्तर पर चर्चा हुई थी. कॉरेपोरेट्स ने कहा था कि यूबीआइ देने से सरकारी खजाने पर बोझ पड़ पड़ेगा. वहीं, मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रम्हण्यम ने इसका समर्थन किया था. उन्होंने कहा था कि यूबीआइ एक ऐसा ‘विचार है जिसका वक्त शायद आ गया है. फौरन अमल के लिए नहीं, लेकिन कम से कम गंभीर सार्वजनिक विचार-विमर्श के लिए.’
आर्थिक सर्वे में इस पर चर्चा का सुझाव दिया गया
इसी साल फरवरी में आर्थिक सर्वे में यूबीआई को लेकर विस्तार से चर्चा की गई. इसमें कहा गया कि यूबीआइ पर जीडीपी के 4 और 5 फीसदी के बीच लागत आएगी. सुब्रह्मण्यम ने रिपोर्ट में कहा कि यूबीआइ एक और योजना नहीं होगी बल्कि एवजी योजना होगी. असल में यह अकेली योजना होगी जिसमें लाभार्थी को सीधे रकम मिलेगी.
गरीबों के लिए फायदेमंद
अरविंद ने कहा था कि कोई 950 योजनाएं और उपयोजनाएं हैं जिन पर जीडीपी का 5 फीसदी खर्च होता है. इनमें से सबसे बड़ी 11 योजनाओं पर ही कुल रकम का कोई 50 फीसदी हिस्सा चला जाता है. इन योजनाओं के बावजूद सबसे गरीब जनों को फायदा नहीं हो पाता.