एजेंसी/ नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने ‘अच्छे स्वास्थ्य को एक न्यायोचित मौलिक अधिकार’ करार देते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हर आदमी के लिए स्वास्थ्य बीमा कवर योजना भारत के स्वास्थ्य बीमा क्षेत्र में एक ‘‘क्रांति’’ लेकर आएगी।
बीमा कंपनी की खिंचाई
अदालत ने एक हृदय रोगी व्यक्ति के मेडीक्लेम को अस्वीकार किए जाने पर यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की खिंचाई करते हुए यह टिप्पणी की। बीमा कंपनी ने हृदय रोगी के मेडीक्लेम को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि यह आनुवांशिक बीमारी है और यह मेडीक्लेम से बाहर के खंड में आती है।
अतिरिक्त जिला न्यायाधीश कामिनी लाउ ने कहा कि उनका मानना है कि आनुवांशिक बीमारियों को मेडीक्लेम से बाहर रखे जाने के बीमा नीति खंड को खत्म किए जाने की आवश्यकता है, जो बीमाकर्ता और बीमित व्यक्ति के बीच एक करार होता है तथा जो आनुवांशिक बीमारियों के मामले में बीमा प्रदायगी को पूरी तरह खारिज करता है ।
यह भेदभाव अनुचित
उन्होंने कहा कि इस तरह के नियम मनमाने, भेदभावपूर्ण और अनुचित हैं तथा वे आनुवांशिक विकारों, बीमारियों से ग्रस्त लोगों के साथ भेदभाव करते हैं। अदालत ने कहा कि हर किसी के लिए स्वास्थ्य बीमा कवर की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वकांक्षी परियोजना राष्ट्रीय स्वास्थ्य आश्वासन मिशन (एनएचएएम) को हर किसी को इसके अंतर्गत शामिल करने से पहले अभी प्रभावी होना बाकी है और यह भारत में स्वास्थ्य बीमा क्षेत्र में एक क्रांति लेकर आएगी जैसा कि वायदा किया गया है। अदालत ने बीमा कंपनी के खिलाफ फैसला देते हुए कहा कि वादी जयप्रकाश तायल कंपनी से पांच लाख रूपये पाने का हकदार है जो उसने अस्पताल में उपचार पर खर्च किए थे।
याचिकाकर्ता की दलील
कंपनी ने यह कहकर मेडीक्लेम देने से इनकार कर दिया था कि आनुवांशिक बीमारी मेडीक्लेम के दायरे से बाहर है। याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया था कि वह समान उपचार के लिए दो क्लेम पहले ही ले चुका है और इसलिए समान बीमारी के लिए तीसरे क्लेम को खारिज नहीं किया जा सकता।