उत्तर प्रदेशलखनऊ

अब बच्चों को संतुलित शिक्षा देने की आवश्यकता!

डा0 जगदीष गांधी, शिक्षाविद् एवं
संस्थापक प्रबन्धक, सीएमएस, लखनऊ

आज विद्यालयों में बच्चों की एकांकी शिक्षा अर्थात केवल भौतिक शिक्षा हो रही है जबकि मनुष्य एक भौतिक प्राणी है, सामाजिक प्राणी है तथा वह एक आध्यात्मिक प्राणी भी है। इसलिए मनुष्य के सम्पूर्ण व्यक्तित्व के विकास के लिए उसे सर्वश्रेष्ठ भौतिक शिक्षा के साथ ही साथ उसे मानवीय एवं आध्यात्मिक शिक्षा भी देनी चाहिए। यदि हम अपने पूर्वजों की जानकारी रखते हो तो हम पायेंगे कि वे भी रोटी, कपड़ा तथा मकान के लिए कार्य करते थे। लेकिन उस समय समाज में कोई आत्महत्या, रेप तथा लूटपाट नहीं होती थी। इसका प्रमुख कारण था कि प्रारम्भिक काल में शिक्षालयों में बालक को बाल्यावस्था से भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक तीनों प्रकार की षिक्षा संतुलित रूप से मिलती थी। उस समय मानव जीवन सुन्दर, सुखी तथा एकता से भरपूर था।

बालक को ईश्वर का उपहार एवं मानवजाति का गौरव बनायें

यदि बालक को केवल विषयों का भौतिक ज्ञान दिया जाये और उसके सामाजिक एवं आध्यात्मिक ज्ञान में कमी कर दी जायें तो उससे बालक असंतुलित व्यक्ति के रूप में विकसित हो जायेगा। इस प्रकार की शिक्षा में पला-बढ़़ा बालक अपने परिवार एवं समाज को अच्छा बनाने के बजाये उसे और भी अधिक असुरक्षित एवं असभ्य बनाने का कारण बन जाता है। अतः प्राचीन काल के शिक्षालयों से प्रेरणा लेकर आज के आधुनिक विद्यालयों को भी प्रत्येक बच्चे को बाल्यावस्था से ही सर्वश्रेष्ठ भौतिक शिक्षा के साथ ही साथ उसे सामाजिक तथा आध्यात्मिक अर्थात् संतुलित षिक्षा देकर उसे ईश्वर का उपहार एवं मानवजाति का गौरव बनाना चाहिए।

पूर्व काल के शिक्षालयों की चिन्ता होती थी कि अच्छे इंसान कैसे बने?

कालान्तर मंे वर्ष 1850 से वर्ष 1950 तक लगभग 100 वर्षो के बीच सारे विष्व में औद्योगिक क्रान्ति हुई। विष्व के सभी देषों के बीच अपना-अपना सामान अधिक से अधिक बेचकर लाभ कमाने की अत्यधिक होड़ बढ़ने लगी। उस दौड़ में शिक्षाएवं षिक्षालय भी डूब गये। शिक्षालय केवल कमाई के योग्य व्यक्ति बनाने के टकसाल बन गये। इसके पूर्व शिक्षालयों की चिन्ता होती थी कि बच्चे कैसे अच्छे इंसान बने? यह बात नालन्दा, तक्षषिला, शान्ति निकेतन, बनारस हिन्दू विष्वविद्यालय में देखी जाती थी। वर्तमान समय में अच्छे रिजल्ट बनाने की होड़ को कम नहीं किया जा सकता। इस हेतु बालक को अपने सभी विषयों का संसार का उत्कृष्ट भौतिक ज्ञान मिलना चाहिए। किन्तु इसके साथ ही साथ उसके चरित्र का निर्माण तथा उसके हृदय में परमात्मा के प्रति प्रेम भी उत्पन्न करना होगा तभी हम प्रत्येक बालक को एक अच्छा इंसान भी बना पायेंगे।

शिक्षा के द्वारा तीन क्षेत्रों को तराशना होगा

यदि हमें धरती पर शैतानी सभ्यता की जगह आध्यात्मिक सभ्यता स्थापित करनी है तो इसके लिए शिक्षा के द्वारा तीन क्षेत्रों को तराशना होगा। पहला क्षेत्र इस युग के अनुरूप ‘शिक्षा’ होनी चाहिए (अर्थात शिक्षा केवल भौतिक नहीं वरन् भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक तीनों की संतुलित शिक्षा), दूसरा क्षेत्र धर्म के मायने साधारणतया समझा जाता है कि मेरा धर्म, तेरा धर्म, उसका धर्म। धर्म के मायने- ईश्वर एक है, धर्म एक है तथा मानव जाति एक है। तीसरा क्षेत्र सारे विश्व में कानूनविहीनता बढ़ रही है। बच्चों को बचपन से कानून पालक तथा न्यायप्रिय बनने की सीख देनी चाहिए। हम सब संसारवासी कानून को तोड़ने वाले बनते जा रहे हैं। समाज को व्यवस्थित देखना है तो कानून का पालन होना चाहिए। सामाजिक शिक्षा के द्वारा बालक में परिवार तथा समाज के प्रति संवेदनशीलता विकसित की जानी चाहिए। बच्चों को ऊँच-नीच तथा जात-पात के बन्धन से बचाना चाहिये।

बच्चों की शिक्षा सर्वाधिक महान सेवा है

आध्यात्मिक शिक्षा के अन्तर्गत बालक को पवित्र ग्रन्थों- गीता, कुरान, त्रिपटक, बाईबिल, कुरान, गुरू ग्रन्थ साहिब, किताबे अकदस में संकलित परमात्मा की शिक्षाओं का ज्ञान कराना चाहिए तथा परमात्मा की शिक्षाओं पर चलने के लिए प्रेरित करना चाहिए। बच्चों को बताना चाहिए कि सभी अवतार राम, कृष्ण, बुद्ध, ईशु, मोहम्मद, मोजज, अब्राहम, जोरस्टर, महावीर, नानक, बहाउल्लाह एक ही परमात्मा की ओर से आये हैं। परमात्मा का ज्ञान किसी धर्म विशेष के अनुयायियों के लिए नहीं हैं सारी मानव जाति के लिए है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर को अर्पित मनुष्य की ओर से की जाने वाली समस्त सम्भव सेवाओं में से सर्वाधिक महान सेवा है- (अ) बच्चों की शिक्षा, (ब) उनके चरित्र का निर्माण तथा (स) उनके हृदय में परमात्मा के प्रति प्रेम उत्पन्न करना।

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