अब सऊदी अरब की महिलाए कर सकेंगी ड्राइविंग
पहली बार 6 नवंबर, 1990 को 47 महिलाओं ने सार्वजनिक रूप से इस कानून का बहिष्कार किया। उन्होंने विरोध में रियाद प्रांत की सड़कों पर गाड़ी चलाई। जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था।
इसके बाद वरिष्ठ इस्लामिक विद्वानों के परिषद् ने फतवा जारी कर महिलाओं के ड्राइविंग पर रोक लगा दी। फतवा में इसे अशुभ और नकारात्मक परिणामों को आमंत्रण देने वाला बताया गया था।
यह कहा गया कि इससे महिलाएं की नजदीकी पुरुषों के साथ बढ़ेगी। वे विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षित होंगी। इसका विरोध करने वाली महिलाओं को गिरफ्तार किया जाने लगा और उनके पासपोर्ट तक जब्त किए जाने लगें। इसके बावजूद महिलाएं इस कानून के खिलाफ आवाज उठाती रहीं।
इसके बाद सोशल मीडिया पर अभियान फैलता चला गया। इसी बीच 2011 में एक सरकारी रिपोर्ट जारी की गई, जिसमें कहा गया कि महिलाओं को अगर ड्राइविंग की इजाजत दी जाती है तो इससे उनकी कौमार्य खत्म हो जाएगा। यह रिपोर्ट सऊदी अरब के शूरा प्रांत ने जारी किया था। महिलाओं के विरोधी स्वर तेज होने लगे। उनका कहना था कि प्रतिबंध की मूल वजह है कि सरकारें चाहती हैं कि महिलाएं पुरुषों की देखरेख में रहे।
पुरुषों को भी महिलाओं की इस आजादी से आपत्ति थी। 3 अक्टूबर 2011 को बीबीसी से बात करते हुए 25 साल के युवा नवाफ ने कहा था, “अगर महिलाओं को ड्राइविंग की इजाजत दी जाएगी तो वो अपनी मर्जी से कहीं भी जा सकेंगी। यह पाबंदी सऊदी अरब का नहीं, बल्कि इस्लाम को बचाने के लिए है। आज वो ड्राइविंग की इजाजत मांगेंगी, कल छोटे कपड़े पहनने की इजाजत मांगेंगी।”
26 अक्टूबर 2013 को एक अभियान शुरू किया गया, जिसका समर्थन 11 हजार महिलाओं ने किया। धीरे-धीरे अभियान को पुरुषों का भी साथ मिलने लगा। महिलाओं ने सरकार से पाबंदी की तर्कपूर्ण कानूनी वजह बताने की मांग की।
महिलाओं के बढ़ते विरोध ने सरकार को इस पर सोचने को मजबूर कर दिया और अंततः उन्हें ड्राइविंग की इजाजत दी गई है। मंगलवार को जारी आदेश के मुताबिक ट्रैफिक नियमों के कई प्रावधानों को लागू किया जाएगा जिसमें महिलाओं और पुरुषों के लिए एक जैसे ड्राइविंग लाइसेंस जारी करना भी शामिल है।
महिला जिसकी वजह से मिला अधिकार
सउदी अरब सामाजिक कार्यकर्ता लुजैन अल हथलौल को एक दिसम्बर 2014 में कार चलाने के आरोप में सउदी अरब की पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक, लुजैन को कार चलाकर देश की सीमा में दाखिल होते वक्त गिरफ्तार किया गया था। इसके विरोध में पेशे से पत्रकार मायसा अल अमौदी भी, हथलौल के समर्थन में गाड़ी चलाते हुए सीमा पर जा पहुंचीं और पुलिस ने उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया। दोनों को जेल में बंद कर दिया गया।
उस दौरान कोर्ट ने यह आदेश दिया था कि इन महिलाओं पर रियाद की उस अदालत में मुकदमा चलाया जाए जो आतंकवादी मामलों को देखती है। उसके बाद अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था, एमनेस्टी इंटरनेशनल समेत पूरी दुनिया के मानवाधिकार संगठनों ने सउदी अरब की तीखी आलोचना की। आखिरकार 73 दिनों की कैद के बाद लुजैन को रिहा किया, लेकिन तबतक महिलाओं के अधिकार का मामला एक मुहिम बन चुकी थी।