उमा भारती ने कल कहा था कि नोटबंदी ‘रक्तहीन क्रांति’ है. नोटबंदी की वजह से लगी लाइनों में अलग-अलग कारणों से कम से कम 100 लोगों की मौत हुई ये वो बड़ी सहूलियत से भूल गईं. 20 के करीब बैंककर्मी ड्यूटी के ओवरलोड से या तो मारे गए, या बुरी हालत में अस्पताल में भर्ती हुए. घरेलू हिंसा के मामले बढ़ने जैसी तमाम घटनाओं की भी खबरें आईं. इसलिए नोटबंदी को रक्तहीन कहना हास्यास्पद और असंवेदनशील था.
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जब नोटबंदी हुई थी, तब एक चीज़ का शोर चारों ओर था. नोटबंदी को मोदी जी का कालेधन पर किया गया सबसे बड़ा प्रहार कहा गया. इसे ब्लैक मनी पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ कहा गया. नोटबंदी 8 नवंबर को हुई थी. सबको पता था कुछ राज्यों में चुनाव सर पर हैं. ख़ास तौर से यूपी चुनाव. ये बात बार-बार कही जा रही थी कि नोटबंदी कर के इन चुनावों में कालेधन के इस्तेमाल का स्कोप ही ख़त्म कर दिया है मोदी जी ने. जब पैसा जुगाड़ना ही मुश्किल हो जाएगा तो नेता लोग बांटेंगे क्या और खर्चेंगे क्या!
लेकिन चुनाव आयोग तो कुछ और ही कह रहा है. डिप्टी इलेक्शन कमिश्नर विजय देव ने आंकड़े देकर बताया है कि इन चुनावों में कालेधन का इस्तेमाल कम होना तो दूर बल्कि कई गुना ज़्यादा बढ़ गया है. यानी कि इस मामले में नोटबंदी पूरी तरह फेल होने का पक्का डॉक्यूमेंटेड सबूत है.
यूपी चुनावों की ही बात कर ली जाए पहले. अब तक लगभग 110 करोड़ रुपए ज़ब्त किए जा चुके हैं. 2012 में हुए चुनावों से तीन गुना ज़्यादा. और अभी तो आधा चुनाव भी नहीं हुआ. सात चरणों में से सिर्फ तीन चरण हुए हैं. चुनाव ख़त्म होते-होते ये आंकड़ा कहां तक पहुंचेगा इसका अंदाजा बाखूबी लगाया जा सकता है.
अगर यूपी से हटकर पंजाब की तरफ नज़र डालें तो ज़ब्त रकम तीन गुना से बढ़कर पांच गुना हो जाती है. ना सिर्फ पंजाब में 58.02 करोड़ रुपए सीज़ किए गए हैं बल्कि 12.43 लीटर शराब और 2598 किलो ड्रग्स भी ज़ब्त हुए हैं. जिनकी वैल्यू 13.36 करोड़ और 18.26 करोड़ है.उत्तराखंड में भी कोई जुदा हालात नहीं हैं. यहां सिर्फ एक ही चरण में मतदान हुआ था. यहां से भी 3.38 करोड़ रुपए चुनाव आयोग ज़ब्त कर चुका है, जबकि 2012 में यही आंकड़ा सिर्फ 1.30 करोड़ था. शराब के मामले में तो देवभूमि उत्तराखंड की छलांग काबिलेज़िक्र है. पिछली बार 15.15 लाख की शराब पकड़ी गई थी जो अब 3.10 करोड़ तक पहुंच गई है. यानी सच में ही शराब की नदियां बहा दी भाई लोगों ने.
गोवा में भी सेम माजरा है. वहां पिछली बार सिर्फ 60 लाख रुपए पकड़े गए थे. इस बार 2.24 करोड़ रुपए काबू किए गए हैं. साथ ही 1.07 करोड़ की शराब भी. इन सब मामलों में लोगबाग पैसों का सोर्स नहीं बता पाएं हैं. ये सारा पैसा इंकमटैक्स डिपार्टमेंट के सुपुर्द कर दिया गया है. नोटबंदी के बाद पूरे देशभर में पैसे की भारी किल्लत हो गई थी. यहां तक कि रोज़मर्रा के खर्चे के लिए भी कैश मयस्सर नहीं हो पा रहा था लोगों को. चंद हज़ार रुपयों के लिए घंटों लाइन में खड़े रहना पड़ा था. कई बार तो दिनों तक. बैंक, एटीएम के आगे लगी लंबी-लंबी कतारों का नज़ारा अभी तक लोगों के ज़हन में ताज़ा है. बैंकों से निकासी की एक तयशुदा लिमिट थी और उतना भी मिलना मुश्किल हो गया था. अभी भी हालात पूरी तरह पटरी पर आ चुके हैं इसकी कोई हामी नहीं भर सकता. ऐसे में ये सवाल बहुत दिलचस्प हो जाता है कि इन उम्मीदवारों ने इतनी बड़ी मात्रा में कैश कहां से जुगाड़ लिया?
कौन नहीं जानता कि हमारे मुल्क में साधनसंपन्न लोगों के लिए कोई भी काम असंभव नहीं. और ये भी कि तमाम असुविधाएं सिर्फ आम जनता का मुक़द्दर है. तमाम नेता बिरादरी एक दूसरे की पूरक हैं. सरकार किसी की हो, काम सब के हो जाते हैं. इसीलिए इस नोटबंदी की मार से अगर कोई तबक़ा बिना खरोंच सही सलामत निकल आया है तो वो है पॉलिटिशियन बिरादरी.
जब लोगों को चंद हज़ार तक मयस्सर नहीं हो रहे थे, तब इन नेताओं ने कैसे करोड़ों रुपए मुहैया करा लिए इसका जवाब सरकार ढूंढें. जनता को भी बताएं. आख़िरकार उसी का दावा और वादा था कि वो इन सब गंदे खेलों पर लगाम कसेगी. अब जब वो हुआ नहीं है तो सरकार से जवाबतलबी होगी ही.