अमित शाह ने कहा-भीड़ हिंसा के खिलाफ फिलहाल नया कानून नहीं, मौजूदा कानून में फांसी तक की सजा
केंद्र सरकार ने साफ किया है कि उन्मादी भीड़ की हिंसा के खिलाफ फिलहाल कोई नया कानून नहीं बन रहा और आइपीसी व सीआरपीसी के मौजूदा प्रावधानों के तहत ही इसके दोषियों को दंडित किया जा सकता है। सरकार के मुताबिक, मौजूदा कानून में ही ऐसे अपराधों के लिए फांसी की सजा तक का प्रावधान है। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि विशेष कानून की मांग के संदर्भ में सरकार ने अभी सीआरपीसी और आइपीसी के वर्तमान कानून की समीक्षा के लिए एक कमिटी का गठन किया है। साथ ही सभी राज्यों से कानून में जरूरी संशोधन के लिए उनके सुझाव मांगे गए हैं।
गृहमंत्री अमित शाह के साथ गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा में उन्मादी भीड़ की हिंसा के दोषियों को सख्त सजा देने के लिए विशेष कानून बनाने की मांग से जुड़े सवालों का जवाब देते हुए यह बात कही। अमित शाह ने कहा कि जहां तक भीड़ द्वारा हिंसा के मामलों का सवाल है तो हमने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को चिठ्ठी भेजकर उनके अनुभवी विशेषज्ञों से चर्चा कर सुझाव भेजने का अनुरोध किया है। गृह मंत्रालय की संस्था पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो ने इसकी समीक्षा के लिए एक कमिटी का गठन किया है। इस कमिटी और राज्यों के सुझाव आने के बाद सीआरपीसी और आइपीसी में संशोधन पर सरकार आगे बढ़ेगी।
उन्मादी भीड़ की हिंसा के दोषियों को सख्त संदेश देने के लिए विशेष कानून की सुप्रीम कोर्ट की राय पर सांसदों ने सरकार का नजरिया पूछा तो गृहमंत्री ने इस पर गौर करने की बात कही। शाह ने कहा कि सीआरपीसी और आइपीसी के प्रावधानों में संशोधनों के लिए जब सुझाव आ जाएंगे उसी वक्त सुप्रीम कोर्ट की राय समेत सभी जरूरी निर्णय किए जाएंगे।
वहीं नित्यानंद राय ने उन्मादी भीड़ की हिंसा की परिभाषा मौजूदा कानून में नहीं होने के सवाल पर कहा कि यह सही है कि सीआरपीसी और आइपीसी के मौजूदा प्रावधानों में ऐसी हिंसा की परिभाषा नहीं है। मगर धारा 302, 300, 331 और 339 जैसी धाराओं के तहत ऐसी हिंसा के दोषियों पर सख्त कार्रवाई प्रभावी है। आइपीसी की इन धाराओं के तहत फांसी का भी प्रावधान है जो अंतिम सजा है।
उत्तरप्रदेश के इंस्पेक्टर सुबोध कुमार के आरोपियों के जमानत पर बाहर आने के बाद स्वागत सत्कार का उदाहरण देते हुए जब एक सदस्य ने भीड़ हिंसा के आरोपियों को दिए जा रहे इस तरह के सामाजिक कवच पर सवाल उठाया तो गृहमंत्री ने कहा कि यह राज्य का मसला है और इस पर वे टिप्पणी नहीं करेंगे। मणिपुर और राजस्थान सरकार के भीड़ की हिंसा से निपटने के लिए बनाए गए कानून को राष्ट्रपति से अभी तक मंजूरी नहीं दिए जाने का सवाल भी सरकार से पूछा गया। इस पर गृह राज्यमंत्री ने कहा कि इन दोनों सूबों की विधानसभा से पारित कानून का अध्ययन किया जा रहा है और इसके बाद ही फैसला लिया जाएगा।